वास्तव में कर्मकाण्ड के मायने क्या होते हैं?

भारतीय लोग कर्मकाण्ड शब्द से बहुत परिचित हैं। अभी, धार्मिक क्रियाओं को निश्चित रीति से करने को ही कर्मकाण्ड कहा जाता है। परन्तु, ऐसा नहीं है। आइए, इसके वास्तविक अर्थ को समझते हैं –

किसी भी काम को करने की निश्चित विधि को कर्मकाण्ड कहते हैं। इस परिभाषा के अनुसार- क्योंकि ऑफिस जाने, वहां पर दोपहर का खाना खाने की छुट्टी का समय निर्धारित रहता है, इसलिए इन्हें भी कर्मकाण्ड कहा जा सकता है। इसी प्रकार बहुत सारे उदाहरण लिए जा सकते हैं। यदि, सुबह उठने का समय, खाना खाने का समय, खेलने का समय, पढ़ने का समय, रात को सोने का समय निर्धारित कर दिया जाए, तो ये सब काम कर्मकाण्ड की परिधि में आ जाएंगे। अब कर्मकाण्ड के औचित्य अथवा इसके लाभ को समझने का प्रयत्न करते हैं। यदि किसी काम को करने की कोई निश्चत विधि नहीं है, तो हम वह काम भलि-भांति कर ही नहीं सकते जैसे, यदि पड़ने का कोई निश्चित समय न हो, तो हम पढ़ने के कार्य को टालते रहेंगे और कईं महीनों में भी बहुत कम ही अध्धयन कर पाएँगे आदि आदि। ऊपर जितने भी उदाहरण दिए गए हैं, वे सब हमारे बाहर के व्यवहार से सम्बन्धित हैं। मानसिक कार्य, जिनमें हमारा व्यवहार आंतरिक होता है, जैसे कि विचारों को उत्पन्न करना, उनपर मनन करना, विचारों की उचितता और अनुचितता को खंगालना आदि भी कर्मकाण्ड से अछूते नहीं होते। वस्तुतः मनुष्य द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक बाह्य अथवा आन्तरिक कार्य को एक निश्चित सुनयोजित ढंग से किया जाना आवश्यक है, ताकि उन कार्यों से अधिकतम लाभ लिया जा सके। इस दृष्टि से मनुष्य द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्य के लिए एक निश्चित ढंग अथवा कर्मकाण्ड वाँछनीय अथवा अति आवश्यक है।