जब कोई व्यक्ति सामयिक सामाजिक प्रवाह को रोक ही नहीं सकता, तो उसी प्रवाह में बह जाने को अनुचित क्यों माना जाए?

 

एक व्यक्ति का सामयिक सामाजिक प्रवाह को रोक सकना असंभव सा है। व्यक्ति का उद्देश्य सामयिक सामाजिक प्रवाह को रोकना अथवा बदलना नहीं है। उसका सामाजिक प्रवाह को रोकने अथवा बदलने का उद्देश्य तभी बनता है, जब उसका ऐसा करना, उसके अन्तिम लक्ष्य ‘मोक्ष’ को प्राप्त करने के लिए आवश्यक हो जाता है।

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