धर्म

आम लोग धर्म को सत्य, बुद्धिमान लोग असत्य और शासक लोग उपयोगी मानते हैं।

सेनेका-रोमन का एक उद्धरण

अगर एक व्यक्ति भ्रम में है, तो उसे पागलपन कहते हैं। लाखों व्यक्ति अगर भ्रम में हैं, तो उसे धर्म कहते हैं

डॉकिंस का एक उद्धरण

विज्ञान धर्म के बिना लंगड़ा है और धर्म विज्ञान के बिना अंधा है।

अल्बर्ट आइंस्टीन का एक उद्धरण

धार्मिक शिक्षकों द्वारा शोधन प्रक्रिया को पूरा करने के पश्चात वे निश्चित रूप से खुश होंगे कि सच्चा धर्म वैज्ञानिकता से ओर अधिक समृद्ध और गहरा हो गया है।

अल्बर्ट आइंस्टीन का एक उद्धरण

– ‘धर्म’, जिसे अक्सर अंग्रेजी में रिलिजन शब्द से कहा जाता है, एक से अधिक नहीं हो सकता। वस्तुतः, ‘धर्म’ शब्द के वास्तविक अर्थ को किसी अन्य भाषा में बताना संभव ही नहीं है। संक्षेप में, यह शब्द वस्तु के आंतरिक गुणों को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, पानी का चिपचिपापन, उसका ठंडा रहने का गुण पानी के धर्म कहलाते हैं।  इसी प्रकार, मानव मात्र में पाए जाने वाले गुणों को मानव का धर्म कहा जाता है।  मनुष्य मात्र में पाए जाने वाले गुण हैं- सत्य को पसन्द करना, छल के प्रति घृणा आदि। इन गुणों को समग्र रूप से मानवता अर्थात मनुष्य का ‘धर्म’ कहा जाता है। एक आदमी के लिए गुणों के दो सेट नहीं हो सकते। उन्हें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि के रूप में नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उनके आंतरिक गुण सभी सामाजिक परिस्थितियों में समान रहेंगे। यदि किसी संप्रदाय का कोई नियम मनुष्य बनने में बाधा का काम करता है, तो लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उस बाधा को पार करना होगा।

– जो सिद्ध नहीं हो सकता, वह धर्म नहीं है। यहाँ, ‘सिद्ध नहीं किया जा सकता’ का अर्थ है, बुद्धि के उच्चतम स्तर से अवर्णनीय।

– अगर, हम ‘धर्म’ को एक शब्द में कहना चाहें, तो वह शब्द है- ‘अहिंसा’।  पुण्य कमाने के लिए हर कोई अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहेगा। उसके लिए इस शब्द के वास्तविक अर्थ को समझते हैं। ‘अहिंसा’ का अर्थ है ‘बिना किसी उचित कारण के, केवल अपनी इंद्रियों की प्रसन्नता के लिए किसी और को दुख न देना। यहाँ, ‘मन’ हमारी इंद्रियों में शामिल है। साधारणतया किसी व्यक्ति को मारना ‘हिंसा’ है, लेकिन एक सैनिक द्वारा शत्रु को मारना ‘अहिंसा’ है। आइए, अब इस शब्द की सूक्ष्मता पर विचार करते हैं। ईश्वर, आत्मा और प्रकृति के बारे में न जानना हिंसा ही है। इनको न जानने का कार्य हम अपने ‘मन’ सहित अपनी इंद्रियों के सुख के लिए करते हैं। इन तीन सत्ताओं की सच्चाई को न जानकर, हम अपने आप को व जिस समाज में हम रहते हैं, उसे नुकसान पहुँचाते हैं, हालाँकि, यह अनजाने में भी हो सकता है। ईश्वर हमारे सभी कर्मों का फल देता है, चाहे वे जानबूझकर किए गए हों या अनजाने में।

धर्म की आवश्यकता—हमारे पूर्वजों ने धर्म को हमारे शरीर का अभिन्न अंग माना है। जैसे हृदय के बिना जीवन संभव नहीं है, वैसे ही धर्म के बिना भी जीवन संभव नहीं है। चूँकि धर्म हमारे अस्तित्व का ही एक हिस्सा है, इसलिए धर्म की आवश्यकता के प्रश्न का उत्तर सीधे सीधे हमारे शास्त्रों में नहीं दिया गया है। परोक्ष रूप से यह कहा गया है कि संरक्षित धर्म बदले में मनुष्य की रक्षा करता है और असुरक्षित धर्म अथवा अधर्म मनुष्य के नाश का कारण बनता है। ऐसे में मनुष्य को धर्म के अनुसार चलने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए। जब हम कहते हैं कि धर्म हमारी आत्मा का अभिन्न अंग है, तो असभ्य जातियों के मामले में भी यह सच होना चाहिए। कुछ विद्वानों के कार्यों से पता चलता है कि इन असभ्य जातियों में भी धर्म के मूल तत्व मौजूद हैं, जैसे, मनुष्यों से बड़ी एक अदृश्य शक्ति के अस्तित्व पर विश्वास, एक सत्ता, जो इस ब्रह्मांड का निर्माण करती है और जो एक स्थान पर रहती है, एक ऐसी सत्ता, जो बादल और बिजली लाती  है, दोषियों को दण्ड देने वाली सत्ता, एक ऐसी सत्ता, जो अपने भोजन वगैरह के लिए जानवरों की जान लेती है आदि आदि। 

