ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में कुछ भी अध्ययन करने से पहले बुनियादी चीजें, जो प्रत्येक को पता होनी चाहिएं

यदि हम संस्कृत भाषा में ‘यूनिवर्स’ शब्द के उद्गम स्थल का अध्ययन करें, तो हमें पता चलेगा कि बहुत पुराने समय से विद्वानों का मानना रहा ​​है कि इस ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है और इस ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुएं परिवर्तनशील हैं। संसार में भी हम देखते हैं कि संसार की प्रत्येक वस्तु और घटना का प्रारम्भ व अन्त समय होता है। दुनिया में एक भी चीज ऐसी नहीं है, जो समय के साथ नहीं बदलती। प्राचीन पर्वतों को देखिए, भूवैज्ञानिक बताएंगे, उन पर्वतों की आयु। विभिन्न स्थानों की मिट्टी ब्रह्माण्ड के निर्माण के विभिन्न चरणों का इतिहास बताती है। प्रत्येक वस्तु के निर्माण का एक निश्चित समय होता है। इस कारण से हम कह सकते हैं कि एक वस्तु दूसरी वस्तु की तुलना में नई होती है। पेड़ का फूल पेड़ की पत्तियों की तुलना में नया होता है, जड़ की तुलना में पत्ते नए होते हैं, जिस मिट्टी में वह अंकुरित होता है, उसकी तुलना में जड़ नई होती है, जिस चट्टान के ऊपर वह पेड़ होता है, उसकी तुलना में चट्टान के ऊपर जमीं मिट्टी, जिसपर वह अंकुरित होता है, नई है। चट्टान पृथ्वी की सतह की तुलना में नई है। इसी तरह, भौतिकी और रसायन विज्ञान के वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि अलग-अलग तत्वों को जोड़कर अलग-अलग वस्तुओं का निर्माण किया गया है। इन सभी तथ्यों से यह पता चलता है कि किसी वस्तु की शुरुआत हमारी आंखों के सामने हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती है, लेकिन दुनिया की सभी चीजें या तो दो या दो से अधिक वस्तुओं को जोड़कर बनाई जाती हैं, जैसे फूलों का गुलदस्ता या दो या दो से अधिक चीजों को तोड़कर और फिर उनके हिस्सों को जोड़कर बनाई जाती हैं, जैसे घर का दरवाजा।

सृष्टि की रचना को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ का मानना है कि यह ब्रह्माण्ड परमाणुओं के संयोग का परिणाम नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा के भिन्न-भिन्न केंद्रों के मिलन का परिणाम है। इस मान्यता के अनुसार भी हमें यह स्वीकार करना ही होगा कि एक निश्चित समय था, जब ऊर्जा के ये केंद्र अपनी मूल स्थिति से हटकर ब्रह्माण्ड को उसकी वर्तमान स्थिति में ले आए।

कुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्माण्ड की रचना के लिए परमाणुओं के संयोग की कोई आवश्यकता नहीं है। इस ब्रह्माण्ड का प्रकृति नामक एक मूल तत्व है। प्रकृति नामक यह मूल तत्व ही अपना आकार बदलकर संसार की भिन्न-भिन्न वस्तुएं बन जाता है, ठीक उसी तरह जैसे पानी अपना आकार बदलकर बर्फ बन जाता है। यहाँ हमारा उद्देश्य विभिन्न मान्यताओं का विश्लेषण करना नहीं है। हमारा उद्देश्य सिर्फ इस तथ्य को स्थापित करना है कि यह ब्रह्माण्ड बनाया गया है। हम मानते हैं कि पानी और बर्फ का मूल तत्व एक ही है, लेकिन पानी और बर्फ एक ही चीज नहीं हैं। पानी को बर्फ में बदलने में कुछ समय लगता है। यह तथ्य प्रमाणित करता है कि इस ब्रह्माण्ड का आरम्भ है।

जो लोग मानते हैं कि यह ब्रह्माण्ड एक सपने से ज्यादा कुछ नहीं है, उन्हें भी यह तो स्वीकार करना ही होगा कि हर सपने की एक निश्चित शुरुआत होती है। यह फिर से प्रमाणित करता है कि ब्रह्माण्ड का आरम्भ है।

यहां हमने यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि इस ब्रह्माण्ड की रचना की शुरुआत हुई थी। किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति को इस सत्य को स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती। अब, हमें इस ब्रह्माण्ड की प्रमुख विशेषताओं पर एक नज़र दौड़ानी चाहिए। ब्रह्माण्ड के प्रमुख विशेषताएं नीचे दी गई हैं:

