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सुख की वृद्धि के व्यवहारिक मंत्र

सुख की वृद्धि के व्यवहारिक मंत्र 'एक शांत और विनम्र जीवन, सफलता की भागदौड़ और उसके साथ आने वाली निरंतर बेचैनी से अधिक खुशी लाता है' - आइंस्टीन हमें दुखी करने वाली बातें दो तरह की होती हैं। एक तरह की बातें वे होती हैं, जिनको नियंत्रित करने [...]

सुख की वृद्धि के व्यवहारिक मंत्र2023-12-21T15:31:18+00:00

अपनी ईमानदारी पर पश्चाताप की भावना

अपनी ईमानदारी पर पश्चाताप की भावना जो व्यक्ति अपने ईमानदार होने पर पश्चाताप करता है, वह बेईमान व्यक्ति से भी बदतर है, क्योंकि एक बेईमान व्यक्ति बेईमान होने का सुख तो भोगता है, लेकिन एक ईमानदार व्यक्ति, जो अपने ईमानदार होने पर पश्चाताप करता है, बेईमानी के सुखों [...]

अपनी ईमानदारी पर पश्चाताप की भावना2022-03-26T13:15:06+00:00

सुखी और शांत रहने के वैयक्तिक नियम

सुखी और शांत रहने के वैयक्तिक नियम सुखी और शांत रहने के नियम बहुत ही सरल हैं और इसके लिए बड़े-बड़े ग्रंथों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है। सुखी और शांत रहने के नियम - 1 प्रातः जल्दी उठें, यानि सुबह 4 से 7 के बीच। सुबह जल्दी [...]

सुखी और शांत रहने के वैयक्तिक नियम2023-12-21T15:54:46+00:00

मन का शीघ्रकारी होना – एक वरदान

मन का शीघ्रकारी होना - एक वरदान ईश्वर-प्राप्ति के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हमें विशाल शक्तियों वाला मन प्रदान किया गया है। यदि कोई व्यक्ति, विशाल शक्तियों वाले इस 'मन' को नियंत्रित नहीं कर पाता, तो उस व्यक्ति को अपनी असफलता के लिए 'मन' को [...]

मन का शीघ्रकारी होना – एक वरदान2022-03-26T13:12:42+00:00

मनुष्य और ईश्वर के कार्यों में मौलिक भेद

मनुष्य और ईश्वर के कार्यों में मौलिक भेद  मनुष्य अंशों में कार्य करता है, जबकि ईश्वर का कार्य पूर्णता को लिए हुए होता है।  उदाहरण के लिए, भवन का निर्माण करते समय मनुष्य पहले नींव, फिर दीवारें, उसके बाद छत आदि का निर्माण करता है। लेकिन, ईश्वर हमारे [...]

मनुष्य और ईश्वर के कार्यों में मौलिक भेद2022-03-26T13:09:41+00:00

उपनिषदों और दर्शनों में अंतर

उपनिषदों और दर्शनों में अंतर उपनिषद अनुभवों का उल्लेख करते हैं, जबकि 'दर्शन' तर्क का उल्लेख करते हैं, अर्थात उपनिषद, ईश्वर के अस्तित्व की बात करते हुए इस तथ्य को साबित करने की कोशिश नहीं करते, लेकिन 'दर्शन' तर्क के माध्यम से ईश्वर के अस्तित्व के सत्य को [...]

उपनिषदों और दर्शनों में अंतर2022-03-26T13:11:27+00:00

तृतीय समुल्लास

  अथ तृतीयसमुल्लासारम्भः विषय : ब्रह्मचर्य, पठन-पाठन व्यवस्था           …. आठ वर्ष के हों तभी, लड़कों को लड़कों की और लड़कियों को लड़कियों की शाला में भेज देवें। जो अध्यापक पुरुष वा स्त्री दुष्टाचारी हों, उनसे शिक्षा न दिलावें, किन्तु जो पूर्ण विद्यायुक्त धार्मिक हों, वे ही पढ़ाने और [...]

तृतीय समुल्लास2023-08-22T14:32:19+00:00

द्वितीय समुल्लास

अथ द्वितीयसमुल्लासारम्भः विषय : संतानों की शिक्षा जैसी यह पृथिवी जड़ है, वैसे ही सूर्यादि लोक हैं। वे ताप और प्रकाशादि से भिन्न कुछ भी नहीं कर सकते। क्या ये चेतन हैं, जो क्रोधित हो के दुख और शान्त हो के सुख दे सकें? प्रश्न - क्या जो [...]

द्वितीय समुल्लास2023-08-06T14:53:26+00:00

प्रथम समुल्लास

अथ प्रथमसमुल्लासारम्भः विषय : ईश्वर के ओङ्कार आदि नामों की व्याख्या   जो यह ओङ्कार शब्द है, वह परमात्मा का सर्वोत्तम नाम है, क्योंकि इसमें जो अ, उ और म तीन अक्षर हैं वे मिल के एक 'ओम' समुदाय हुआ है। इस से परमेश्वर के बहुत नाम आते [...]

प्रथम समुल्लास2023-08-06T14:57:23+00:00

भूमिका

भूमिका --- मेरा इस ग्रंथ के बनाने का प्रयोजन सत्य अर्थ का प्रकाश करना है, अर्थात जो सत्य है उसको सत्य और जो मिथ्या है उसको मिथ्या ही प्रतिपादित करना, सत्य अर्थ का प्रकाश समझा है। वह सत्य नहीं कहाता, जो सत्य के स्थान में असत्य और असत्य के स्थान [...]

भूमिका2022-03-23T07:28:35+00:00
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