1 नित्य कर्म– ऊपर वैदिक धर्म के बारे में बताते हुए हमने प्रत्येक सनातन धर्मी को निम्नलिखित पंचमहायज्ञ प्रतिदिन करने की बात कही थी।
1 ब्रह्म यज्ञ 2 देव यज्ञ या हवन या अग्निहोत्र 3 पितृ यज्ञ 4 अतिथि यज्ञ 5 बलिवैश्व देव यज्ञ
प्रत्येक उत्तम कर्म यज्ञ कहलाता है। जो उत्तम कर्म हमें हर दिन करने होते हैं, उन्हें महायज्ञ कहा जाता है।

1 ब्रह्म यज्ञ (ईश्वर का चिन्तन)

प्रारम्भ में, प्रतिदिन प्रातःकाल 5-10 मिनट एकान्त स्थान पर निश्चल बैठकर अपनी ऑंखें बन्द कर सांसों पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करना चाहिए। सायंकाल भी इसी तरह अभ्यास करना चाहिए। हालाँकि, इस आरम्भिक स्थिति में ईश्वर के सही स्वरूप का बोध न होने के कारण उपरोक्त अभ्यास ही पर्याप्त है, परन्तु, फिर भी पाठकगण यदि, ध्यान की स्थिति में बैठकर अपने अस्तित्व में ईश्वर के योगदान का चिन्तन करें व अब तक की उनकी मान्यता के अनुसार ईश्वर के स्वरूप का चिन्तन करें, तो अति उत्तम होगा।

ईश्वर पर मन की एकाग्रता की आसानी के लिए ब्रह्मयज्ञ से पूर्व अपनी रुचि के अनुसार किसी एक भजन को मन में दोहराएं। इसके लिए हमें दो तीन भजन स्मरण होने चाहिएं। यहाँ आपकी सुविधा के लिए तीन भजन दिए जा रहे हैं।

2 देव यज्ञ या हवन या अग्निहोत्र- पर्यावरण व स्वयं की शुद्धि के लिए विशेष कर्म।

इस परिभाषा के अनुसार हर वह कार्य, जो पर्यावरण की शुद्धि के लिए किया जाता है, उसे देवयज्ञ कहा जा सकता है। वे कार्य पेड़ लगाने, पर्यावरण को दूषित करने वाले पलास्टिक जैसे पदार्थों को नष्ट करने आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। पर्यावरण का स्वास्थ्य वायु और जल के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है और वायु व जल को स्वस्थ रखने का हवन एकमात्र उपाय है। हमारे ऋषियों ने हवन में कुछ ऐसे मंत्रों अथवा विचारों का विनियोग कर दिया है कि यह कर्म केवल पर्यावरण की शुद्धि के लिए न होकर आत्मा की शुद्धि के लिए भी है।

वैसे तो, हर मानव के लिए प्रतिदिन प्रातःकाल व सायंकाल अग्निहोत्र करना आवश्यक है, जिसका कारण अगले स्तरों में स्पष्ट कर दिया जाएगा, परन्तु, हमें हर विशिष्ट अवसर पर अपने घर में पूजा आदि के स्थान पर हवन करवाने की आदत डालनी होगी, जिसमें पड़ोसियों आदि को भी आमंत्रित किया जाए।

3 पितृ यज्ञ

माता-पिता और बड़ों की देखभाल और सेवा। पितृ यज्ञ के दो भाग किए जा सकते हैं- श्राद्ध और तर्पण। प्रत्येक वह कर्म, जिससे माता-पिता और बड़ों की बाह्य पदार्थों से सेवा कर उन्हें तृप्त किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं। तर्पण के अन्तर्गत वे कर्म आते हैं, जिनसे माता-पिता और बड़ों की आन्तरिक इच्छाओं को तृप्त किया जाता है। 

4 बलिवैश्व देव यज्ञ- गरीबों, आश्रितों और विकलांगों की देखभाल और सेवा।

5 अतिथि यज्ञ- विद्वानों, सुधारकों और संन्यासियों की देखभाल और सेवा।

 2 स्वाध्याय हमें अपनी दिनचर्या में इन नित्य कर्मों को शामिल करने के साथ-साथ नियमित रूप से 10-15 मिनट वेद व आर्ष ग्रंथों को पढ़ने का भी अभ्यास करना चाहिए।

