जब कर्मों का फल अवश्य ही मिलता है और उनसे कोई बच नहीं सकता तो फिर ईश्वरोपासना करने की क्या आवश्यकता है?

 

यह बात सत्य है कि किये गये कर्मों का फल अवश्य मिलता है। चाहे, कितना ही जप-तप करो, कितने ही यज्ञ-दान करो, फिर भी उपासना की आवश्यकता इसलिए है कि उपासना करने से ईश्वर की ओर से विशेष ज्ञान, बल, आनन्द, धैर्य, सहनशक्ति, निष्कामता, उत्साह, पराक्रम, दयालुता, न्यायकारिता आदि गुणों की प्राप्ति होती है। ईश्वरोपासना से ईश्वर के प्रति प्रेम, श्रद्धा, निष्ठा, रुचि आदि बढ़ते रहते हैं। उपासक की बुद्धि कुशाग्र होती है, स्मृति तीव्र होती है, एकाग्रता बढ़ती है, इन्द्रियों पर नियंत्रण होता है, मन पर अधिकार होता है, अज्ञान जनित कुसंस्कारों को जानने, उनको दबाने, निर्बल बनाने तथा उन्हें नष्ट करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है और जब साधक यम-नियम का सूक्ष्मता से पालन करता है, तब जीवन शान्त, प्रसन्न, सन्तुष्ट, निर्भीक बनता है। आगे चलकर आत्मा का परिज्ञान होता है, समाधि लगती है, पुन: आगे, ईश्वर का साक्षात्कार होता है और व्यक्ति समस्त दुखों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होता है। इसलिए, शुभ कर्मों को करने के साथ-साथ ईश्वर की उपासना भी अवश्य करनी चाहिये।

-आचार्य ज्ञानेश्वर

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