सुखी और शांत रहने के वैयक्तिक नियम
सुखी और शांत रहने के नियम बहुत ही सरल हैं और इसके लिए बड़े-बड़े ग्रंथों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है। सुखी और शांत रहने के नियम –
1 प्रातः जल्दी उठें, यानि सुबह 4 से 7 के बीच।
सुबह जल्दी उठना हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए तो अच्छा है ही, इसका हमारे सुखी और शांत रहने के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। दिन का प्रारम्भ अच्छा होना हमारे दिन भर के कार्य-कलापों को अच्छा बनाता है। सुबह जल्दी उठने के लिए जल्दी सोना आवश्यक है। सुबह जल्दी उठने के चक्कर में अपनी शारीरिक आवश्यकता अनुसार नींद के समय में कमी कभी नहीं करनी चाहिए।
2 सुबह का कुछ समय ‘धर्म’ और ‘अर्थ’ के चिंतन में बिताएं।
हमें ये विचारने चाहिए कि अबतक मैं धर्म को अपने व्यवहार में कहाँ तक ला पाया हूँ?, धर्म को और अधिक अपने व्यवहारिक जीवन में लाने की मेरे पास क्या सम्भावनाएँ हैं?, धर्म के मार्ग में मेरे सामने कौन-कौन सी बाधाएँ हैं और उन्हें कैसे पार किया जा सकता है?, क्या मैं सम्मुचित अर्थ का अर्जन कर पा रहा हूँ?, मुझे सम्मुचित अर्थ के अर्जन के लिए क्या करना चाहिए? आदि आदि। यहाँ अर्थ शब्द का मतलब रुपया-पैसा नहीं है, बल्कि यहाँ अर्थ शब्द का अभिप्राय उन सब वस्तुओं से है, जो रुपये-पैसे से खरीदी जा सकती हैं और जो हमारे अन्तिम ध्येय को प्राप्त करने में सहायक हैं।
3 सुबह कुछ समय वेदों का अध्ययन करें।
वेदों में दोनों तरह की विद्याओं का समावेश है- सांसारिक विद्या और आद्यात्मिक विद्या। जीवन-पथ पर चलने के लिए हमें दोनों तरह की विद्याओं की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर हमें यह भी पता होना चाहिए कि धन कैसे कमाया जाता है और हमें यह भी पता होना चाहिए कि धन कमाने का नैतिक तरीका क्या है, ताकि मोक्षरुपी अन्तिम लक्ष्य में किसी तरह की बाधा न हो।
4 सुबह ब्रह्म-यज्ञ और देव-यज्ञ के पश्चात अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कुछ शारीरिक व्यायाम व प्राणायाम करें। हमें यह चिंतन भी करना चाहिए कि हम कैसे अपने रोगों से मुक्त हो सकते हैं, हमें भावी रोगों से किस तरह बचना चाहिए, हमें अपने शारीरिक स्वास्थ्य को और अधिक अच्छा करने के लिए क्या करना चाहिए? आदि आदि।
हमारा शरीर हमें प्रसन्न रखने का सर्वोत्तम साधन है। यदि, हमें सुख से रहना है, तो हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहिए। शारीरिक स्वास्थ्य से हमारा अभिप्राय केवल बाह्य स्वास्थ्य से नहीं है, बल्कि प्रसन्नता के लिए हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी सोचना चाहिए। संध्या हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम है। हमारे विचार, उदाहरण के लिए, क्रोध आदि हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। संध्या तनाव को नष्ट करती है, जो हमारे खराब स्वास्थ्य का प्राथमिक कारण है।
5 अधिकतर हमारे दुखी होने का कारण होता है- हमारा यह अनुभव करना कि दूसरे तो हमसे अधिक सुखी हैं। यह अनुभव करने के लिए कि हम कितने सुखी हैं, हमें कभी-कभी अस्पतालों का चक्कर लगा लेना चाहिए।
6 हमारा कोई भी व्यवहार दूसरों से प्रभावित होकर नहीं होना चाहिए- चाहे वह कपड़े पहनना हो, चाहे कुछ खाना, चाहे कहीं जाना, कुछ पढ़ना आदि। इन सभी कार्यों के पीछे हमारी शारीरिक व मानसिक सुविधा ही होनी चाहिए। इसका कतई यह अर्थ नहीं कि हमें पहनने, खाने, पढ़ने, कहीं जाने आदि के बारे में दूसरों की सलह पर कार्य नहीं करना चाहिए, बल्कि हमें दूसरों की सलह तभी माननी चाहिए, यदि वह हमारे हित में हो और मोक्ष में बाधा न हो।
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