प्रश्न – मनुष्य के द्वारा जिस स्वरूप वाला व जिस मात्रा अर्थात स्तर वाला अच्छा या बुरा कर्म किया जाता है, तो क्या उसे फल भी उसी स्वरूप व उसी मात्रा अर्थात स्तर वाला मिलता है?
उत्तर- प्रत्येक अच्छे-बुरे कर्म का फल कितनी मात्रा में सुख-दुख रूप में मिलेगा, यह ईश्वर ने अनादि काल से निश्चित कर रखा है। प्रत्येक जीवात्मा को उसी निर्धारित मात्रा के अनुसार ईश्वर कर्मों का फल प्रदान करता है। किन्तु, प्रत्येक अच्छे-बुरे कर्म का फल अलग-अलग मात्रा में नहीं दिया जाता, बल्कि, सभी अच्छे बुरे कर्मों को मिलाकर फिर निर्धारण किया जाता है कि सबका सम्मिलित रूप में किस रूप में, किस मात्रा में, फल दिया जाये?
उदाहरण के लिए एक मनुष्य ने जीवन में जितनी हिंसा की, जितना झूठ बोला, जितनी चोरी की, जितना दुराचार किया, लोभ किया आदि सभी बुरे कर्मों को मिलाकर उनका एक समूह बन जाता है। उन सब बुरे कामों को मिलाकर इन सबका दुख किस रूप में किस स्तर का दिया जाये यह ईश्वर द्वारा निर्धारित किया जाता है। थप्पड़ मारने का फल, थप्पड़ के रूप में मिलता हो और हाथ काटने का हाथ काटने के रूप में, १000/- रुपये का चोरी का फल १000/- रुपये चोरी के रूप में ही मिलेगा, ऐसा नहीं है। अपितु सभी काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या -द्वेष, अहंकार, झूठ, छल-कपट आदि बुराइयों को संगृहीत करके किसी शरीर, आयु, भोग के रूप में मिलता है।
उदाहरण- किसी व्यापारी ने किसी अन्य व्यापारी से साल भर में ५0 प्रकार की भिन्न-भिन्न वस्तुएँ १0-२0 बार अलग-अलग खरीदी। कुल मिलाकर ७00 प्रकार की वस्तुएँ हुई। वर्ष के अन्त में हिसाब करते समय खरीदने वाला व्यापारी प्रत्येक वस्तु का अलग बिल नहीं चुकाता, बल्कि, सभी वस्तुओं के बिलों को मिलाकर जितना योग होता है, वह एक साथ चुका देता है। यही स्थिति कर्म के फल के विषय में जाननी चाहिये।
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