मनुष्य और ईश्वर के कार्यों में मौलिक भेद
मनुष्य अंशों में कार्य करता है, जबकि ईश्वर का कार्य पूर्णता को लिए हुए होता है। उदाहरण के लिए, भवन का निर्माण करते समय मनुष्य पहले नींव, फिर दीवारें, उसके बाद छत आदि का निर्माण करता है। लेकिन, ईश्वर हमारे शरीर को बनाते समय पहले हाथ, फिर पैर, उसके बाद पेट आदि को नहीं बनाता, बल्कि, वह एक ही बार में पूरे शरीर को बनाता है। प्रारंभ में वह शरीर छोटा होता है और समय के साथ-साथ वह उसके द्वारा स्थापित प्रकृति के नियमों के अनुसार बड़ा होता जाता है।
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