वेद क्या हैं? इनके रचयिता कौन हैं? वेदों को पढ़ने की क्या आवश्यकता है? हम क्यों मानें कि वेदों का रचयिता ईश्वर ही है?

 

मनुष्य के अल्पज्ञ, अर्थात थोड़ा जानने वाला होने के कारण किसी विषय पर उसके विचारों को अन्तिम नहीं माना जा सकता, इसलिए किसी विषय को प्रतिपादित करने के लिए, अगर, किसी के विचारों को अन्तिम माना जा सकता है, तो, वह केवल सर्वज्ञ अर्थात सब कुछ जानने वाला ही हो सकता है। वेदों में निहित ज्ञान, किन्हीं व्यक्तियों के विचार नहीं, बल्कि, ईश्वरीय ज्ञान है। इस बात को निम्नलिखित तर्कों से सिद्ध किया जा सकता है।

1. अगर हम किसी टैक्निकल चीज़ को खरीदते हैं तो निर्माता की तरफ से हमें एक booklet दी जाती है जिसमें उस चीज़ के प्रयोग आदि की विधि लिखी होती है। यदि,  कम्पयूटर जैसी साधारण वस्तु के खरीददार को निर्माता द्वारा उसके उचित प्रयोग के लिए आवश्यक ज्ञान अर्थात दिशा – निर्देश न देना असामान्य है, तो, यह आवश्यक है कि सृष्टि जैसी उत्कृष्ट कृति के निर्माता द्वारा सृष्टि के उचित उपयोग के लिए, सृष्टि के आरम्भ में आवश्यक ज्ञान अर्थात दिशा-निर्देश दिया गया। क्योंकि, वेद-ज्ञान का लाभ प्राणी को मानव योनि में ही हो सकता है, इसलिए सृष्टि के आरम्भ का अर्थ यहां, मानव का इस सृष्टि में आगमन लिया गया है। यह ज्ञान ईश्वर ने कुछ ऋषियों की आत्माओं में प्रकाशित किया। यह ज्ञान ही वेद है। वेद का शाब्दिक अर्थ भी ज्ञान ही है। यह ज्ञान आज वेद नाम की पुस्तकों में संजो लिया गया है।

2. मनुष्य अल्पज्ञ है, इसलिए, उसके द्वारा निर्मित वस्तुओं में समय के साथ-साथ सुधार होता रहता है। व्यक्ति द्वारा निर्मित किसी भी वस्तु को उसकी अन्तिम अवस्था (final stage)  नहीं कहा जा सकता। उदाहरणार्थ, हम मनुष्य द्वारा निर्मित computer, mobile आदि को देख सकते हैं। पिछले 10-15 वर्षों में ये दोनों लगातार परिष्कृत होकर भिन्न- भिन्न अवस्थाओं से गुज़रे हैं। इसके विपरीत, ईश्वर, जो सर्वज्ञ है, द्वारा निर्मित प्रत्येक वस्तु पूर्णता को प्राप्त किए हुए होती है, अर्थात उनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरणार्थ, हम अपने शरीर को ही देखें। इसकी रचना में हम किसी भी तरह की अपूर्णता अथवा त्रुटि नहीं ढूंढ सकते। वेद में कही किसी भी बात को, आज तक, अन्यथा सिद्ध नहीं किया जा सका।

3. ज्ञान की परम्परा पुरानी है, और यह दूसरों से प्राप्त होता है। हम अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करते हैं। गुरु ने अपने गुरु से, और उन्होंने भी अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त किया। पीछे चलते जाने पर अन्त में प्रश्न होता है, कि, सृष्टि के प्रारम्भ में ज्ञान किससे प्राप्त होता है। तब, सभी शास्त्रों का एक ही उत्तर है, कि, वह परमात्मा ही गुरुओं का गुरु है। उसी ने सृष्टि के प्रारम्भ में प्राणी मात्र के कल्याण के लिए ज्ञान दिया है, जिससे व्यक्ति संसार को, अपने-आपको और परमात्मा को जान सके। संसार क्या है? संसार में परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के साथ कैसे बर्तना है? मनुष्य के इन सबके प्रति कर्तव्य कर्म क्या हैं? मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ? मैं क्या लेकर आया था? मुझे क्या लेकर जाना है? मेरा संसार में आने का उद्देश्य क्या है? यह संसार कहां से आ गया? संसार के इस सृष्टा का स्वरूप क्या है? इसकी उपासना क्यों करें? कहाँ करें? किसलिए करें? आदि प्रश्नों के उत्तर वेदों में है।

4. वेद की शिक्षाएं, केवल, किसी देश, काल, लिंग, जाति या समूह विशेष के लिए ही उपयोगी नहीं है। इनकी उपयोगिता प्राणी मात्र के लिए सार्वकालिक व सार्वदेशिक है। यदि कोई शंका करे, तो, वह वेद- मन्त्रों के अभिप्राय को देखें और समझें, जिनमें आस्तिक्ता, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, विश्व मैत्री, परस्पर की सदभावना, व्रत पालन जैसे भावों का संकलन है।

5. रचना में रचयिता के गुण कर्म, और स्वभाव प्रतिबिम्बित होते हैं। वेदों में पाई जाने वाली को भी बात, ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव के विपरीत नहीं है।

किसी विषय के समर्थन व विरोध में वेद में कही बातें व वेदों के अनुरूप ऋषियों के वचन शब्द-प्रमाण माने जाते हैं।

वेद मन्त्रों के अर्थों को जानने, समझने व कार्यान्वित करने की महत्ता को बयान करना मुश्किल है। वेद मंत्रों के सही उच्चारण की भी विशेष सार्थकता है। परन्तु, अर्थों को छोड़ वेद मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण से हमें इस ज्ञान के सही तात्पर्य का पता नहीं चल सकता।

ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान का अन्धकार दूर होता है। अज्ञान ही दुखों का कारण है। जितना जितना, हम ज्ञान को अर्जित करते जाते हैं, उतना उतना, हमारे दुखों में कमी आती जाती है। जिन परिस्थितियों के कारण हमें दुख होता है‚ ज्ञान उन परिस्थितियों में कमी नहीं लाता बल्कि, हमारे अन्दर ऐसा प्रकाश भर देता है, कि, हमें हमारी इच्छा के विरुद्ध परिस्थितियों के रहने पर भी दुख की अनुभूति नहीं होती । ईश्वर प्रदत्त वेद सच्चे ज्ञान का एक मात्र स्रोत है। यदि, हम ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो, हमारे पास वेदों को पढ़ने के इलावा, अन्य कोई विकल्प नहीं है।

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