 

  • ब्रह्मांड की प्रत्येक घटना में एक विशेष क्रम होता है। दरअसल, इन्हीं क्रमों के आधार पर मनुष्य अपने भविष्य के कार्यों की योजना बनाता है।

वनस्पति विज्ञान में, हम पाते हैं कि पहले बीज का अंकुरण होता है, फिर फूल होते हैं, फिर फल होते हैं। किसी भी स्थिति में इस क्रम को तोड़ा नहीं जा सकता। किसान या माली इस क्रम को अच्छी तरह से जानते हैं और उसी के अनुसार अपना काम करते हैं। साथ ही, एक विशेष पौधा या पेड़ किसी विशेष बीज से ही अंकुरित होता है। यानी ‘नीम के पेड़’ का बीज बोने पर ‘आम के पेड़’ की उम्मीद नहीं की जा सकती।

शरीर की उम्र बढ़ने का एक विशेष नियम है। जन्म के बाद प्राणी पहले जवान और फिर बूढ़ा होता है। यह संभव नहीं है कि शरीर पहले बूढ़ा और फिर जवान हो जाए। शरीर के विकास के चरणों के बारे में यह तथ्य अनपढ़ माँ को भी पता होते हैं।

चिकित्सा विज्ञान केवल क्रम की उपस्थिति पर आधारित है। इन्हीं नियमों के तहत मरीजों का इलाज किया जाता है।

भूविज्ञान में, एक निश्चित पद्धति है, जिसके आधार पर पहाड़ों की विभिन्न पर्तों, विभिन्न भूमि की मिट्टी आदि के निर्माण का समय और कारण तय किया जाता है। जब किसी भूभाग पर पानी बह रहा था या किसी विशेष भूभाग के नीचे विभिन्न खनिज संसाधनों का अस्तित्व था, उस समय के बारे में निर्णय लेने के लिए निश्चित नियम हैं।

भूगोल में, विशेष नियम हैं, जो पृथ्वी, चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताते हैं। सूर्य का उदय और अस्त होना, चंद्रमा का उदय और अस्त होना, दिन और रात का निर्माण, दिशाओं में जल और वायु का प्रवाह बहुत ही व्यवस्थित है। इन नियमों के कारण, वैज्ञानिक भविष्य की किसी विशेष तिथि पर सूर्य, चंद्रमा आदि की स्थिति की भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं।

मनोविज्ञान को सबसे जटिल और कठिन विज्ञान माना जाता है। हम इस ब्रह्मांड की सभी निर्जीव वस्तुओं को नियंत्रित करने वाले नियमों को रेखांकित करने में सक्षम हैं, लेकिन मानव व्यवहार के संबंध में, हम संदिग्ध हो जाते हैं कि मनोविज्ञान को नियंत्रित करने वाले निश्चित नियम हैं या नहीं। मानव मन बहुत जटिल है, परन्तु यह भी निश्चित नियमों के तहत काम करता है। वस्तुतः, मानव व्यवहार को नियंत्रित करने वाले नियम मानव जीवन से संबंधित अन्य सभी विज्ञानों, जैसे इतिहास, साहित्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि के आधार हैं। आम तौर पर मनुष्य यह मानता है कि इतिहास की विभिन्न घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई नहीं हैं। इतिहास के विद्वानों ने उन नियमों की खोज की है, जिनके द्वारा मानव मन विभिन्न परिस्थितियों में संचालित होता है और पूरी जाति, देश आदि पर अपना प्रभाव छोड़ता है। जिस प्रकार किसी भाषा के भिन्न-भिन्न शब्दों को एक स्थान पर एकत्रित करने मात्र से उस भाषा के व्याकरण का विज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता। व्याकरण का यह विज्ञान तभी उत्पन्न होता है, जब हम उन शब्दों में विद्यमान नियमों की शृंखला को पहचान पाते हैं। इसी प्रकार एक जाति से संबंधित दस या सौ घटनाएं उस देश या समाज का इतिहास नहीं कही जा सकती, जब तक हम ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने वाले नियमों को नहीं जान लेते।

