पठनीय पुस्तकें

 

‘झूठे शब्द न केवल अपने आप में बुरे हैं, बल्कि वे आत्मा को बुराई से संक्रमित कर देते हैं।’ – सुकरात का उद्धरण 

– कोई भी व्यक्ति ऐसी चीज को स्वीकार करना पसंद नहीं करता, जो 1% भी अशुद्ध हो। फिर, हम कुछ किताबों में निहित विचारों को कैसे स्वीकार करते हैं, जो हम जानते हैं कि 100% सही नहीं हैं? हमारा दिमाग इस सच्चाई को जानता है कि ऐसी किताबों में कुछ बातें होती हैं, जो बहुत ही तर्कहीन होती हैं, लेकिन फिर भी हम हठ के कारण उन अतार्किक बातों को मानते हैं और चाहते हैं कि दूसरे भी उन विचारों को स्वीकार करें। किताबें पढ़ते समय हमें काफी सतर्क रहना चाहिए क्योंकि, उनमें दिए विचार हमारे दिमाग का भोजन हैं। हमारे द्वारा पढ़ी जाने वाली किताबों में एक भी असत्य विचार नहीं होना चाहिए। यह बिल्कुल ऐसा ही है, जैसे, यदि हमारे भोजन में छोटा सा भी हमारे शरीर के लिए हानिकारक कण विद्यमान हो, तो हम ऐसे भोजन को कदापि स्वीकार नहीं करते, भले ही उस भोजन में बहुत सारे पोषक तत्व हों।