“यह मनोविज्ञान के सबसे निर्विवाद तथ्यों में से एक है कि जैसे, मछली का पानी के बिना अस्तित्व सम्भव नहीं, वैसे ही एक व्यक्ति धार्मिकता के बिना नहीं रह सकता”

-एम.ब्लवात्स्की का एक उद्धरण

जैसे भूखा व्यक्ति अपनी भूख मिटाने के लिए अच्छी या बुरी चीजें खा लेता है। उसी तरह, कभी-कभी, कुछ जातियाँ और व्यक्ति, धर्म की अपनी भूख को मिटाने के लिए, कुछ ऐसी चीजों का सहारा ले लेते हैं, जो अंततः उनके लिए हानिकारक होती हैं। आज लोग धर्म से नफरत करते हैं। इसके दो कारण हैं। एक है- धर्म के नाम पर किया जाने वाला अन्याय, और दूसरा है- फैशन व अंधा अनुसरण। जब विचारशील व्यक्ति तथाकथित धार्मिक व्यक्तियों के दिलों में दूसरे प्राणियों के प्रति घृणा देखते हैं, जो भिन्न  विश्वासों वाले व्यक्तियों को मारने, लोगों को जिंदा जलाने, हर दिन हजारों जानवरों को मारने, जीवन के शांतिपूर्ण वातावरण को नष्ट करने की सीमा तक होता है और ये सब धर्म के नाम पर किया जाता है, तो वे इस प्रकार के धर्म से घृणा करने लगते हैं। धर्म के प्रति उनकी घृणा उस व्यक्ति के समान है, जो भूखे को रेत खाते देख भोजन से घृणा करने लगता है और घृणावश कहने लगता है कि मनुष्य को खाना नहीं खाना चाहिए। बल्कि, ऐसे व्यक्ति का कर्तव्य था कि वह रेत खाने वाले व्यक्ति को सुझाव दे कि वह रेत के स्थान पर उसी चीज को खाए, जो उसके शरीर के लिए अच्छी हो। दरअसल, दुनिया में मौजूद अन्याय का कारण धर्म नहीं, बल्कि, अधर्म है। धर्म के वेश में अधर्म ही सब प्रकार का अन्याय कर रहा है। मान लीजिए, मैं अपने एक दुश्मन को हराने का इरादा रखता हूं, परन्तु, मेरे मित्र इसके लिए मेरा समर्थन करने से इनकार कर देते हैं। लेकिन, अगर मैं उन्हें यह विश्वास दिला दूं कि मेरे दुश्मन को हराना उनका धर्म है, तो वे मेरे इरादे में मेरी मदद करने के लिए तैयार हो जाएंगे। इतिहास ऐसे मामलों से भरा पड़ा है। दरअसल, दंगों का कारण धर्म नहीं, बल्कि कुछ लोगों का स्वार्थ है। दंगे या झगड़े सिर्फ अधर्म के कारण नहीं होते, बल्कि गंदी राजनीति के कारण भी होते हैं। वास्तविक राजनीति इस प्रकार के दंगों या झगड़ों का समर्थन नहीं करती। इसी प्रकार वास्तविक धर्म अन्याय का कदापि समर्थन नहीं करता।

धर्म के प्रति घृणा का दूसरा कारण है फैशन और उच्च वर्ग के लोगों का जनता द्वारा अंधा अनुसरण। कुछ व्यक्ति व जातियाँ अन्य व्यक्तियों व जातियों को अपने से ऊँचा या श्रेष्ठ समझते हैं और ‘धर्म’ सहित विभिन्न विषयों पर उन तथाकथित श्रेष्ठ लोगों के विचारों का अनुकरण करते हैं। यद्यपि आज के वास्तविक वैज्ञानिक धर्म से संबंधित विषयों पर टिप्पणी नहीं करते और मानते हैं कि ये बातें आधुनिक विज्ञान के दायरे से बाहर हैं, लेकिन आज के शिक्षण संस्थानों के प्रमुख पहले के समय के कुछ वैज्ञानिकों द्वारा धर्म की आलोचना किए जाने के कारण, अपने शिष्यों में वास्तविक धर्म को जाने बिना धर्म के प्रति घृणा पैदा करते रहते हैं।

धर्म और विज्ञान पूर्णतः अलग चीजें नहीं हैं। विज्ञान और धर्म एक दूसरे में समाए हुए हैं। वास्तव में जो चीज अवैज्ञानिक है, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता। कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि विज्ञान अपने आप में मनुष्य के जीवन का प्रकाश-स्तंभ नहीं हो सकता।

“… विज्ञान, जिसका उद्देश्य भौतिक वस्तुओं का अध्ययन करना है, मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शक नहीं हो सकता।”

– “धर्म क्या है?” नामक पुस्तक से काउंट लियो टॉल्स्टॉय का एक उद्धरण

यहाँ, हमने केवल ‘धर्म’ का परिचय दिया है। एक मजबूत इमारत के लिए आधार का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। इस कार्य का उद्देश्य उन पाठकों को एक मजबूत आधार प्रदान करना है, जो इस क्षेत्र में और आगे बढ़ने के इच्छुक हैं।