  • इस ब्रह्मांड के संबंध में दूसरी विचारणीय बात इसमें मौजूद सभी चीजों की सार्वभौमिकता (एकता) है। जैसे हमारा शरीर विभिन्न अंगों से मिलकर बनी एक वस्तु है, उसी प्रकार यह ब्रह्मांड जिसमें कई सूर्य, ग्रह, चंद्रमा आदि मौजूद हैं, एक है। ब्रह्मांड की विभिन्न वस्तुओं को नियंत्रित करने वाले नियमों पर विचार करके इस एकता को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है, क्योंकि नियम और कुछ नहीं, बल्कि एक तरीका है, जिससे विभिन्न चीजें संचालित होती हैं या काम करती हैं। आइए, इस बात को एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। मान लीजिए, सौ लड़के हैं, जो हर रोज 10 बजे स्कूल जाते हैं, तो हम कह सकते हैं कि दस बजे स्कूल आने का नियम है। हम इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे? इसका कारण है, सभी छात्रों के व्यवहार में एकता का होना।  इसके विपरीत यदि एक विद्यार्थी 8 बजे विद्यालय आ रहा है, अन्य 9, 10, 11 आदि पर आ रहे हैं, तो हम कह सकते हैं कि विद्यालय आने का कोई नियम नहीं है। इसी तरह, हम इस दुनिया में देखते हैं कि ‘क’ ने जन्म लिया और मर गया, ‘ख’ ने जन्म लिया और मर गया, ‘ग’ ने जन्म लिया और मर गया, इन सब घटनाओं से हम एक नियम निकाल लेते हैं कि जन्म लेने वाला हर प्राणी मृत्यु को प्राप्त होता है।

जिस प्रकार विभिन्न वस्तुओं में एक नियम काम करता है, उसी प्रकार विभिन्न नियमों में भी एकता होती है। उदाहरण के लिए, विभिन्न मनुष्यों की मृत्यु को देखने पर, हमें यह नियम पता चलता है कि सभी मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इसी तरह, विभिन्न पशुओं की मृत्यु को देखने पर, हमें दूसरा नियम पता चलता है कि सभी पशु मृत्यु को प्राप्त होते हैं। विभिन्न पक्षियों की मृत्यु को देखने पर, हमें तीसरा नियम पता चलता है कि सभी पक्षी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इन घटनाओं से हमें निम्नलिखित तीन नियमों का पता चला:

क. सभी मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

ख. सभी पशु मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

ग. सभी पक्षी मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

इन तीनों नियमों में भी एक एकता है। यदि हम कहें कि सभी जीवों की मृत्यु हो जाती है, तो उपरोक्त सभी तीन नियम इस एक नियम में समाहित हो जाते हैं। तीन नियमों ने तीन संबंधित श्रेणियों में पाई जाने वाली एकता की व्याख्या की, जबकि इन तीन नियमों के संयोग से प्राप्त एक नियम, इन तीनों श्रेणियों से संबंधित विभिन्न चीजों में पाई जाने वाली एकता की व्याख्या कर सकता है।

इस बात को ज्यामिति अर्थात geometry के एक अन्य उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। दो सामान्य नियम हैं:

क. एक त्रिभुज अर्थात तीन भुजाओं वाली आकृति के सभी कोणों का योग 180 डिग्री होता है।

ख. एक चतुर्भुज अर्थात चार भुजाओं वाली आकृति के सभी कोणों का योग 360 डिग्री होता है।

इसी प्रकार पाँच, छः, सात, आठ या अधिक भुजाओं वाली आकृतियों के सभी कोणों के योग के निश्चित नियम हैं। अब क्या इन सभी नियमों में एकता हो सकती है? हाँ। इन सभी नियमों को एक नियम में समेटा जा सकता है, जो किसी भी संख्या की भुजाओं वाली आकृतियों के सभी कोणों का योग बता देगा और यह नियम है- किसी आकृति के सभी कोणों का योग ‘आकृति की भुजाओं की संख्या को दो से गुणा करने के पश्चात प्राप्त संख्या में से चार कम करके प्राप्त संख्या’ को 90 डिग्री से गुणा करने पर प्राप्त संख्या के बराबर होता है।

इसी तरह, अंकगणित कुछ विशेष वस्तुओं पर घटाए जाने वाले नियमों की व्याख्या करता है, जबकि बीजगणित इन नियमों में एकता की व्याख्या करता है। ज्यामिति द्वारा दिए गए नियम त्रिभुज, चतुर्भुज आदि तक सीमित हैं, लेकिन बीजगणित के नियम दुनिया की अन्य वस्तुओं तक विस्तारित हो जाते हैं।

