मोक्ष क्या है?
व्यक्ति को उतना अधिक सफल माना जाना चाहिए, जितना कम उसे दुखों की अनुभूति हो। व्यक्ति को दुखों की अनुभूति उतनी कम होगी, जितना अधिक वह ज्ञान अर्जित करेगा, जितना अधिक उसका व्यवहार दूसरों के प्रति करुणामय, दयामय और न्यायकारी होगा, जितना अधिक उसका अपनी इन्द्रियों और अपने मन पर नियन्त्रण होगा आदि। यहां, ज्ञान-अर्जन का अर्थ केवल शाब्दिक ज्ञान को ग्रहण करना नहीं, बल्कि, शब्दों के साथ – साथ उनके अर्थों को आत्मसात् करना है। सर्वज्ञता, न्यायकारिता, दयालुता आदि ईश्वर के अनन्त गुणों में से मुख्य गुण हैं। अन्य शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि व्यक्ति जितना अधिक, ईश्वरीय गुणों को धारण करेगा, उतना अधिक, वह दुखों से दूर हो जाएगा। दुखों से दूर होने का अर्थ यहां दुखों के न होने से नहीं, बल्कि उनकी कष्टप्रद अनुभूति से है। इसी कारण से हमें ईश्वर को जानने और मानने की आवश्यता है। बहुत सी बातें हम जानते तो हैं, पर उनको आत्मसात् न कर पाने के कारण वे बातें हमारे आचरण में नहीं आ पाती। किसी बात को आत्मसात् करने के पश्चात ही उसको ज्ञान की संज्ञा दी जाती है, अन्यथा वो विवरण या information से अधिक और कुछ नहीं। दुखों से छूट जाना ही मुक्ति अथवा मोक्ष है। मोक्ष, जिस को पाना हमारे शास्त्रों में हमारे जीवन का ध्येय माना है, ईश्वर को प्राप्त करके ही पाया जा सकता है।