ज्ञान

-ज्ञान के दो भाग हैं। एक सैद्धांतिक ज्ञान और दूसरा व्यावहारिक ज्ञान। सैद्धांतिक ज्ञान के मौलिकरूप को लगभग 100-150 पृष्ठों में समेटा जा सकता है। ‘हम सभी को सच बोलना चाहिए’–यह आध्यात्मिक नियमों के सिद्धांतों में से एक है। इसे बहुत ही कम समय में सीखा जा सकता है। लेकिन, इस सिद्धांत को आत्मसात करने में अथवा व्यवहार में लाने में बहुत लंबा समय लगता है। हमेशा, सैद्धांतिक ज्ञान के पश्चात ही व्यावहारिक ज्ञान  होता है। आज सिद्धांतों की व्यवहारिता  की क्या बात करें, इन नियमों के सैद्धांतिक हिस्से को भी बहुत कम लोग ही जानते हैं। कुछ विद्वान ‘ज्ञान’ शब्द का प्रयोग व्यावहारिक ज्ञान के अर्थ में करते हैं, क्योंकि यह स्वतः ही अपने आप में सैद्धांतिक ज्ञान को समाहित कर लेता है।

– हमें ईश्वर, आत्माओं और प्रकृति के बारे में ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है, ताकि हम अपने जीवन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने आस-पास की चीजों का सर्वोत्तम उपयोग कर सकें। आज प्रकृति, आत्मा और ईश्वर के बारे में भ्रांतियां ही भ्रांतियां हैं। ईश्वर इन सबसे सूक्ष्म है। वह सभी आत्माओं और सभी प्राकृतिक चीजों में मौजूद है। आत्माओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए, हमें उनकी प्रकृति और विशेषताओं के बारे में पता होना चाहिए, ताकि हम उनसे उचित रीति से व्यवहार कर सकें। सभी निष्प्राण वस्तुएं, जिन्हें हम अपने चारों ओर देखते हैं और जिनके माध्यम से हम दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, प्रकृति से बनी हैं। हमें अन्य प्राणियों के साथ व्यवहार करते समय  प्राकृतिक वस्तुओं का ज्ञान भी होना चाहिए। ईश्वर केवल उन चीजों या कृत्यों का ‘कर्त्ता’ है, जो केवल और केवल वही कर सकता है, जैसे, इस ब्रह्मांड की रचना आदि।  अन्य सांसारिक कृत्यों के लिए केवल आत्मा ही कर्त्ता है, ईश्वर नहीं। हम और केवल हम ही अपने व्यवहार के लिए जिम्मेदार हैं।