त्याग और तप में क्या सम्बन्ध है?
किसी चीज़ को छोड़ देना त्याग है, जबकि धर्म के निर्वहन में आने वाली कठिनाइयों को शान्ति व धैर्य से सहन करना तप है। इन कठिनाइयों से अभिप्राय हमारा कुछ वस्तुओं को छोड़ देना अथवा उनका छूट जाना होता है। इस तरह त्याग की भावना तप में निहित होती है। ‘त्याग’ तभी सार्थक होता है, जब उसको करते हुए मन में प्रसन्नता का भाव हो। त्याग में चीजों का छोड़ना हमारी इच्छा से होता है। जब तक हम अपना कुछ समय, धन, सुख-सुविधा आदि न्यौछावर करने को तैयार नहीं होते, तब तक हम अपने परिवार, समाज, राष्ट्र आदि के लिए कुछ नहीं कर सकते।