अथ द्वितीयसमुल्लासारम्भः

विषय : संतानों की शिक्षा

जैसी यह पृथिवी जड़ है, वैसे ही सूर्यादि लोक हैं। वे ताप और प्रकाशादि से भिन्न कुछ भी नहीं कर सकते। क्या ये चेतन हैं, जो क्रोधित हो के दुख और शान्त हो के सुख दे सकें?

प्रश्न – क्या जो यह संसार में राजा-प्रजा-दुखी हो रहे हैं, यह ग्रहों का फल नहीं है?

उत्तर- नहीं, ये सब पाप-पुण्यों के फल हैं।

प्रश्न -तो क्या ज्योतिष शास्त्र झूठा है?

उत्तर-नहीं, जो उसमें अङ्क, बीज, रेखागणित विद्या है, वह सब सच्ची, जो फल की लीला है, वह सब झूठी है।

प्रश्न – क्या जो यह जन्मपत्र है, सो निष्फल है?

उत्तर-हाँ, वह जन्मपत्र नहीं, किन्तु उसका नाम ‘शोकपत्र’ रखना चाहिए। क्योंकि जब सन्तान का जन्म होता है, तब सबको आनन्द होता है। परन्तु, तब तक होता है कि जब तक जन्मपत्र के आधार पर ग्रहों का फल न सुनें। जब पुरोहित जन्मपत्र बनाने को कहता है, तब उसके माता-पिता पुरोहित से कहते हैं- ‘महाराज! आप बहुत अच्छा जन्मपत्र बनाइए’, जो धनाढय हो तो बहुत सी लाल-पीली रेखाओं से चित्र-विचित्र और निर्धन हो तो साधारण रीति से जन्मपत्र बनाके सुनाने को आता है। तब उसके मां-बाप ज्योतिषी जी के सामने बैठके कहते हैं ‘इसका जन्मपत्र अच्छा तो है?’ ज्योतिषी कहता है, ‘जो है, सो सुना  देता हूँ, इसके जन्मग्रह बहुत अच्छे और मित्रग्रह भी अच्छे हैं, जिनका फल धनाढय और प्रतिष्ठावान् होना है। जिस सभा में जा बैठेगा, तो सबके ऊपर इसका तेज पड़ेगा, शरीर से आरोग्य और राज्यमान भी होगा।’ इत्यादि बातें सुनके पिता आदि बोलते हैं ‘वाह-वाह ज्योतिषी जी! आप बहुत अच्छे हो।’ ज्योतिषी जी समझते हैं, इन बातों से कार्य सिद्ध नहीं होता, तब ज्योतिषी बोलता है कि ‘ये ग्रह तो बहुत अच्छे हैं, परन्तु ये ग्रह क्रूर हैं अर्थात् फलाने-फलाने ग्रह के योग से ८ वें वर्ष में इसका मृत्युयोग है।’ इसको सुन के माता-पितादि पुत्र के जन्म के आनन्द को छोड़के शोकसागर में डूबकर, ज्योतिषीजी से कहते हैं कि ‘महाराज जी! अब हम क्या करें?’ तब ज्योतिषी जी कहते हैं ‘ उपाय करो।’ गृहस्थ पूछे- ‘क्या उपाय करें?’ ज्योतिषी जी कहते हैं कि ‘ऐसा-ऐसा दान करो, ग्रह के मन्त्र का जप कराओ और नित्य ब्राह्मणों को भोजन कराओगे, तो अनुमान है कि नवग्रहों के विघ्न हट जाएँ।’ अनुमान शब्द इसलिए है कि जो मर जाएगा तो कहेंगे, हम क्या करें, परमेश्वर के ऊपर कोई नहीं है, हमने तो बहुत सा यत्न किया और तुमने कराया, उसके कर्म ऐसे ही थे। और जो बच जाए तो कहते हैं कि देखो-हमारे मन्त्र, देवता और ब्राह्मणों की कैसी शक्ति है! तुम्हारे लड़के को बचा दिया।

यहाँ यह बात होनी चाहिए कि जो इनके जप, पाठ से कुछ न हो तो दूने-तिगुणे रुपये उन धूर्त से ले-लेने चाहिएँ और बच जाए तो भी ले-लेने चाहियें, क्योंकि जैसे ज्योतिषियों ने कहा कि ‘इसके कर्म और परमेश्वर के नियम तोड़ने का सामर्थ्य किसी का नहीं’, वैसे गृहस्थ भी कहें कि ‘यह अपने कर्म और परमेश्वर के नियम से बचा है, तुम्हारे करने से नहीं’।

जो माता, पिता और आचार्य सन्तान और शिष्यों का ताड़न करते हैं, वे जानों अपने सन्तान और शिष्यों को अपने हाथ से अमृत पिला रहे हैं और जो सन्तानों वा शिष्यों का लाडन करते हैं, वे अपने सन्तानों और शिष्यों को विष पिला के नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं। क्योंकि लाडन से सन्तान और शिष्य दोषयुक्त तथा ताड़ना से गुणयुक्त होते हैं और सन्तान और शिष्य लोग भी ताड़ना से प्रसन्न और लाडन से अप्रसन्न सदा रहा करें। परन्तु, माता-पिता तथा अध्यापक लोग ईर्ष्या, द्वेष से ताड़न न करें, किन्तु ऊपर से भयप्रदान और भीतर से कृपादृष्टि रक्खें।

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