रसायन विज्ञान, भौतिकी, जीव विज्ञान, गणित आदि से संबंधित सभी नियम एक विशेष विज्ञान में एकता पाते हैं और इस विशेष विज्ञान के नियम ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं पर लागू होते हैं। इस विज्ञान को ‘आध्यात्मवाद’ कहा जाता है। यदि ब्रह्मांड में एकता न होती, तो ऐसा नहीं हो सकता था।

  • ब्रह्मांड की तीसरी विचार-योग्य वस्तु है- इसकी रचना का उद्देश्य। उद्देश्य के अभाव में ब्रह्माण्ड की नियमबद्धता और एकत्व अर्थहीन हो जाते हैं। किसी चीज का उद्देश्य ही उसे सार्थक बनाता है। कुछ उद्देश्य को समझ पाते हैं और कुछ नहीं, लेकिन उद्देश्य होता अवश्य है। यदि एक व्यक्ति दूसरे का उद्देश्य न समझ पाए, तो इसका यह अर्थ नहीं होता कि उसका कोई उद्देश्य ही नहीं था। आइए, इस बिंदु को एक कथा के माध्यम से समझते हैं। एक बार, एक यूरोपियन अरब अथवा अफ्रीका की पिछड़ी जाति ‘बद्दू’ का अतिथि बना। एक सुबह, वह अपने डेरे के सामने टहल रहा था। ‘बद्दू’ लोग उसे ऐसा करते देख हंसने लगे, जैसे कि वह मूर्ख हो। बद्दू लोगों की इस प्रतिक्रिया का कारण था, उनका अपने अतिथि की चहलकदमी करने के कारण को न समझ पाना। लेकिन, उसकी चहलकदमी करने के कारण को यूरोपीय लोग बहुत अच्छी तरह समझ सकते थे। हम लोगों का भी यही हाल है। हम अपने आस-पास होने वाली विभिन्न घटनाओं के उद्देश्य को अपने स्वयं के उद्देश्य से जोड़ते हैं। जो चीजें या घटनाएं हमारे अपने उद्देश्य के अनुरूप होती हैं, उन्हें हम अर्थवान व अन्यों को गलत कह देते हैं। इसे हमारी मूर्खता ही कहा जा सकता है।

एक बड़ी मशीन को देखिए जिसमें हजारों पुर्जे हैं, कुछ बड़े, कुछ छोटे, कुछ गोल, कुछ सीधे आदि। इन पुर्जों के रूप-रंग आदि में इतना अधिक अंतर होता है कि उनमें एकता खोजना मुश्किल है, लेकिन उन पुर्जों के बीच की एकता को उस मशीन के निर्माता द्वारा ‘उस मशीन के निर्माण के उद्देश्य’ के रूप में समझाया जा सकता है। निर्माता चाहता था कि वह मशीन एक विशेष उद्देश्य को पूरा करे, चाहे वह कपड़ा बनाना हो या किताबों का प्रकाशन या गेहूं पीसना। मशीन के निर्माता ने मशीन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही भिन्न-भिन्न आकार के पुर्जों को साथ-साथ मिलाया। मशीन के पुर्जे भौतिक विशेषताओं के रूप में भिन्न-भिन्न होते हुए भी मशीन के उद्देश्य को पूरा करने के अर्थ में समान या एक हैं। पुर्जों की उपयोगिता मशीन की उपयोगिता में निहित है। मशीन के उद्देश्य को पूरा करना ही इसके विभिन्न पुर्जों का उद्देश्य है। मशीन के कुछ पुर्जे बदसूरत लग सकते हैं और उनके स्थान पर सुंदर पुर्जे बनाए जा सकते हैं। लेकिन, यदि वे खूबसूरत पुर्जे मशीन नहीं चला पाते, तो वे अर्थहीन हो जाते हैं। इस ब्रह्मांड की स्थिति उदाहरण में वर्णित मशीन के समान है। यह ब्रह्मांड एक विशेष उद्देश्य से बनाया गया है, जिससे हम अनजान हो सकते हैं। इस ब्रह्मांड की सबसे छोटी घटना या वस्तु ब्रह्मांड के उद्देश्य को ही पूरा करने के उद्देश्य से रची गई है। इस ब्रह्मांड की कोई भी घटना या वस्तु कितनी भी हानिकारक क्यों न हो, वे सभी ब्रह्मांड के उद्देश्य को पूरा करती हैं।

