क्या बुद्धियों के स्तर में अन्तर होने से, ईश्वर को जानने में बाधा उत्पन्न होती है?

 

नुष्यों की बुद्धियों के स्तर में अन्तर, ईश्वर को जानने में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं करता, क्योंकि ईश्वर को जानना अति सुगम है। कोई भी वस्तु ऐसी नहीं, जिसका ग्रहण हम इन्द्रियों आदि से करें और ईश्वर उस वस्तु में न हो। जैसे सत्य बोलना बेहद आसान होता है, परन्तु, उसके मुकाबले झूठ बोलना अत्याधिक कठिन होता है। झूठ बोलते समय हमें बहुत मानसिक श्रम करना पड़ता है। हमें यह ध्यान रखना पड़ता है कि किस व्यक्ति के साथ कैसा झूठ बोला जाए, उस व्यक्ति के साथ पहले की गई बातों से सामंजस्य बिठाना, बोले गए झूठ के पकड़े जाने से बचने के लिए तरकीबें लड़ाना और ओर झूठ बोलना। इस तरह झूठ बोलना एक कुचक्र की भांति है। इसके मुकाबले सत्य बोलना कितना सुगम है, इसका अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। बुद्धियों के स्तर में अन्तर का असर तब पड़ता है, जब हम किसी विषय (ईश्वर संबन्धित व अन्य) की गहनता में जाने का प्रयत्न करते हैं। किसी भी विषय का मौलिक ज्ञान हम साधरण बुद्धि से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

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