मानव जीवन का उद्देश्य

– कैरियर बनाना आदि हमारे जीवन के केवल अल्पकालिक लक्ष्य हैं। फिर, दीर्घकालिक लक्ष्य यानि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? सभी इस बात से सहमत होंगे कि हमारे अल्पकालिक लक्ष्य दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुरूप होने चाहिए। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि हमारे दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से ही अल्पकालिक लक्ष्य बनाए जाते हैं। लेकिन, जब हम अपने दीर्घकालिक लक्ष्य को ही नहीं जानते हैं, तो हमारे अल्पकालिक लक्ष्य कैसे सही हो सकते हैं? यही हमारे समाज की समस्याओं का मूल कारण है। हमारे समाज का केवल एक छोटा सा वर्ग ही, जो कुल जनसंख्या का 0.00001% से भी कम है, अपने जीवन के दीर्घकालिक लक्ष्य को जानता है। कुछ व्यक्तियों द्वारा ही जीवन के दीर्घकालिक लक्ष्य का ज्ञान रखना समाज के उत्थान का कारण नहीं बन सकता। हमारे समाज के उत्थान का तरीका इस एक तथ्य में निहित है कि हमारे समाज के अधिक से अधिक व्यक्ति अपने जीवन के दीर्घकालिक लक्ष्य को जानें, ताकि उनके अल्पकालिक लक्ष्य उनके दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुरूप हों।

– हमारे जीवन का दीर्घकालिक लक्ष्य अथवा उद्देश्य जानने के सबसे बड़े माध्यम हमारे माता-पिता और शिक्षक हैं। व्यक्तियों को शिक्षित करने का कार्य प्रारम्भिक चरण में माता-पिता द्वारा संभाला जाता है, उसके बाद यह कार्य शिक्षकों द्वारा ले लिया जाता है। जब शिक्षक हमारी समस्याओं को हल करने के लिए शारीरिक रूप से सुलभ नहीं हो पाते हैं, तो हमें ‘स्व अध्ययन’ और जीवन के रहस्यों को स्वयं सुलझाने वाले महान व्यक्तियों के विचारों को सुनने व पढ़ने पर निर्भर रहना होता है। हमें हमारे जीवन का उद्देश्य तय करने के लिए अत्यंत सावधानी बर्तनी चाहिए।  इस दिशा में हमारा हर कदम यथार्थता और तर्क द्वारा निर्देशित होना चाहिए।

– हमारे जीवन का उद्देश्य हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि होना नहीं, बल्कि मनुष्य बनना है। मनुष्य बनने के लिए हमें अपने अंदर अध्यात्म के सिद्धांतों को आत्मसात करना होगा। भौतिक सिद्धांतों (ध्वनि, बिजली, चुंबकत्व, जल, अग्नि, पृथ्वी की परिक्रमा आदि के सिद्धांत) की तरह, आध्यात्मिक जगत के भी कुछ सिद्धांत हैं। हमें इंसान बनने के लिए उन्हें जानना होगा। भौतिक जगत के सिद्धांतों की जानकारी हमारे जीवन में सुगमता लाती है, परन्तु, बिना आध्यात्मिक सिद्धांतों की जानकारी के भौतिक जगत के सिद्धांतों की जानकारी हमारे जीवन को दुख की ओर ले जाती है। मोटे तौर पर भौतिक व आध्यात्मिक सिद्धांतों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये भाग हैं: (i) ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति के बारे में ज्ञान प्राप्त करना (ii) चीजों के यथार्थ स्वरूप का बोध करना (iii) ईश्वर की ओर बढ़ने की पद्धति को जानना। तर्क के बिना इन सिद्धांतों को नहीं जाना जा सकता। जितना अधिक हम तार्किक होंगे, उतना अधिक हम इन सिद्धांतों की सत्यता को अनुभव कर पाएंगे। इस अनुभव के आधार पर हमें सुख की प्राप्ति होती है।

-जब मानव प्रजाति अन्य प्रजातियों से बेहतर है, तो उसका उद्देश्य भी बेहतर होना चाहिए। भोजन करना, संतान पैदा करना और उनका पालन-पोषण करना आदि मनुष्य का उद्देश्य नहीं हो सकता क्योंकि, ये सभी कर्म तो अन्य प्रजातियों द्वारा भी किए जाते हैं। मानव जीवन का उद्देश्य दुखों से मुक्ति पाना है। अतीत के दुखों पर विचार करके दुखी होना व्यर्थ है। वर्त्तमान समय में हमारे द्वारा जो भी दुख झेले जा रहे हैं, वे मुख्यतः हमारे पिछले कर्मों का परिणाम हैं और इन परिणामों से बचना असंभव है। हमें अपने भविष्य के दुखों से बचने के लिए वर्त्तमान में शुभ कर्म ही करने चाहिए। दुख हमारे जन्म से जुड़े हुए हैं। हम अपने सम्पूर्ण जीवन में दुखों से घिरे रहते हैं। दुखों से बचना ही मानव जीवन का उद्देश्य है। दुखों से बचने के लिए हमें जन्म और मृत्यु के इस चक्र से निकलने की आवश्यकता है। ईश्वर-प्राप्ति इसका एकमात्र समाधान है।