जिस व्यवस्था का हमारी पृथ्वी एक छोटा सा सदस्य है, वह अत्यन्त विशाल, विविध और व्यवस्थित है। इस ब्रह्माण्ड में जिन ग्रहों और उपग्रहों की रचना की गई है, उन्हें परिमाण, दूरी, दिशा आदि से इतनी अच्छी तरह व्यवस्थित किया गया है कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड पूर्णतया स्थिर और सुरक्षित है, जैसे एक पशु के शरीर में विभिन्न अंग।

ये सब इतने आश्चर्यजनक रूप से रचा गया है कि वस्तुतः खतरनाक प्रतीत होने वाली वस्तुएं विनाश को रोकने और सार्वभौमिक कल्याण को सुनिश्चित करने की माध्यम हैं। ब्रह्माण्ड की भिन्न-भिन्न वस्तुएं पारस्परिक रूप से क्षतिपूर्ति करने वाली व एक दूसरे को संतुलित करने वाली होती हैं। 

रॉबर्ट फ्लिंट की पुस्तक थीज्मसे उद्धरित

एक चीज, जिसे हम एक पहलू से हानिकारक मानते हैं, वह दूसरे पहलू से फायदेमंद साबित होती है।

यदि हमें एक छोटे से फूल के उद्देश्य के बारे में जानना है, तो हमें इसे कईं सांसारिक पहलुओं से देखना होगा। मनुष्य की दृष्टि से फूल उसकी आंख और नाक को तृप्त करता है, बशर्ते कि वह सुगंध देता हो, डॉक्टरों के लिए उसी फूल की उपयोगिता उसका किसी औषधि के निर्माण में सहायक होना है, एक चित्रकार अपने चित्रों में उसका उपयोग करता है, एक कवि उससे प्रेरणा लेता है, रंग बनाने वाला उससे विभिन्न रंग बनाता है आदि। फूल के अन्य उद्देश्य भी होते हैं, जो मनुष्य के लिए उसकी उपयोगिता से भिन्न होते हैं, उदाहरण के लिए, मधुमक्खियां उसके रस से शहद बनाती हैं, भंवरे उसका रस पीते हैं, तितलियों को उस पर बैठने से आनंद मिलता है। फिर वही फूल विभिन्न प्राणियों के इतने उद्देश्यों को पूरा करने के बाद, अपने पौधे या पेड़ के बीज पैदा करता है, ताकि वह अपनी मृत्यु के बाद जीवित रह सके। यह एक छोटे से फूल के बारे में है। इस तरह हम ब्रह्मांड की अन्य सभी चीजों के बारे में सोच सकते हैं।

  • ऊपर हमने यह दिखाने की कोशिश की है कि ब्रह्मांड में व्यवस्था, एकता और उद्देश्य है। एक और बात, जिसके बिना इस ब्रह्मांड को पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता, वह है इसकी विशालता। यह ब्रह्मांड केवल एक पहलू से ही नहीं, बल्कि सभी पहलुओं से विशाल है। लंबाई और चौड़ाई की दृष्टि से हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि हम कितने फुट में इस ब्रह्मांड को माप सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पृथ्वी की परिधि 25000 मील है। 25000 मील का यह आंकड़ा भी काफी बड़ा है, जबकि हमारा शरीर केवल 5-6 फीट लम्बा ही होता है। पृथ्वी की विशालता का अंदाजा इसके नक्शे को बंद आंखों से देखकर बेहतर लगाया जा सकता है। इसमें कईं पर्वत हैं और इसका एक बड़ा हिस्सा महासागरों से भरा है। पर्वतों की विशालता को समझने के लिए एक पर्वत के सामने खड़े हो जाएं – इसे देखें, फिर अपने आप को देखें और फिर इन दोनों की तुलना करें। इसके तुरंत बाद, व्यक्ति को पर्वत की विशालता का अनुभव होने लगता है। अब इस पृथ्वी की विशालता की कल्पना कीजिए, जिसमें असंख्य पर्वत हैं। अब, हम महासागर लेते हैं। इन महासागरों को पार करने के लिए मनुष्य ने बड़े-बड़े जहाज बनाए हैं और उसे अपने द्वारा बनाए गए जहाजों की विशालता पर गर्व है। इन विशाल जहाजों को एक महासागर के दूसरे किनारे की झलक पाने के लिए कईं महीनों का सफर तय करना पड़ता है। और इस पृथ्वी में कईं महासागर हैं। इन सब कारणों से हम इस पृथ्वी की विशालता के कायल हो जाते हैं। लेकिन क्या यह पृथ्वी ब्रह्मांड की सबसे बड़ी चीज है? सूर्य इस पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है। और इस ब्रह्मांड में करोड़ों सूर्य हैं। सूर्य की किरणें, जो लगभग 2,00,000 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से यात्रा करती हैं, इस पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग 8 मिनट का समय लेती हैं। इससे हमें अनुमान हो जाता है कि सूर्य पृथ्वी से कितना दूर है। कईं खगोलीय पिंड ऐसे हैं, जिनका प्रकाश हजारों प्रकाश वर्षों बाद अन्य खगोलीय पिंडों तक पहुंचता है। ये तथ्य ब्रह्मांड की विशालता की कल्पना करने में सहायता करते हैं।

