गीता को अधिक अच्छे से समझने के लिए मौलिक जानकारियां

गीता को अधिक अच्छे से समझने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण बिंदुओं को जानने से पहले, हमें इस धर्मोपदेश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में जान लेना चाहिए। यह उपदेश, जिसे भगवद्गीता के नाम से जाना जाता है, आर्यवर्त्त देश के महाभारत नाम के ऐतहासिक महाकाव्य का एक छोटा सा अंश है।

एक परिवार में दो भाई थे। इस देश में, पिता की मृत्यु के बाद सबसे बड़े बेटे को राजा बनाने की प्रथा थी। लेकिन, बड़े भाई के जन्म से अंधा होने के कारण, छोटे भाई को राजा बना दिया गया। परिवार के बड़े-बुजुर्गों ने यह निश्चय किया कि दो भाइयों में से जो कोई भी पहले बच्चे को जन्म देगा, उसका वह पुत्र अगला राजा बनेगा। इन भाइयों के पुत्रों में से सबसे बड़ा पुत्र छोटे भाई का था। उसका नाम युधिष्ठर था। बड़े भाई के ज्येष्ठ पुत्र, जिसका नाम दर्योधन था, ने परिवार के बड़ों की बातों को मानने से इनकार कर दिया। वह युधिष्ठर को होने वाले राजा के रूप में स्वीकार करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। उसने अपने सभी चचेरे भाइयों को दो बार मारने की कोशिश की लेकिन असफल रहा। समस्या को हल करने के लिए, परिवार के बुजुर्गों ने राज्य का विभाजन कर दिया और युधिष्ठर को एक भाग का राजा बना दिया। किन्तु, दर्योधन ने जुए के खेल में छल-कपट द्वारा युधिष्ठिर का राज्य हथिया लिया और तेरह वर्ष का वनवास पूरा होने पर उसे राज्य वापस देने का वचन दिया। वनवास की अवधि पूर्ण होने के बाद भी, दर्योधन ने बिना युद्ध के राज्य वापस देने से इनकार कर दिया। भगवान कृष्ण, जो परिवार के एक रिश्तेदार भी थे, शांति के दूत के रूप में दर्योधन के पास गए और युधिष्ठर और उनके चार भाइयों को केवल पांच गांव देने व युद्ध की बात न करने की याचना की। लेकिन, दर्योधन ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और युद्ध अपरिहार्य हो गया। ये ऐतिहासिक तथ्य ये स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं कि दर्योधन का मार्ग अधर्म का था।

मौलिक जानकारियां

1 किसी उपदेश या पुस्तक को समझने के लिए उस उपदेश को देने के उद्देश्य या उस पुस्तक को लिखने के उद्देश्य व जिन परिस्थितियों में वह उपदेश दिया गया या वह पुस्तक लिखी गई बहुत अधिक महत्व रखते हैं। इनके महत्व को किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता। भगवद्गीता के नाम से जाने जाने वाले इस उपदेश का एक निश्चित उद्देश्य था और यह उपदेश राजा कृष्ण द्वारा राजा भरत के वंशज दो परिवारों के बीच एक महान युद्ध के प्रारम्भ में दिया गया था। युद्ध के समय परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे को मारने के लिए एक दूसरे के आमने-सामने खड़े थे। एक महान योद्धा, अर्जुन यह देखकर कर्त्तव्यविमूढ़ हो गया। अर्जुन की इस विकट अवस्था को देखकर राजा कृष्ण ने उसे यह उपदेश दिया कि उसका यह व्यवहार न तो धर्मानुकूल है और न ही इससे उसकी प्रसिद्धि में वृद्धि होने वाली है। इस उपदेश का अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करने के अलावा कोई और अर्थ निकालना गलत होगा। इस उपदेश ने योद्धा अर्जुन को अपने सभी संदेहों को तर्कसंगत तरीके से हल करने में सक्षम बनाया। उपदेश के माध्यम से अर्जुन की सभी शंकाओं का समाधान किया गया। हालांकि, उपदेश के कुछ बिन्दु केवल परोक्ष रूप से ही अर्जुन की शंकाओं से सम्बद्ध थे। उपदेश के अंत में, अर्जुन मानता है कि उसके सभी संदेह गायब हो गए हैं और वह बिना किसी संदेह के लड़ने के लिए तैयार है।

चूँकि, प्रत्येक लेखक अपनी रचना के आरंभ में रचना का उद्देश्य बताता है और रचना के अंत में उस उद्देश्य की पूर्ति का बखान करता है, रचना को अच्छी तरह से समझने के लिए रचना की शुरुआत के और अंत के भाग को कई बार अध्ययन किया जाना चाहिए। 

कुछ अनुवादकों ने अपनी विचारधारा को पुष्ट करने के लिए इस प्रवचन के देने के उद्देश्य को भिन्न बताया है।

2 भगवान कृष्ण वेदों के प्रकाण्ड विद्वान थे व इस उपदेश का प्रत्येक शब्द वेदों और ऋषियों के कार्यों के अनुरूप है।

लेकिन, कुछ अनुवादकों ने इस उपदेश का अर्थ वेदों के विरुद्ध विचारों को प्रचारित करने के लिए किया है। प्रमुख विवाद ईश्वर के अर्थ को लेकर है। नीचे, हम वेदों द्वारा प्रतिपादित इस शब्द का अर्थ देते हैं:

