हवन के मंत्रों के अर्थ

देव-यज्ञ के आरम्भ में आठ ईश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासना के मंत्रों को पढ़ने का विधान है। इन मंत्रों के अर्थ नीचे दिए हैं।

ईश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासना के मंत्रों के अर्थ

-हे शुद्धस्वरूप, सब सुखों के दाता, सकल जगत के उत्पत्तिकर्त्ता, समग्र ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर! आप कृपा करके हमारे सम्पूर्ण दुर्गुण, दुर्व्यसन, दुर्जन और दुखों को हमसे दूर कर दीजिए और जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव, पदार्थ और प्राणी हैं, वे सब हमको प्राप्त कराइए।

-हे स्वप्रकाशस्वरूप परमेश्वर! आपने प्रकाश करने हारे सूर्य-चन्द्रमादि पदार्थ उत्पन्न करके धारण किए हैं, आप उत्पन्न हुए सम्पूर्ण जगत के प्रसिद्ध स्वामी थे, आप ही सब जगत के उत्पन्न होने से पूर्व वर्त्तमान थे, वही आप इस भूमि और सूर्यादि को धारण कर रहे हैं। हम लोग अतिप्रेम से आपकी विशेष भक्ति किया करें।

 -हे परमेश्वर! जो आप आत्मज्ञान के दाता, शरीर, आत्मा और समाज के बल को देने वाले हैं, जिस आपका आश्रय ही मोक्ष-सुखदायक है, जिस आपको न मानना, अर्थात भक्ति न करना ही मृत्यु आदि दुख का हेतु है, हम लोग अपने सम्पूर्ण सामर्थ्य से आपकी आज्ञा पालन करने में तत्पर रहें। 

-हे परमात्मा! आप प्राणवाले और अप्राणिरूप जगत के अपनी अनन्त महिमा से एक ही विराजमान राजा हैं। आप ही मनुष्यादि और गौ आदि प्राणियों के शरीरों की रचना करते हैं। हे सुखस्वरूप सकलैश्वर्य के देने हारे परमात्मा! हम लोग अपनी सकल उत्तम सामग्री से आपकी विशेष भक्ति करें।

-हे परमात्मा! आपने तीक्ष्ण स्वभाव वाले सूर्यादि और भूमि को धारण किया है।  आपने दुखरहित मोक्ष को धारण किया है और आप आकाश में सब लोक-लोकान्तरों को पक्षी की भांति भ्रमण कराते हैं। हे परमेश्वर! आप सुखदायक, कामना करने के योग्य और परब्रह्म हैं। हम आपकी प्राप्ति के लिए सब सामर्थ्य से विशेष भक्ति करते हैं।

-हे सब प्रजा के स्वामी परमात्मा! आप सब उत्पन्न हुए जड़-चेतनादि से उच्च हैं। जिस-जिस शुभकामना के लिए हम आपका आश्रय लेवें, आपकी कृपा से हमारी वे कामनाएं पूर्ण होवें, जिससे हम लोग धन-ऐश्वर्यों के स्वामी होवें।

-हे परमात्मा! आप सकल जगत के उत्पादक होने के साथ-साथ हम लोगों के लिए भ्राता के समान सुखदायक हैं। आप सम्पूर्ण लोकमात्र और नाम, स्थान, जन्मों को जानते हैं। जिस सांसारिक सुख-दुख से रहित नित्यानन्दयुक्त आपमें मोक्ष को प्राप्त होके विद्वान लोग स्वेच्छापूर्वक विचरते हैं, वहीँ आप हमारे गुरु, आचार्य, राजा और न्यायाधीश हैं। हम लोग मिलकर सदा आपकी ही भक्ति किया करें।  

-हे ज्ञानस्वरूप, सब जगत को प्रकाशित करने वाले सकल सुखदाता परमेश्वर! आप सम्पूर्ण विद्यायुक्त हैं, अतः आप कृपा करके हम लोगों को ज्ञान-विज्ञान और राज्यादि ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए अच्छे धर्मयुक्त, आप्त लोगों के मार्ग से उत्तम ज्ञान और कर्म प्राप्त कराइये और हमसे कुटिलतायुक्त पापरूप कर्म को दूर कीजिए। इस कारण हम लोग आपकी बहुत प्रकार की  प्रशंसा सदा किया करें और सर्वदा आनन्द में रहें। 

-हे सुखस्वरूप, अविनाशी परमेश्वर! आप बिछौने की तरह सम्पूर्ण संसार के आधार और आश्रय हैं।

 -हे सुखस्वरूप, अविनाशी परमेश्वर! आप ओढ़ने की तरह सदैव सबके रक्षक हैं।

-हे सुखस्वरूप, अविनाशी परमेश्वर! आपकी कृपा से सत्य-ज्ञान, सत्यभाषण, सत्य व्यवहार, यश एवं प्रतिष्ठा, धैर्य, बुद्धिमत्ता, शोभन-व्यवहार आदि आन्तरिक ऐश्वर्य और धन आदि बाह्य ऐश्वर्य मुझमें आश्रय प्राप्त करें।

