यह सृष्टि कैसे बनी?
ईश्वर ने सृष्टि की उत्पत्ति प्रकृति से, आत्माओं की उन्नति व भोगों के लिए की। सृष्टि की उत्पत्ति से पहले भी प्रकृति व आत्माएं थीं। जब सृष्टि बनती है, तब अव्यक्त प्रकृति से सारे व्यक्त पदार्थ उत्पन्न होते हैं और प्रलय अवस्था में सभी व्यक्त पदार्थ प्रकृति की अव्यक्त अवस्था में लीन हो जाते हैं। मिटटी से घड़ा बनता है और घड़ा टूट कर वापिस मिटटी में मिल जाता है अर्थात पदार्थ केवल अव्यक्त होते हैं, नष्ट नहीं होते। सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रकृति साम्यावस्था में थी। ईश्वर द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति का तात्पर्य प्रकृति को अव्यक्त अवस्था से व्यक्त अवस्था में लाना मात्र है। प्रकृति की अव्यक्त अवस्था के बारे में विद्वानों द्वारा बहुत कम कहा गया है। प्रकृति की साम्यावस्था में धीरे धीरे बदलाव आने से पंच महाभूतों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के परमाणु बनें। अन्य सभी जीव धारियों और पेड़ पौधों की उत्पत्ति के पश्चात मानव जाति का इस पृथ्वी पर पदार्पण हुआ। सृष्टि की शुरुआत में अनेक आत्माएं युवावस्था में अमैथुनी प्रक्रिया से अर्थात् बिना संभोग के इस पृथ्वी पर पैदा हुईं। प्रत्येक सृष्टि का समय 432 करोड़ वर्ष होता है। फिर उसके पश्चात उतने ही समय की प्रलय की अवधि होती है। अभी तक सृष्टि की उत्पत्ति को 196 करोड़ वर्ष बीत चुके हैं। इस हिसाब से महाप्रलय आने में अभी बहुत समय शेष है।