हमारे जीवन का ध्येय क्या है?

 

हमारे जीवन के छोटे-छोटे कर्मों जैसे नहाना, खाना खाना, कहीं जाना, कुछ क्रय करना, टी.वी. पर कोई सीरियल देखना आदि का कुछ कारण अथवा ध्येय अवश्य होता है। जैसे स्वच्छ होना, भूख मिटाना, किसी से मिलना, कुछ आवश्यकताओं को पूरा करना, मनोरंजन करना आदि। फिर यह तो सम्भव नहीं कि हमारे  80-90 वर्ष तक जीवित रहने का कोई मकसद न हो। हमारे जीवन का मकसद तो है, परन्तु आज हम उस से अनजान हैं। हमारे जीवन का ध्येय है ‘जन्म-मरण’ के चक्र से छूटना। हमने शब्द प्रयोग किए ‘जन्म-मरण के चक्र’। इसका तात्पर्य है कि हमारा 80-90 वर्ष का यह जीवन सम्पूर्ण चक्र की एक कड़ी मात्र है। इस जन्म से पहले भी हमारे असंख्य जन्म हो चुके हैं और इस जन्म के पश्चात भी हमारे अनेकों जन्म होंगे। यदि इस जन्म के पश्चात भी अनेकों जन्म होने निश्चित हैं, तो जन्म-मरण के चक्र से छूटने का क्या अर्थ ? यदि हम कुछ विशेष तरह के कर्म करते हैं, तो लगभग 300 लाख करोड़ वर्षों के लिए हमारा फिर से जन्म नहीं होता। जन्म है, तो दुख भी है। दुखों से पूर्णतया निवृति तभी सम्भव है, जब जन्म ही न हो। लगभग 300 लाख करोड़ वर्षों के लिए दुखों से पूर्ण निवृति ही हमारे जीवन का ध्येय है। अब यह विशेष तरह के कर्म कौन से हैं, जिनसे कुछ समय के लिए हमारा जन्म नहीं होता ? इन कर्मों को विशेष इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि इनका फल बहुत लम्बे समय तक दुखों से निवृत्ति है। ये कर्म हैं अष्टांग योग की सिद्धि के लिए किए जाने वाले कर्म। मान लीजिए, हमें कम से कम ‘क’ वर्षों तक का समय अपने जीवन का ध्येय प्राप्त करने के लिए चाहिए तो ‘क’ वर्षों से कम के समय में हमें क्या प्राप्त होगा ? ‘क’ वर्षों के समाप्त होने पर अथवा अष्टांग योग के सिद्ध हो जाने पर जो हमें मोक्ष-सुख (जन्म-मरण के चक्र से छूटना) का लाभ होगा, उसके अतिरिक्त जितना-जितना हम इस पथ पर आगे बढ़ते जाते हैं, उतनी-उतनी हमें दुखों की अनुभूति होनी कम होती जाएगी। शिक्षा प्राप्त करना, नौकरी अथवा व्यवसाय करना, धन कमाना, अपने परिवार की सुख-सुविधा के लिए कार्य करना आदि हमारे जीवन के ध्येय नहीं, ये सामयिक ध्येय तो कहे जा सकते हैं। हमारे जीवन के मुख्य ध्येय को प्राप्त करने के लिए ये केवल साधन मात्र ही हैं। ऊपर कहा गया है कि हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य अत्यन्त लम्बे काल तक जीवन-मरण के चक्र से छूटना है। इसको ओर अधिक स्पष्ट करने के नाते हम कह सकते हैं कि हमारे जीवन का उद्देश्य ईश्वर-साक्षात्कार करना है। इस भौतिक जगत में अगर हमें दिल्ली जाना हो, तो आवश्यक है कि पहले हमें मालूम हो कि दिल्ली कहां पर स्थित है। दिल्ली की स्थिति के बारे में हम किसी पर भी विश्वास नहीं कर लेते, बल्कि दिल्ली की स्थिति के बारे में उसीकी बात को विश्वसनीय मानते हैं, जो या तो स्वयं दिल्ली गया हो अथवा श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा माननीय कोई भूगोलवित्त अर्थात भूगोल को जानने वाला हो। एक बार दिल्ली की स्थिति जानने के पश्चात अपनी स्थिति व सामर्थ्य के अनुसार दिल्ली ले जाने वाले साधनों अर्थात बस, वायुयान आदि का निर्धारण करेगें। तत्पश्चात अपने कार्यक्रम को कार्य रूप देने के लिए अपने पास उपलब्ध साधनों अर्थात धन आदि का उपयोग करेंगे। यही सब बातें ईश्वर-साक्षात्कार में भी घटित होती हैं। बहुत सारे लोग यह तो मानते हैं कि ईश्वर – साक्षात्कार जीवन का मुख्य उद्देश्य है, पर यह जानने का प्रयत्न नहीं करते कि ईश्वर कहां रहता है? हमें उसका साक्षात्कार क्यों करना चाहिए? उसके साक्षात्कार का हमारे जन्म-मरण के चक्र से छूटने से क्या सम्बन्ध है? उस के साक्षात्कार का रास्ता कौन सा है? हमें ईश्वर के साक्षात्कार करने के रास्ते पर चलने के लिए किस तरह की तैयारी की आवश्यकता है? आदि।

जैसे, केवल दिल्ली-दिल्ली पुकारने से दिल्ली नहीं पहुंचा जा सकता वैसे ही ईश्वर-ईश्वर पुकारने मात्र से ईश्वर को नहीं पाया जा सकता। आज अध्यात्मिक कहे जाने वाले व्यक्तियों में यह मान्यता घर कर गई है कि कुछ विशेष शब्दों के उच्चारण मात्र से ही ईश्वर-साक्षात्कार हो जाता है जो कि गलत है।

>> अगला >>