-हे जीवनदाता परमेश्वर! मेरी सभी इन्द्रियां आयुपर्यन्त सशक्त रहें। दोनों नासिका-भागों में प्राणशक्ति पूर्ण आयुपर्यन्त बनी रहे। दोनों भुजाओं में बल, शक्ति, सामर्थ्य पूर्ण आयुपर्यन्त विद्यमान रहे। मेरी दोनों जंघाओं में बल, पराक्रम-सहित चलने-दौड़ने और भार-वहन करने का सामर्थ्य पूर्ण आयुपर्यन्त विद्यमान रहे। मेरे शरीर के अन्य सभी अवयव भी पूर्ण आयुपर्यन्त रोग-दोषरहित तथा शक्ति-सम्पन्न रहें।  

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आपकी कृपा से मेरा यह यज्ञानुष्ठान सफल होवे।

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आप सबके प्राणाधार, सब दुख-विनाशक, सुखस्वरूप एवं सर्वसुखप्रदाता हैं। आपकी कृपा से मैं सूर्यलोक के समान ज्ञान और ऐश्वर्य से सुशोभित हो जाऊँ तथा पृथ्वी के समान उत्तम-उत्तम गुणों से सुशोभित हो जाऊँ।  विद्वान लोग जहां यज्ञ करते हैं,  मैं भी उसी पृथ्वी पर यज्ञीय अग्नि को भक्षण करने योग्य अन्नादि की  हवि देने के लिए एवं धर्मानुकूल सुख-भोगों के लिए यज्ञ-कुण्ड में स्थापित करता हूँ। 

-हे सर्वरक्षक, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक परमेश्वर! यह जीवात्मा जीवनरूपी यज्ञ की समिधा है। इसके द्वारा हमारे जीवनरूपी यज्ञ में दिव्य ज्ञानाग्नि प्रज्ज्वलित होवे और अच्छी प्रकार बढ़े। हे परमात्मा! आप हमें उत्तम सन्तानों से, उत्तम पशु-पक्षियों से, विद्या, ब्रह्मचर्य एवं अपनी भक्ति के तेज से और खाने-योग्य अन्न तथा अन्य भोग्य पदार्थों से अच्छी प्रकार समृद्ध कीजिए। हे ईश्वर! यह आहुति आपकी ही दी हुई है, इसमें मेरा कुछ भी नहीं है।

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आपकी कृपा से हम लोग सब पदार्थों में विद्यमान अग्नि में सब दोषों के निवारण में तीव्र प्रभाव करने वाले घृत, मिष्ट आदि उत्तम पदार्थों की आहुतियाँ देवें। यह आहुति दुर्गुण-विनाशक प्रकाशस्वरूप सर्वज्ञ और सर्वव्यापी आपको समर्पित है। यह मेरी नहीं है।

-हे अखण्ड ज्ञानस्वरूप प्रभो! आप हमें यज्ञानुकूल मति दीजिए।

-हे सर्वरक्षक दिव्य गुण-शक्ति-सम्पन्न, सर्वप्रकाशक समस्त ऐश्वर्य से युक्त और सब जगत को उत्पन्न वाले जगदीश्वर! आप यज्ञ को बढ़ाने और सफल करने के साथ-साथ यज्ञकर्त्ता को भी उन्नत व सफल कीजिए। आप ज्ञान-विज्ञान द्वारा हमारे मन-बुद्धि को पवित्र कीजिए। आप वाणी के स्वामी हैं। आप हमारी वाणी को मीठी, कोमल, प्रिय और पवित्र कीजिए।

-हे ईश्वर! यह आहुति आपके प्रकाशस्वरूप होने को समर्पित है।

-हे ईश्वर! यह आहुति आपके सुख-शान्ति के भण्डार होने को समर्पित है।

-हे ईश्वर! यह आहुति आपके इस जड़ और चेतन जगत के नियन्ता होने को समर्पित है।

-हे ईश्वर! यह आहुति आपके परमैश्वर्यवान होने को समर्पित है।

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आप चराचर जगत के आत्मा और प्रकाशस्वरूप सूर्य आदि प्रकाशित लोकों के भी प्रकाशक हैं। 

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आप चराचर जगत के आत्मा, सब सद्विद्यायों को देने वाले प्रकाशस्वरूप और सर्वोत्तम वेद-विद्या के प्रकाशक हैं।

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आप स्वप्रकाशमान, सब जगत को प्रकाशित करने वाले, सकल संसार के स्वामी तथा ज्ञान-प्रकाश और ऐश्वर्य देने वाले हैं।

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आप सर्वव्यापी, सर्वोत्पादक, सब जगत के प्रकाशक, सबसे प्रीति रखनेवाले, प्राणदायी उषाकाल के साथ स्तुति करने योग्य चराचर जगत के आत्मा हैं। आप हमें प्राप्त होइए।

-हे सर्वरक्षक, सर्वव्यापक, प्रकाशस्वरूप, आनन्दस्वरूप, अविनाशी, मोक्षस्वरूप, सबसे महान, प्राणों के प्राण, सब दुखों को दूर करने वाले और सुखस्वरूप, सब सुखों के दाता, सबके रक्षक, सर्वोत्तम परमेश्वर! यह आहुति आपको समर्पित है।

-हे ज्ञानस्वरूप और विज्ञान के प्रकाशक परमेश्वर! जिस मेधा-बुद्धि को माता-पिता, विद्वान और ज्ञानी लोग आदि प्राप्त करके सेवन करते हैं, उस मेधा-बुद्धि को मुझे भी प्राप्त कराइए।