बहुत से लोग समाज में परिवर्तन तो चाहते हैं, पर स्वयं में परिवर्तन नहीं चाहते। प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, न्यायिक अधिकारी, राजनेता आदि हमारे समाज से ही निकलते हैं। यदि हम इनमें परिवर्तन चाहते हैं, तो हमें स्वयं को बदलना होगा।  अच्छे भविष्य के लिए कुछ त्यागना पड़ता है। यदि हम भावी पीढ़ी को अच्छा भविष्य देना चाहते हैं, तो हमें अपनी नियमित दिनचर्या से हटकर अपना कुछ समय अपनी संस्कृति के उत्थान के लिए भी देना होगा। हमें अपने comfort zone से बाहर निकल कर, अधिक से अधिक, ऋषियों के वचनों को पढ़ना व सुनना होगा। केवल यही त्याग, अच्छे भविष्य की आधारशिला रख सकता है। 

हमारी बुद्धियों का भिन्न-भिन्न स्तरों का होने के कारण सभी से यह आशा करनी निरर्थक है कि हम सारे वैदिक वाङ्गमय को अच्छी तरह समझकर उस पर आचरण करें, परन्तु, इतना तो सभी से आपेक्षित ही है कि वे वेदों की मौलिक बातों को जानें व तदनुसार आचरण करें। इससे बहुत सी सामाजिक बुराइयाँ स्वमेव ही समाप्त हो जाएंगी।

 हमारी संस्कृति मानवता की पर्याय है। अपनी संस्कृति को ऊपर उठाना, मानवता को ऊपर उठाना ही है। अपनी संस्कृति के उत्थान के लिए अत्यन्त तप की आवश्यकता है। आज, मानवता त्राहि-त्राहि कर रही है। हमें, ऐसे समाज की आधारशिला रखनी है, जहां हरेक व्यक्ति सुखपूर्वक रहते हुए अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य की ओर, बगैर किसी बाधा के बढ़ सके। इसके लिए हमें अपनी दिनचर्या को बदलते हुए, अपने 3-4 हज़ार साल पहले के पूर्वजों के ज्ञान को अधिक से अधिक आत्मसात करना होगा।

-आज अधिकतर संसार असनातन सम्प्रदायों को ही मानता है। आर्यों के वंशज तो वहीं कहे जा सकते हैं जो राम, कृष्ण आदि महापुरुषों को अपना पूर्वज मानते हैं, भले ही किन्हीं कारणों से वो आज सत्य से दूर हो चुके हैं। यहाँ अनेकों बार हमारे पूर्वजों की बड़ाई की गई है। यह बड़ाई हमें अपने अतीत पर गौरव करने को बाध्य करती है, लेकिन यह भी हमें याद रखना होगा कि  भविष्य अतीत पर नहीं, वर्त्तमान पर खड़ा होता है। हमें वर्त्तमान में, अपने अतीत पर ही गर्व नहीं करते रहना है, बल्कि, अपने पूर्वजों के सुझाये मार्ग पर भी चलना है, ताकि हमारा भविष्य भी हमारे अतीत की भांति स्वर्णिम हो और हम ऋषि-ऋण से उऋण हो सकें। वे लोग संसार के लिए बहुत हानिकारक होते हैं जो वर्त्तमान में, अपने भूतकाल की बड़ाई करने के इलावा कुछ नहीं करते।   

3 सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विचार ईश्वर ही हमारा वास्तविक मित्र है। हम हर तरह की मनःस्थिति उसी के साथ साँझा कर सकते हैं व वही हमें दुखों से निकाल सकता है। सनातन धर्म में, जिसे आज हिन्दु-धर्म से भी जाना जाता है, इसी विचार को बुद्धि से परीक्षा करके मानसिक धरातल पर लाके अपने आचरण में उतारा जाता है। परिपक्वता की स्थिति में इसी विचार को ईश्वर-प्रणिधान कहा जाता है। जितना-जितना हमारे जीवन में ईश्वर-समर्पण आता जाता है, उतनी-उतनी सांसारिक बाधाएं विफल होती जातीं हैं। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ईश्वर-समर्पण का ही एक भाग है।

