सन्ध्या क्या है?

 

यहाँ सन्ध्या का अर्थ शाम अर्थात evening time नहीं है, सन्ध्या का अर्थ है, सम (+) ध्या, अर्थात अच्छी प्रकार ईश्वर का ध्यान करना। जिस प्रकार दिन और रात्रि, प्रतिदिन, प्रात: और सांय दो बार मिलते हैं, सूर्योदय और सूर्यास्त दो सन्धि बेला हैं, उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा के मिलन के भी यही दोनों समय आदर्श समय हैं। अर्थात, सन्ध्या सुबह और शाम दोनों समय के ध्यान को कहते हैं।

ईश्वर के चिन्तन के लिए वेद व कुछ वेदानुकूल ग्रन्थों के मंत्र छांट लिए गए हैं। इन मन्त्रों में हमारे शरीरिक बल, ज्ञान व कर्मों की उच्चता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने के साथ-साथ समस्त संसार को धारण और पोषण करने वाले अनन्त सामर्थ्यशाली ईश्वर की स्तुति और उपासना भी की गई है। इन मन्त्रों में यह भी प्रार्थना की गई है कि हमारे कर्मों के अतिरिक्त, सभी कर्मफल को प्रभावित करने वाले अन्य तत्व हमारे लिए कल्याणकारक हों। महर्षि दयानन्द के अनुसार, ईश्वर को प्राप्त करने की चाह रखने वाला हर व्यक्ति, हर दिन कम से कम दो घण्टे ईश्वर का ध्यान अवश्य करे। परन्तु, ईश्वर का ध्यान करने में हमारे वर्णों द्वारा निर्धारित कर्तव्यों की अवहेलना कदापि नहीं होनी चाहिए। ऐसा होने पर, ईश्वर के ध्यान से पुण्य के बजाए पाप में वृद्धि हो जाती है।

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