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ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में बुनियादी चीजें

ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में कुछ भी अध्ययन करने से पहले बुनियादी चीजें, जो प्रत्येक को पता होनी चाहिएं यदि हम संस्कृत भाषा में 'यूनिवर्स' शब्द के उद्गम स्थल का अध्ययन करें, तो हमें पता चलेगा कि बहुत पुराने समय से विद्वानों का मानना रहा ​​है कि इस [...]

ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में बुनियादी चीजें2022-09-22T15:43:25+00:00

जप -क्या, क्यों और कैसे?

जप -क्या, क्यों और कैसे? बहुत से लोग गुरुमंत्र या बीजमंत्र के जप को ही ध्यान समझते हैं। वस्तुतः जप ध्यान की एक महत्त्वपूर्ण क्रिया है। ध्यान के समय ईश्वर के विचार को देर तक बनाए रखने के लिए जप नामक क्रिया की जाती है। जप में किसी शब्द [...]

जप -क्या, क्यों और कैसे?2022-11-27T15:00:59+00:00

मन की प्रसन्नता

मन की प्रसन्नता मन की प्रसन्नता का सामाजिक व्यवहारों में प्रमुख स्थान है। जो व्यक्ति मन से प्रसन्न नहीं, वह व्यक्ति अपने पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक दायित्वों का निर्वहन अपनी सम्पूर्ण क्षमतानुसार नहीं कर सकता। आध्यात्मिक क्षेत्र में उसकी प्रगति उसके मन की प्रसन्नता के अनुपात में ही [...]

मन की प्रसन्नता2024-07-17T07:17:55+00:00

दशम समुल्लास

अथ दशमसमुल्लासारम्भः विषय : आचार, अनाचार और भक्ष्याभक्ष्य मनुष्यों को सदा इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि जिसका सेवन राग-द्वेष रहित विद्वान लोग नित्य करें, जिसको ‘हृदय’ अर्थात् आत्मा से सत्य-कर्त्तव्य जानें, वही धर्म माननीय और करणीय समझें। -मनु-स्मृति 2//1 …सब ‘काम’ अर्थात् यज्ञ, सत्यभाषणादि-व्रत, यम, नियमरूपी [...]

दशम समुल्लास2023-08-27T12:17:14+00:00

नवम समुल्लास

अथ नवमसमुल्लासारम्भः विषय : विद्या, अविद्या, बन्ध और मोक्ष की व्याख्या जो मनुष्य विद्या और अविद्या के स्वरूप को साथ ही साथ जानता है, वह ‘अविद्या’ अर्थात् कर्मोपासना से मृत्यु को तरके ‘विद्या’ अर्थात् यथार्थ ज्ञान से मोक्ष को प्राप्त होता है। -यजुर्वेद 40//14 अविद्या का लक्षण- जो ‘अनित्य’ [...]

नवम समुल्लास2023-08-27T11:54:03+00:00

अष्टम समुल्लास

अथाष्टमसमुल्लासारम्भः विषय : जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय हे मनुष्य! जिससे वह विविध सृष्टि प्रकाशित हुई है, जो धारण और प्रलयकर्त्ता है, जो इस जगत् का स्वामी, जिस व्यापक में यह सब जगत् उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय को प्राप्त होता है, सो परमात्मा है, उसको तू जान और दूसरों [...]

अष्टम समुल्लास2023-08-27T11:59:31+00:00

सप्तम समुल्लास

अथ सप्तमसमुल्लासारम्भः विषय : ईश्वर और वेद जो सब दिव्य गुण-कर्म-स्वभाव-विद्यायुक्त और जिसमें पृथिवी सूर्य्यादि लोक स्थित हैं और जो आकाश के समान व्यापक, सब देवों का देव परमेश्वर है, उसको जो मनुष्य न जानते, न मानते और न उसका ध्यान करते, वे नास्तिक और दुखी होते हैं। इसलिये [...]

सप्तम समुल्लास2023-08-27T09:45:57+00:00

षष्ठ समुल्लास

अथ षष्ठसमुल्लासारम्भः विषय : राजधर्म —- जैसा परम विद्वान् ब्राह्मण होता है, वैसा विद्वान सुशिक्षित होकर क्षत्रिय को योग्य है कि इस सब राज्य की रक्षा न्याय से यथावत् करे। -मनुस्मृति 7//2    ईश्वर उपदेश करता है कि राजा और प्रजा के पुरुष मिलके सुख प्राप्ति और विज्ञानवृद्धिकारक राजा-प्रजा के [...]

षष्ठ समुल्लास2023-08-27T07:19:05+00:00

पंचम समुल्लास

अथ पंचमसमुल्लासारम्भः विषय : वानप्रस्थ और सन्यासाश्रम की विधि मनुष्यों को उचित है कि ब्रह्मचर्य्याश्रम समाप्त करके गृहस्थ, गृहस्थ होकर वानप्रस्थ और वानप्रस्थ होके संन्यासी होवें, अर्थात् यह अनुक्रम से आश्रम का विधान है। वानप्रस्थ को उचित है कि -मैं अग्रि में होम करके दीक्षित होकर व्रत, सत्याचरण और [...]

पंचम समुल्लास2023-08-24T15:46:45+00:00

चतुर्थ समुल्लास

अथ चतुर्थसमुल्लासारम्भः विषय : विवाह और गृहाश्रम का व्यवहार 'वह पुरुष या स्त्री गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने का अधिकारी है, जो आचार्यनुकूल वर्त्तता है, जिसका ब्रह्मचर्य खण्डित नहीं हुआ है और जिसने चारों या तीन या दो या कम से कम एक वेद को साङ्गोपाङ्ग पढ़ा है।' -मनुस्मृति [...]

चतुर्थ समुल्लास2023-08-24T15:17:52+00:00
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