वेदों के अनुरूप ईश्वर शब्द का अर्थ

  • तीन शाश्वत सत्ताएं हैं- ईश्वर, आत्माएं और प्रकृति की मूल अवस्था। शाश्वत का अर्थ है कि ये आदि-रहित व अंतहीन हैं और ये किसी अन्य सत्ता द्वारा नहीं बनाए गए हैं।
  • ईश्वर एक, शुद्ध, शरीर-रहित, पापरहित, बहुत बुद्धिमान, दूसरों का आधार और अपने अस्तित्व का स्वयं कारण है। वह जीवों को उनके कर्मों के अनुसार चीजें प्रदान करता है।
  • वह गतिहीन है, लेकिन, फिर भी सभी गतिमान वस्तुओं से आगे रहता है। वह स्वयं गतिहीन रहता है, लेकिन अन्य चीजों को गतिमान करता है।
  • वह इंद्रियों का विषय नहीं है या दूसरे शब्दों में, उसे इंद्रियों के माध्यम से जाना नहीं जा सकता।
  • ईश्वर सर्वव्यापी है। वह इस दुनिया की हर चीज (गंदी चीजों में भी) में व्याप्त है।

ईश्वर के उपरोक्त गुणों का वर्णन पाठकों को अनुवादकों द्वारा किए इस शब्द के अर्थ को न्यायपूर्वक समझने में सक्षम बनाने के लिए किया गया है। ये अनुवादकगण यह साबित करने के लिए कटिबद्ध हैं कि यह उपदेश भगवान द्वारा दिया गया था और भगवान कृष्ण और ईश्वर एक ही चीज हैं।

3 चूंकि, यह उपदेश अर्जुन को दिया गया था, जो वेदों की मूल बातों को जानता था, इसलिए भगवान कृष्ण को अपने उपदेश के प्रत्येक शब्द को विस्तार से समझाने की आवश्यकता नहीं थी। इसी तरह, इस पुस्तक के पाठकों को भी वेदों के मौलिक ज्ञान को जानना आवश्यक है, ताकि वे गीता की वास्तविक भावना को समझने में सक्षम हो सकें।

4 सभी इस बात से सहमत हैं कि यह धर्मोपदेश सत्य को स्थापित करने के लिए दिया गया था। इस सहमती का कारण इस उपदेश का वेदों के अनुसार होना ही है।

5 कुछ अनुवादकों का मत है कि इस धर्मोपदेश में जो कुछ भी कहा गया है वह हर प्रकार से पूर्ण है। ऐसी मान्यता ने न केवल गीता की महानता को ही नीचा दिखाया है, बल्कि, इस देश के अन्य साहित्य का गौरव भी धूमिल किया है।

6 मूलतः, महाभारत के महाकाव्य में केवल दस हजार श्लोक थे, लेकिन अब, इसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं। भगवद गीता इस महान महाकाव्य का एक हिस्सा है। इस कारण, गीता में प्रक्षेपों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। महाभारत में एक श्लोक है, जिसका अर्थ है कि यदि गीता पढ़ी जाती है, तो अन्य साहित्य के अध्ययन की कोई आवश्यकता नहीं है। अगर, यह सच हो सकता है, तो गीता को समझने के लिए अन्य साहित्य की मदद क्यों ली जाती है?

श्रीमद्भगवद्गीता की विशिष्टता

  1. अर्जुन का संशय युद्ध में हार-जीत के बारे में नहीं था। वह अपने विरुद्ध लड़ रहे महान योद्धाओं से नहीं डरता था। उसका संदेह यह था कि क्या युद्ध राष्ट्र, जाति और परिवार के कल्याण के लिए था? उसने हत्याओं के मूल उद्देश्य पर ही संदेह जताया। कुछ लोगों को लगता है कि हत्या न करना कायरता या कमजोरी का लक्षण नहीं है। कुछ ऐसा ही विचार अर्जुन के मन में आया था। लेकिन, भगवान कृष्ण ने यह उपदेश देकर स्थिति को नियंत्रित किया। इतिहास बताता है कि महाभारत के युद्ध के बाद इस देश ने तीन हजार साल तक शांति और सुख का भोग किया। हर स्थिति में हत्या न करने के गलत सिद्धांत के कारण ही हमारे देश ने गुंडों और असामाजिक तत्वों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। इतिहास बताता है कि इस तरह के रवैये ने हमारे देश के शांतिप्रिय लोगों को कमजोर किया। गीता के उपदेश ने अर्जुन को सत्य और न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। यही इस उपदेश की विशष्टता है।
  2. आमतौर पर, यह धारणा है कि मोक्ष का मार्ग हिंसा के मार्ग से अलग है। यह उपदेश झूठी अहिंसा, झूठी मृत्यु और झूठी शांति की अवधारणाओं से बाहर आने में सक्षम बनाता है और हिंसा के माध्यम से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होना बताता है। इस अर्थ में यह सफल प्रयास वास्तव में अद्वितीय है। इस उपदेश ने मानव समाज के सामने हिंसा और अहिंसा का सही अर्थ रखा है।
  3. गीता का उपदेश सफलतापूर्वक स्थापित करता है कि कैसे धर्म और कर्तव्यपरायणता के लिए शुद्ध और स्थिर बुद्धि के साथ युद्ध करने से व्यक्ति अपनी आत्मा को विकसित कर सकता है।