प्रश्न – कर्म का फल, कर्म का परिणाम तथा कर्म का प्रभाव क्या हैं? इन तीनों में क्या भेद है?
उत्तर- प्राय: सामान्य व्यक्ति सुख-दुख की प्राप्ति का कारण कर्म का फल ही मान लेते हैं, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि मनुष्य को कर्म के फल के रूप में तो सुख दुख आदि मिलते ही हैं, किन्तु कर्म के परिणाम व प्रभाव के रूप में भी सुख-दुख की प्राप्ति होती है। अपने कर्म के परिणाम व प्रभाव से भी सुख-दुख की प्राप्ति होती है तथा दूसरे द्वारा किये जाने वाले कर्म के परिणाम व प्रभाव से भी सुख-दुख की प्राप्ति होती है। इन तीनों की परिभाषा-
1. कर्म का फल:- कर्म पूरा हो जाने पर, कर्म के अनुरूप, अच्छे या बुरे कर्म के कर्ता को जो न्यायपूर्वक, न कम न अधिक, ईश्वर, राजा, गुरु, माता-पिता, स्वामी आदि के द्वारा सुख-दुख, या सुख-दुख को प्राप्त करने के साधन प्रदान करना कर्म का फल कहलाता है।
उदाहरण- किसी घी विक्रेता ने वनस्पति घी में पशु की चर्बी मिलाकर विक्रय किया। पकड़े जाने पर राजा द्वारा 19 वर्ष की कठोर सजा दी गई तथा 19 लाख रुपयों का दण्ड दिया गया। यह कर्म का फल है।
2. कर्म का परिणाम:- क्रिया करने के तत्काल पश्चात की जो प्रतिक्रिया है, उसे कर्म का परिणाम कहते हैं। जिस व्यक्ति या वस्तु से सम्बन्धित क्रिया की होती है, कर्म का परिणाम उसी व्यक्ति या वस्तु पर होता है।
उदाहरण- चर्बी मिश्रित नकली घी के विकृत हो जाने पर खाने वाले सैकड़ों-हजारों व्यक्ति रोगी हो गये, अन्धे हो गए। यह घी विक्रेता के मिलावट का परिणाम है कि जिन्होंने घी खाया वे तो रोगी हुए, अन्य जिन्होंने नहीं खाया वे स्वस्थ ही रहे।
उदाहरण- चालक द्वारा शराब पीकर बस चलाने से दुर्घटना हुई, इसके होने पर पाँच व्यक्ति मारे गये, दस घायल हो गये, बीस को चोटें आई। यह सब कर्म का परिणाम है। उन सबको दुख की अनुभूति हुई। उनके अनेक कार्य और योजनाएँ असफल हुई। चिकित्सा आदि में बहुत समय और धन लगा। यह सब कर्मों का परिणाम है। चालक को शराब पीकर बस चलाने और उसे दुर्घटनाग्रस्त कर देने रूप कर्म का फल तो शासक या ईश्वर बाद में देगा।
3. कर्म का प्रभाव:- किसी क्रिया, उसके परिणाम या फल को जानकर अपने पर या दूसरों पर जो मानसिक सुख-दुख, भय, चिन्ता, शोक आदि असर होता है। उसे कर्म का प्रभाव कहते हैं। जब तक सम्बन्धित व्यक्ति को क्रियादि का ज्ञान नहीं होगा, तब तक उस पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
उदाहरण- वनस्पति घी में पशु की चर्बी मिलाकर गाय का घी बनाकर बेचने वाला व्यापारी जब पकड़ा जाता है, तो उसके घरवाले, सगे संबंधी, मित्रादि दुखी होते हैं तथा उसके शत्रु, धार्मिक सज्जन सुखी होते हैं। बाजार में मिलने वाले गाय के घी पर आम जनता का संशय अविश्वास हो जाता है। यह कर्म का प्रभाव है।
कर्म के परिणाम, प्रभाव और फल को एक ही दृष्टांत में निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
उदाहरण- बार-बार मना करने पर भी बालक चाकू से खेल रहा था और खेलते-खेलते चाकू से बालक की अंगुली कट गयी, अंगुली कटने पर खून निकला। खून को देखकर पास में बैठा बालक रोने लगा। रोना सुनकर थोड़ी दूर खड़ी बालक की माता आई और चाकू से खेल रहे बालक की अंगुली कटी देखी। यह देखकर माता ने बालक को दो थप्पड़ लगाए। यहाँ दृष्टांत में बालक की अंगुली का कटना कर्म का परिणाम है, क्योंकि यह क्रिया के तत्काल बाद हुई प्रतिक्रिया है। पास में बैठे छोटे बालक का रोना कर्म का प्रभाव है, क्योंकि यह अंगुली कटने व अंगुली से खून का निकलने का असर है। माता द्वारा बालक को थप्पड़ लगाना कर्म का फल है क्योंकि क्रिया के अनुरूप आज्ञा भंग करने का कर्त्ता बालक को थप्पड़ लगाना रूप दण्ड दिया गया है। कर्म का परिणाम प्राय: तुरन्त होता है पर प्रभाव व फल में समय लगता है। कई बार अधिक और कई बार बहुत अधिक समय भी लगता है।