ईश्वर की कृपा

 

ईश्वर की कृपा का अर्थ है- ईश्वर द्वारा अपने गुणों का कुछ भाग प्रदान करने के लिए व्यक्तियों का चयन। यह एक तरह का इनाम है। ईश्वर की कृपा अर्जित करने के योग्य होने के लिए एक विशिष्ट विधि है। वह तरीका अथवा सिद्धांत है- हमारे कर्म जितना अधिक दूसरों के कल्याण के लिए होते हैं, उतना अधिक हम ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के अधिकारी हो जाते हैं। हमारे खातों में जितने अधिक ऐसे कर्म  जमा होते हैं, उतनी अधिक ईश्वर की कृपा हम पर बरसती है। यदि हम किसी कार्य की सफलता के लिए आवश्यक सभी कर्म ठीक रीति से करते हैं, तो ईश-कृपा स्वमेव हम पर हो जाती है। इसे प्राप्त करने के लिए अलग से कोई कर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। 

ईश्वर की ‘कृपा’ और ‘दया’ में भिन्नता होती है। ईश्वर द्वारा हम आत्मायों को उनके कर्मों के अनुसार मनुष्य व मनुष्य से इतर प्राणियों का शरीर प्रदान करना, ऐसी व्यवस्था करना कि प्रत्येक प्राणी मुक्ति को प्राप्त हो सके, सूर्य, जल, वायु, पृथ्वी आदि भूतों को बनाना, अन्न और औषधियाँ आदि बनाकर हमारे शरीरों का पालन करना आदि उसकी दया के अन्तर्गत आते हैं। हम जितना-जितना संसार के नियमों से अवगत होते जाते हैं, उतना-उतना हम ईश्वर की दया को समझने के योग्य हो जाते हैं।