-निम्नलिखित उदाहरण ‘जीवन का उद्देश्य’ की अवधारणा को और स्पष्ट कर देगा। मान लीजिए, आपको एक विशिष्ट तिथि और समय पर एक विवाह समारोह, एक साक्षात्कार, एक व्यावसायिक बैठक आदि में भाग लेने के लिए दिल्ली से चंडीगढ़ जाना है। हालाँकि, आपको एक विशिष्ट तिथि पर एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए चंडीगढ़ पहुँचना है, पर रास्ते में, आप पानीपत में एक पुराने दोस्त से मिलने और अंबाला में एक प्रसिद्ध दुकान से मिठाई खरीदने आदि जैसे कुछ उप-उद्देश्य बना लेते हैं। लेकिन, यदि रास्ते में, आपको ट्रैफिक-जैम मिलता है, जिसके कारण, यदि आप पानीपत में पुराने दोस्त से मिलते हैं और अंबाला में मिठाई खरीदते हैं, तो आप समय पर चंडीगढ़ नहीं पहुंच सकते। अब, यदि आप अपने चंडीगढ़ जाने के उद्देश्य पर स्थिर रहते हैं, तो आपको अपने उप-उद्देश्यों को छोड़ना होगा, अन्यथा, यदि आप अपने उप-उद्देश्यों को पूरा करने में लग जाते हैं, तो आपका चंडीगढ़ जाने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। सही ढंग यह है कि आप अपने उप-उद्देश्यों को इस सोच के साथ छोड़ दें कि वे कभी ओर समय पूरे कर लिए जाएंगे और आप समय पर चंडीगढ़ पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करें। ज्यादातर लोग अपने उप-उद्देश्यों को पूरा करने में ही लगे रहते हैं और उसी में अपने पूरे संसाधन खर्च कर देते हैं। उप-उद्देश्यों के प्रति अनावश्यक लगाव से बचने के लिए, उन्हें अपने जीवन के उद्देश्य के महत्व के बारे में बहुत स्पष्ट होना चाहिए।                                                                                                  

-मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी बिना किसी उद्देश्य के कोई कार्य नहीं करता है, लेकिन अधिकांश बुद्धिजीवी विभिन्न प्रकार की सभाओं में, बिना उनके उद्देश्यों आदि को जाने शामिल होते हैं। आइए, इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं। अब तक आप बहुत सारे हिंदू विवाह समारोहों में शामिल हुए होंगे। क्या ऐसे समारोहों में शामिल होने पर कभी आपके मन में ऐसे प्रश्न उठे हैं- फेरे लगाने के मायने क्या हैं?, आग के इर्द-गिर्द ही क्यों घूमा जाता है? आदि आदि। जीवन का मुख्य उद्देश्य तो एक ही होता है, परन्तु, जीवन के सफ़र में कईं उप-उद्देश्य भी बन जाते हैं।  इन्हें  दीर्घकालिक लक्ष्य और अल्पकालिक लक्ष्य कहा जा सकता है। अल्पकालिक लक्ष्य अपनी सार्थकता खो देते हैं, यदि वे दीर्घकालिक लक्ष्य से विरुद्ध जाने वाले हों।  सफलता के लिए चार चीजें बेहद मौलिक हैं। ये हैं- समय, कर्म, बुद्धि और दिशा। मान लीजिए, हम अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय व्यतीत करते हैं और उसके लिए बुद्धि के पूर्ण उपयोग के साथ आवश्यक प्रयास भी करते हैं, लेकिन यदि, हमारा दिशा निर्धारण गलत है, तो यह निश्चित है कि हम अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते। सभी का मुख्य उद्देश्य सुख अथवा आनंद प्राप्त करना है। हमारे प्रत्येक कार्य का उद्देश्य सुख प्राप्त करना होना चाहिए और हमें ऐसे कार्य करने से बचना चाहिए, जो सुख को देने वाले न हों। लेकिन, यहाँ, एक अजीब सा सिद्धांत काम करता है। सिद्धांत है – हम सुख तभी प्राप्त कर सकते हैं, यदि हम पहले दूसरों को सुखी करने के लिए प्रयत्न करें। इस सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए, हम एक उदाहरण पर विचार करते हैं। जब भी कोई महिला रसोई में खाना पकाने के लिए प्रवेश करती है, तो वह अपने स्वाद को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों की रुचि व स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर निर्णय लेती है। तदानुसार, यदि हम अपने सभी कार्यों से पहले दूसरों के सुखों के बारे में सोचने की आदत विकसित कर लें, तो निश्चित रूप से सुख प्राप्त करने का हमारा लक्ष्य करीब आ जाएगा। साथ ही, दूसरों के सुख के लिए कार्य करना, अच्छे सामाजिक बंधन का आधार है।