नीति श्लोक

 

-कृष्ण चन्द्र गर्ग

श्लोक

 यच्छक्यं-से-भूतिमिच्छता।

अर्थ-  जो वस्तु खाई जाने योग्य हो, खाई जाने पर पच सके और पच जाने पर लाभकारी हो, अपना भला चाहने वाले व्यक्ति को वही वस्तु खानी चाहिए। इसी प्रकार से जो कार्य ठीक हो, अच्छी तरह से हो सके और हो जाने पर अच्छा परिणाम दे, वहीं कार्य करना चाहिए।

(विदुरनीति)

श्लोक

 न देवा-से-तम्।।

अर्थ- देव ग्वाले के समान हाथ में डण्डा लेकर कभी भी रक्षा नहीं किया करते। वे तो जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे अच्छी बुद्धि देते हैं।

(विदुरनीति)

३- जो किसी मनुष्य की बात को समझ तो तुरन्त ही जाता है पर बात पक्की करने के लिए तथा उसके विषय में और अधिक जानने के लिए अधिक समय तक उस बात को सुनता रहता है, जो व्यक्ति किसी कार्य को खूब अच्छी तरह से समझ लेने पर ही शुरू करता है, केवल इच्छा के कारण ही उसे करने नहीं लग जाता, वही पंडित होता है।

(विदुरनीति)

श्लोक

उत्पन्नपश्चात्तापस्य-से-स्यान्महोदयः। 

अर्थ- गलत काम करने के पीछे पछताने वाले पुरुष की जैसी बुद्धि होती है, वैसी यदि पहले होती तो किसकी बड़ी समृद्धि न होती अर्थात् अवश्य होती।

(चाणक्यनीति)

श्लोक

न निर्मितो-से-विपरीतबुद्धिः।

अर्थ- सोने का मृग न पहले किसी ने बनाया, न देखा और न किसी ने सुना है। फिर भी श्री रामचन्द्र जी की तृष्णा उस पर हुई। विनाश के समय बुद्धि विपरीत (उलटी) हो जाती है।

(चाणक्यनीति)

श्लोक

अधः-से-तकम्।

अर्थ- हे बालिका! नीचे को क्या देखती हो, तुम्हारा भूमि पर क्या गिर पड़ा है? (कमर झुकी हुई बुड्ढी स्त्री को देखकर किसी ने कहा) स्त्री ने उत्तर दिया-रे मूर्ख नहीं जानता कि मेरा यौवन रूपी मोती चला गया है।

(चाणक्यनीति)

श्लोक

दर्शन-से-सज्जनसंगति।

अर्थ- मछली, कछुई और पक्षिणी क्रमशः दर्शन, ध्यान और स्पर्श से जैसे अपने बच्चों को सदैव पालती हैं, वैसे ही सज्जनों की संगति मनुष्य को पालती है।

(चाणक्यनीति)

८-कार्य करने से पहले उसके परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए। बिना विचारे शीघ्रता से किए गए काम का फल जीवन भर हृदय को जलाता रहता है तथा कांटे की तरह चुभता रहता है।

(भर्तृहरि)

श्लोक

छिन्नो-से-लोके। 

अर्थ- काटा हुआ वृक्ष फिर पनपता है, क्षीण चन्द्रमा फिर पूरा हो जाता है, यही देख सज्जन लोग विपत्ति से नहीं घबराते।

(भर्तृहरि)

१0-   कर्णी बाण और नालीक बाण (तीर, गोली आदि) शरीर से निकाले जा सकते हैं, परन्तु वचन रूपी बाण लग जाने पर निकालना बिल्कुल असम्भव है, क्योंकि वह हृदय में घुसा रहता है।

(विदुरनीति)

११-   वचन रूपी जो बाण मुख से निकलते हैं, उन बाणों द्वारा घायल व्यक्ति रात दिन सोचता रहता है। वे बाण केवल मर्मस्थल में चोट पहुँचाने वाले होते हैं, किसी दूसरी जगह चोट नहीं पहुँचाते। इसलिए बुद्धिमान् व्यक्ति कभी भी कटु वचनों का किसी के प्रति व्यवहार नहीं किया करते हैं।

(विदुरनीति)

१२- परिमित भोजन करने वाले मनुष्य को ये छः गुण प्राप्त होते हैं-

        १. स्वस्थता २. आयु ३. बल ४. सुख ५. इस प्रकार के मनुष्य की सन्तान निष्पाप होती है और ६. दुनिया उसे यह नहीं कहती कि यह बड़पेटू है।

(विदुरनीति)

श्लोक

शैले-से-वने।

अर्थ- सब पर्वतों पर रत्न नहीं होता, मोती सब हाथियों में नहीं मिलता, न सज्जन लोग सब जगह होते हैं, न प्रत्येक वन में चन्दन होता है।

(चाणक्यनीति)

श्लोक

यथा-से-कर्मणा।

अर्थ-जैसे घिसने, काटने, तपाने और पीटने-इन चार प्रकार से सोने की परीक्षा की जाती है, वैसे ही दान, शील, गुण और आचरण इन चारों प्रकार से पुरुष की भी परीक्षा की जाती है।

(चाणक्यनीति)

१५. गुप्त दान देना, घर में आए सत्पुरुषों का स्वागत करना, उपकार करके चुप रहना, कृतज्ञता प्रकट करना, धन पाकर गर्व न करना और पराई चर्चा में उसके मानापमान का ध्यान रखना- ये तलवार की धार पर चलने के समान कठिन व्रत का सत्पुरूषों को न मालूम किसने उपदेश दिया है।

(भर्तृहरि)

श्लोक

निन्दन्तु-से-धीराः।

अर्थ- नीति को जानने वाले लोग चाहे निन्दा करें या प्रशंसा, धन आए या जाए, मृत्यु अभी आ जाए या चिरकाल के बाद आए परन्तु धैर्यवान् लोग न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते।

(भर्तृहरि)

श्लोक

पुरुषा-से-दुर्लभः।

अर्थ- हे धृतराष्ट्र! इस संसार में दूसरों को निरन्तर प्रसन्न करने के लिए प्रिय बोलने वाले प्रशंसक लोग बहुत हैं, परन्तु सुनने में अप्रिय लगे और वह भला करने वाला वचन हो उसका कहने और सुनने वाला पुरुष कठिनाई से मिलता है।

(विदुरनीति)

श्लोक

सत्यं-से-परिवर्जयेत्।

अर्थ- धीर बुद्धिमान मनुष्य सदा सत्य, मृदु, प्रिय और हितकर वाक्य ही बोले। अपनी तारीफ करने वाले तथा दूसरों की निन्दा करने वाले वाक्य कभी न बोले।

श्लोक

ददाति-से-प्रीतिलक्षणम्।

अर्थ-देना, लेना, गुप्त बातों का बताना, सम्मति लेना, खाना और खिलाना-ये छः प्रेम के लक्षण हैं।

श्लोक

पूर्वोपकारी-से-पराधिनः।    

अर्थ- जिसने तुम्हारे साथ पहले कभी उपकार किया हो, पहले किए हुए उपकार को याद करके उसके बड़े भारी अपराध को भी माफ कर दो।

२१. जो व्यक्ति मार्ग में चलते हुए थके हुए दुःखी मुसाफिर को अन्न देता है, और जिसको पहले न जानता हो, ऐसे को अन्न देने वाले को बड़ा भारी पुण्य लगता है।