ऊपर हमने लंबाई और चौड़ाई की दृष्टि से ब्रह्मांड की विशालता के बारे में बात की है। सूक्ष्मता की दृष्टि से भी यह विशाल है। यदि हम किसी वस्तु को अथवा उसके हिस्सों को तोड़कर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बनाने का प्रयत्न करें, तो एक अवस्था से आगे, हमारी कल्पना भी जाने से इंकार कर देती है। उदाहरण के लिए, पानी को गर्म करने पर उसके कण हमारी आंखों के सामने जलवाष्प के रूप में नाचने लगते हैं, लेकिन यदि हम फिर भी पानी को गर्म करते रहें, तो वे कण हमारी नजरों से परे हो जाते हैं। इसी तरह, हम यह नहीं जान सकते कि इस ब्रह्मांड में कितनी सूक्ष्म चीजें मौजूद हैं।

नियमों की विशालता भी अद्भुत है। एक विषय चुनें और आपको उस विषय से संबंधित कईं नियम मिलेंगे। अनगिनत नियमों वाले कई विषय हैं। नियमों की विशालता फिर से इस ब्रह्मांड की विशालता साबित करती है।

कुछ लोग यह सवाल करते हैं कि जब एक बड़ी चीज कई छोटी चीजों से बनी होती है, जैसे समुद्र और कुछ नहीं, बल्कि पानी की बहुत सारी बूंदों का समुच्चय है और एक पहाड़ मिट्टी के बहुत सारे कणों के जुड़ने के अलावा और कुछ नहीं है, तो विशालता की बात करना कैसे महत्त्व रखता है? यह सच है कि समुद्र पानी की कई बूंदों से बना है और पहाड़ मिट्टी के कणों से बना है, लेकिन विशालता का मानव मस्तिष्क पर बिल्कुल अलग ही प्रभाव पड़ता है। समुद्र की विशालता इसे पूरी तरह से अलग चीज बनाती है। 1000 सैनिकों की सेना को देखने और एक-एक करके 1000 सैनिकों को देखने का प्रभाव एक जैसा नहीं कहा जा सकता। ऐसे में यह कहना गलत है कि किसी चीज की विशालता को इतना महत्व देने की जरूरत नहीं है।

कभी-कभी, मानव निर्मित चीजें, जैसे पानी के जहाज, हवाई जहाज, उपग्रह आदि हमें आश्चर्यचकित कर देते हैं। वस्तुतः, हम इन चीजों की विशालता से नहीं, बल्कि मनुष्य के द्वारा अपनी छोटी बुद्धि से इन चीजों के निर्माण से चकित हो जाते हैं। आइए, इस बात को एक उदाहरण के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं। अगर 2-3 साल का बच्चा, एक विद्वान की तरह भाषण देना शुरू कर दे, तो हमें इसलिए आश्चर्य नहीं होता कि एक छोटे बच्चे ने विद्वान को पीछे छोड़ दिया, बल्कि आश्चर्य इसलिए होता है कि इतने छोटे बच्चे से इस तरह के भाषण की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। मानव निर्मित वस्तुओं का भी यही हाल है। ईमानदारी से, सबसे बुद्धिमान व्यक्ति की कारीगरी इस ब्रह्मांड के निर्माता की कारीगरी का एक अरबवां हिस्सा भी नहीं है। मानव निर्मित चीजें ब्रह्मांड की चीजों के सामने वैसे ही हैं, जैसे घड़ा और समुद्र। 

यदि यह ब्रह्मांड एक निर्मित वस्तु है, तो अवश्य ही कोई ऐसी सत्ता होगी, जिसने इसे बनाया है और इसी सत्ता को ईश्वर कहा जाता है।

– ऊपर दिए अधिकतर विचार पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय जी के हैं।