धर्म का व्यवहारिक पक्ष

वास्तव में व्यवहारिक पक्ष को सिद्ध करने के लिए सैद्धांतिक पक्ष का दृढ़ होना आवश्यक है। हालाँकि यह आवश्यक नहीं कि सैद्धांतिक व्यक्ति उत्तम व्यवहार वाला भी हो। लेकिन, जिस व्यक्ति का सैद्धांतिक पक्ष दृढ़ नहीं है, उसका व्यवहार किसी विशेष परिस्थिति में व विशेष काल में तो उचित हो सकता है, परन्तु उसका व्यवहार सभी परिस्थितियों में व सभी कालों में उचित नहीं हो सकता।

सिद्धांतों को समझना व उन्हें दृढ़ करना शुष्क व कठिन काम है। इसके विपरीत, अपने व्यवहारों को बेहतर बनाना कम कठिन है व इसके परिणाम भी शीघ्र मिलते हैं। यदि, व्यवहारिक उच्चता को सिद्धांतों से जोड़ लिया जाए, तो सिद्धांतों की दृढ़ता इतनी कठिन व शुष्क प्रतीत नहीं होती। हमारा अंतिम लक्ष्य तो अपने सिद्धांतिक पक्ष को दृढ़ करना ही है, ताकि हमारे व्यवहार सभी परिस्थितियों में व सभी कालों में श्रेष्ठ हों।

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