इस वेबसाइट पर बनाए गए हिन्दू धर्म को जानने के विभिन्न स्तरों का उद्देश्य इसी विचार की पूर्णता को प्राप्त करना है। इसलिए, प्रत्येक स्तर की सामग्री पढ़ते व सुनते हुए हमें निरंतर इसी लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए।

4 हमें अपने नाम के आगे या अन्त में ‘आर्य’ शब्द लगाना होगा, ताकि हमारी अलग पहचान बन सके। यह बिलकुल वैसे ही है, जैसे मैडिकल कालेज में दाखिला मिलते ही छात्र के नाम के आगे डाक्टर लगा दिया जाता है, जबकि, डाक्टर तो वह पाँच साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बनता है। 

5 हमें अपने श्रेष्ठ पूर्वजों- राम, कृष्ण, हनुमान, शिव आदि का नाम सम्मान से लेना होगा। हमें अपना ज्ञान इस तरह का रखना है कि हम राम के अन्यायी होने की कथाओं का खण्डन, कृष्ण के माखन-चोर, व्यभिचारी आदि होने का खण्डन, हनुमान के बन्दर होने का खण्डन, शिव के भांग पीने आदि का खण्डन कर सकें। हमें उन सभी ग्रंथों का परित्याग करना होगा, जिनमें लीलाओं के नाम पर हमारे महापुरुषों के चरित्रों को धूमिल किया जाता हो। 

6 हमें हिंदु-धर्म में घुस चुके उन सभी सम्प्रदायों की अवमानना करनी होगी, जिन्होंने अपने सम्प्रदायों के मूल में अवैदिक मान्यताओं को स्थान दे रखा है। इस तरह के सम्प्रदायों का समर्थन करने वाले अपने मित्र-समूह, रिश्तेदारों आदि से भी हमें उचित दूरी बनानी होगी। साथ-साथ हमें उन हिन्दू-धर्म के गुरुओं से भी अपना समर्थन वापिस खींचना होगा, जो धर्म-गुरु हमारी मान्यताओं पर वैचारिक आक्रमण होने पर आक्षेपों का तर्कपूर्ण व वैदिक मान्यताओं के अनुरूप उत्तर नहीं दे पाते या उत्तर देने से कतराते हैं।

7 हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन 10-15 मिनट के लिए व्यायाम अवश्य करना चाहिए। शारीरिक स्वस्थता के लिए वैबसाइट्स https://www.youtube.com/c/bharatyoga, www.ramverma.com और “LIVE”🔴 Mind Power for Achieving Success || Dr Mohit Gupta || Edu Conf 2022 – YouTube सुझाई जा रहीं हैं। हालाँकि ये वैबसाइट्स पूर्णतया वैदिक नहीं हैं, परन्तु इनमें दी गई अधिकतर सामग्री हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभप्रद है। अपने पूरे समय का केवल कुछ भाग ही हम इन वैबसाइट्स / चैनल के उपयोग में बिताएँ व यह ध्यान रखें कि हमारा अन्तिम ध्येय शारीरिक स्वास्थ्य से कहीं ऊँचा है।

8 हमें कुछ भी अपने शरीर में डालते हुए उस वस्तु की हमारे शरीर के लिए उपयोगिता व गुणवत्ता पर अवश्य विचार करना चाहिए और प्रत्येक वस्तु को प्रसन्नता पूर्वक ही ग्रहण करना चाहिए। हमें कभी भी मन के अशान्त व क्रोधित आदि होने की अवस्था में, तुरन्त भोजन नहीं करना चाहिए। हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने में भोजन की भूमिका पर व शरीर की कार्य प्रणाली पर सम्बन्धित जानकारियां प्राप्त करने के साथ-साथ उनपर आचरण भी करना चाहिए।