हवन में मन्त्र पाठ क्यों किया जाता है?

 

 अग्निहोत्र करते समय वेद व कुछ दूसरे वेदानुकूल ग्रन्थों के मन्त्र उच्चारित किए जाते हैं, जिनमें भिन्न-भिन्न प्रार्थनाओं के साथ-साथ ईश्वर की स्तुति भी है। इस तरह आर्य संस्कृति में सुबह का आरम्भ वातावरण की शुद्धता के लिए अग्नि में अच्छे-अच्छे पदार्थों को हवन में आहूत करने के साथ-साथ शरीर व आत्मा की स्वस्थता व बल के लिए सर्वाधार ईश्वर से प्रार्थना के साथ किया जाता था।

इस विषय को और गहराई से समझने के लिए महर्षि दयानन्द द्वारा लिखित ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के निम्नलिखित हिस्सों को बार बार देखना चाहिए। 

ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का अध्याय ४ (वेदविषयविचारः)

….इसी कारण से धर्म का अनुष्ठान और अधर्म का त्याग करने को भी वे (मनुष्य) ही योग्य होते हैं, अन्य नहीं। इससे सबके उपकार के लिए यज्ञ का अनुष्ठान भी उन्हीं को करना उचित है।….

‘नष्ट शब्द का ‘अदर्शन’ अर्थ बताते हुए महर्षि प्रत्यक्षादि आठ प्रकार के दर्शनों की संक्षिप्त विवेचना करते हैं और ‘नाश’ का सही अर्थ उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। हवन में वेद-मंत्रों के पाठ के तीन कारण हैं। पहला- समग्र रूप से वेद ही हवन करने का प्रयोजन बताने वाले हैं। अन्य ग्रंथों में हवन की बातें मिल सकती हैं, परन्तु प्रकरण के अनुसार ही। दूसरा- वेद की सुरक्षा। पूरी की पूरी श्रीमद्भगवद्गीता वेद के कुछेक मंत्रों का ही विस्तार है। यदि हम हवन में बोले जाने वाले वेद मंत्रों को कंठस्थ कर लेते हैं, तो हम वेद की विपुल ज्ञानराशि के अंश को सुरक्षा प्रदान करते हैं। तीसरा- वेद नास्तिकता को दूर करने वाले हैं। कैसे? जब हम किसी की पुस्तक पढ़ते हैं, तो उसके रचयिता का स्मरण अपनेआप ही हो आता है। जब हम वेद को पड़ेंगे, तो उसके रचयिता, ईश्वर का स्मरण हो आने से हम स्वमेव ही आस्तिक हो जाते हैं।
वेद सब सत्य विद्या का मूल होने के कारण भ्रान्ति- रहित हैं। मनुष्य कृत ग्रंथों में तो असत्य के समाविष्ट होने की अत्याधिक सम्भावना है। समझदार व्यक्ति वही है, जिसका चुनाव बेहतर वस्तु के लिए हो। इसलिए, होम करने के लिए वेदों-मन्त्रों को छोड़कर मनुष्य कृत ग्रंथों के श्लोकों आदि का चुनाव मूर्खतापूर्ण है।’

-आचार्य अंकित प्रभाकर

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