जड़ पदार्थों की पूजा से क्या हानि है?
मानव जीवन का अर्थ आत्मा की उन्नति ही है। ईश्वरोपासना आत्म-उन्नति का सर्वमान्य साधन समझा जाता है। जब आत्मा अपनी वृत्तियों को जगत से हटा, अन्तर्मुख हो, ईश्वर चिन्तन में लीन होता है, तो, हम उसी सामीप्य को उपासना कहते हैं। इसी उपासना द्वारा जीवात्मा अपने मलों अर्थात बुराईयों को दूर कर, ईश्वरीय गुणों को धारण करता है। परन्तु, यदि, हम ईश्वर के स्थान पर जड़ जगत अथवा जड़ मूर्ति का सामीप्य ग्रहण करते हैं, तो, स्वभावत: उन्हीं के गुण हम में आते हैं। एक प्रसिद्ध कहावत है-जैसी हमारी संगति होगी, वैसे ही हम बनेंगे। जड़ मूर्ति में ईश्वरीय गुणों का अभाव होता है।