विवेक और उसमें बढ़ोतरी

 

हमारी बुद्धि अथवा हमारे मस्तिष्क की जज करने की क्षमता को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। हमारे कर्म हमारे वर्तमान विवेक के अनुरूप होने चाहिएं न कि अन्य व्यक्तियों के विवेक के अनुरूप, भले ही उस दूसरे व्यक्ति का विवेक हमसे ऊँचा ही क्यों न हो। हमारी उन्नति के लिए बुद्धि का प्रयोग आवश्यक है। दूसरों की बुद्धि अथवा विवेक के अनुसार कार्य करने से हमारी अपनी उन्नति रुक ​​जाती है। क्या हमारे विवेक के स्तर को बढ़ाने का कोई तरीका है? हां। हमारे विवेक को वेदों, वैदिक साहित्य व महान वैदिक विद्वानों के कार्यों को पढ़ने या सुनने से सुधारा जा सकता है। इसके लिए, वेदों, वैदिक साहित्य व वैदिक विद्वानों के कार्यों को प्रतिदिन 20-30 मिनट तक पढ़ने की आदत डालें।

– हमें ऐसी बुद्धि की कामना करनी चाहिए, जो विभिन्न शब्दों को उनके वास्तविक अर्थों से जोड़ने में सक्षम हो। उदाहरण के लिए, ऐसी बुद्धि, जो कहती है कि घड़ी नहीं, बल्कि उसके द्वारा दिखाया गया समय कीमती है, की ही हमारे द्वारा कामना की जानी चाहिए। हमें केवल कामना ही नहीं करनी चाहिए, बल्कि, ऐसी बुद्धि पाने का प्रयास भी करना चाहिए। ऐसी बुद्धि पाने का एकमात्र तरीका है-वैदिक साहित्य के कुछ पन्नों का प्रतिदिन अध्ययन करना।

-अच्छी संगति और अच्छी किताबों का अध्ययन ही हमारे विवेक को बढ़ाने का एकमात्र स्रोत है। यहाँ, ‘अच्छी’ शब्द को परिभाषित करने की आवश्यकता है। किसी की संगति या पुस्तक को तभी अच्छा कहा जा सकता है, जब उसमें सत्य और सत्य का ही समावेश हो। कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है। इसलिए, किसी भी व्यक्ति द्वारा लिखी पुस्तकों की संगति कभी अच्छी नहीं हो सकती। केवल ईश्वर ही पूर्ण है। वेदों में निहित उसके ज्ञान को ही पढ़ना चाहिए। केवल उन्हीं मनुष्यों की संगति अच्छी है, जिनका जीवन वेदों के साथ पूर्ण सामंजस्य रखता हो। वेदों के बाद, हमें केवल ऐसे ही मनुष्यों द्वारा लिखी पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।

-यह बहुत जरूरी है कि किसी सम्प्रदाय विशेष की मान्यताओं को मानने से पहले, हम  उन मान्यताओं को अपनी बुद्धि द्वारा जाँच ले। यदि हम केवल अपने सम्प्रदाय की मान्यताओं को सत्य और अन्य सम्प्रदायों की मान्यताओं को झूठा कहें, तो हम सही नहीं हो सकते क्योंकि, हर कोई अपने सम्प्रदाय की ही मान्यताओं को सत्य मानता है। जिस सम्प्रदाय में व्यक्ति जन्म लेता है, स्वाभाविक रूप से, उसकी मान्यताओं को ही सत्य मानता है। और जो व्यक्ति उसको उसके सम्प्रदाय की गलत मान्यताओं को बताने की कोशिश करता है, उसको वह अपना दुश्मन मानता है। जो व्यक्ति अपना कल्याण चाहता है, उसे अपने सम्प्रदाय की गलत मान्यताओं को जानना चाहिए और उन्हें त्यागने का प्रयास करना चाहिए व अन्य सम्प्रदायों की सही मान्यताओं को अपना लेना चाहिए।  ऐसा करके ही  ईश्वर के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है।