अपनी ईमानदारी पर पश्चाताप की भावना

जो व्यक्ति अपने ईमानदार होने पर पश्चाताप करता है, वह बेईमान व्यक्ति से भी बदतर है, क्योंकि एक बेईमान व्यक्ति बेईमान होने का सुख तो भोगता है, लेकिन एक ईमानदार व्यक्ति, जो अपने ईमानदार होने पर पश्चाताप करता है, बेईमानी के सुखों का आनंद भोगने को भी छोड़ देता है। ‘धर्म’ मनुष्यों का अन्तरंग भाग है। इसलिए, मनुष्यों को ‘धर्म’ का पालन धर्म के लिए नहीं, बल्कि अपने कल्याण के लिए करना होता है। जो अपना कल्याण नहीं चाहता, उसे ‘धर्म’ का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। मनुष्य अपूर्ण है और इसी कारण उसे सुख या सुख के साधन चाहिए। ‘धर्म’ व्यक्ति को ईश्वर, उसकी अपनी आत्मा, ब्रह्मांड की अन्य आत्माओं और इस ब्रह्मांड के जड़ पदार्थों के साथ सर्वोत्तम व्यवहार करना सिखाता है, जिससे व्यक्ति के पास सुख प्राप्त करने का आधार इकट्ठा होता है।