प्रश्न ६३. – लोक में तो देखते हैं कि स्वामी सेठ अपने सेवकों का जितना पारिश्रमिक होता है उससे कम या अधिक दे देता है। इसी प्रकार ईश्वर भी किसी को अपनी ओर से बिना ही कर्म के सुख-दुख दे देगा।
उत्तर- लोक में बिना ही कर्मों के जो किसी व्यक्ति को सुख अथवा सुखसाधन या दुख अथवा दुखसाधन दिये जाते हैं, वहाँ पर दाता के मन में राग या द्वेष होता है। बिना राग के कोई व्यक्ति किसी को बिना कर्मों के सुख नहीं देता और बिना द्वेष के किसी को बिना कर्मों के दुख नहीं देता।
उदाहरण- आजकल के रागी माता-पिता द्वारा अयोग्य अर्थात आदर्श दिनचर्या, व्यायाम, ईश्वरोपासना, यज्ञ, स्वाध्याय, सत्संग, सेवाभावना, विनम्रता, पुरुषार्थ, त्याग-तप, देशभक्ति, धार्मिकता आदि रहित बच्चों को धन सम्पति प्रदान करना राग का ही द्योतक है। लौकिक व्यक्ति की तरह ईश्वर रागी या द्वेषी नहीं है, न पक्षपाती है। यदि, किसी को बिना कर्मों के सुख-दुख देता, तो पक्षपाती अन्यायकारी हो जाएगा और ऐसे व्यक्ति को ईश्वर नहीं कहा जाएगा।
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