क्यों जीवात्मा को विकलांग व रोगी शरीर में आना पड़ता है?
जीवात्मा का शरीर से स्वत: संयोग वियोग नहीं होता। यदि जीवात्मा से पृथक कोई कर्त्ता न होता, तो कोई भी जीवात्मा कभी भी लूले, लंगड़े, अन्धे, काने अथवा रोगी शरीर को स्वयं धारण न करता। जीवात्मा सदा सुन्दर शरीर को ही धारण करता, न कभी मरता और न कभी दुख को ही स्वीकार करता, क्योंकि, वह कभी भी दुख नहीं चाहता। जो शक्ति, जीवात्मा को लूले, लंगड़े, अन्धे, काने अथवा रोगी शरीर से संयोग या वियोग करवाती है, उसी शक्ति का नाम ईश्वर है। और ऐसा संयोग या वियोग, जीवात्मा के कर्मों के फल स्वरूप होता है।