ईश्वर की उपासना का तरीका व उसका लाभ क्या है?

 

रुचिकर, वायु के आवागमन से युक्त, एकान्त स्थान में, ऐसे आसन में बैठें, जिसमें सुखपूर्वक लम्बे समय तक बगैर हिले-डुले बैठा जा सके। रीढ़ की हडडी एवं गर्दन सीधी रखें। दृष्टि सामने रहे, परन्तु आंखें बन्द रखें। उसके बाद संसार की नश्वरता व परिवर्तनशीलता का ध्यान करें। फिर विचारें कि पिछले दिन यम और नियम (अष्टांग योग के प्रथम दो अंग)  का आपने कहां तक पालन किया। फिर प्राणायाम करें। फिर मन को हृदय प्रदेश आदि में लगाकर ईश्वर के गुणों का चिन्तन करें। मन के भटकने पर पुन: पुन: उसे हृदय प्रदेश आदि में लगाकर ईश्वर के गुणों का चिन्तन करें। कुछ ही दिनों के अभ्यास से मन की भटकन में सुधार प्रतीत हो जाएगा। उपासना से हमारे आत्मिक-बल में अत्याधिक वृद्धि होती है।

ध्यान को ही उपासना कहा जाता है।

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