क्या पौधों में वास्तव में जीवन होता है?
हालाँकि, पौधों में भी जीव है? शाक-सब्जियों को प्राप्त करने में भी हिंसा होती है? आदि प्रश्न मांसाहारियों द्वारा अपने पक्ष के बचाव में ही उठाए जाते हैं, परन्तु इन प्रश्नों के स्वतन्त्र समाधान की आवश्यकता इसलिए भी है कि आस्तिकों के पास मांसाहारियों के इन प्रश्नों का तार्किक उत्तर तो होना ही चाहिए। इस विषय पर सभी वैदिक विद्वान एकमत नहीं, परन्तु अधिकतर विद्वान मानते हैं कि पौधों व वनस्पतियों में आत्मा होती है और पौधों व वनस्पतियों में आत्मा मानने वाले ऋषियों के वचन भी मिलते हैं, जो इस विषय के शब्द प्रमाण हैं।
जिस वस्तु में आत्मा होती है, उसमे छह लक्षण होते हैं- इच्छा, ज्ञान, प्रयत्न, द्वेष, सुख और दुख। इन छह लक्षणों में सुख और दुख नैमित्तिक होते हैं व इच्छा, ज्ञान, प्रयत्न और द्वेष स्वाभाविक होते हैं। पौधों व वनस्पतियों में आत्मा होती है कि नहीं, इस विषय को एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। एक आम का पौधा भूमि में से उन्हीं तत्वों को ग्रहण करता है, जिनसे उसके फलों में एक विशेष तरह की मिठास उत्पन्न हो। भूमि से विशेष तत्वों को ग्रहण करना ही आत्मा का प्रयत्न गुण कहलाता है। यह प्रयत्न बगैर चाह अथवा इच्छा के नहीं हो सकता। दूसरे शब्दों में, पौधे के विशेष तत्वों को ग्रहण करने के प्रयत्न में उसकी इच्छा समाहित है। भूमि में विद्यमान भिन्न-भिन्न तत्वों में से कौन से तत्व उसे लेने हैं और कौन से तत्व उसे नहीं लेने हैं, यह उसका ज्ञान गुण है। किन तत्वों को उसे ग्रहण नहीं करना है, यह उस पौधे का द्वेष गुण है। आत्मा के चारों के चारों स्वाभाविक गुणों का पौधे में होना यह सिद्ध करता है कि पौधों व वनस्पतियों में आत्मा होती है।
अब यदि, पौधों व वनस्पतियों में आत्मा होती है, तो पौधों व वनस्पतियों से भोजन ग्रहण करना हिंसा कैसे नहीं? हिंसा का सम्बन्ध किसी को कष्ट देना नहीं, बल्कि किसी का अहित करना होता है। ईश्वरीय व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि हमें अपने अन्तिम ध्येय को पाने के लिए अपने शरीर को स्वस्थ व जीवित रखना आवश्यक है। अपने शरीर को स्वस्थ व जीवित रखने के लिए ईश्वर ने वेद में शाकाहार को करने व मांसाहार को न करने का विधान किया है। उचित व अनुचित, हिंसा व अहिंसा वेद द्वारा ही परिभाषित होते हैं। पौधों व वनस्पतियों में आत्मा होते हुए भी उनको अपने शरीर की रक्षार्थ सेवन करने से अर्थात उनका सेवन वेदानुकूल होने से हिंसा नहीं।