क्लेशों का होना कोई पाप नहीं है।
इस बात को समझने से पहले यह सत्य हमारे अंदर घर कर जाना चाहिए कि ईश्वर का सभी तरह का निर्माण हम आत्माओं के लाभ के लिए ही होता है। ईश्वर मनुष्य से इतर योनियों के शरीर मुख्यतः बुरे कर्मों को कटाने के लिए और मनुष्य शरीर हमारे अच्छे व बुरे, दोनों तरह के कर्मों को भुगाने के लिए व मोक्ष प्राप्ति के कर्मों को करने का अवसर प्रदान करने के लिए बनाता है। मनुष्य शरीर के साथ-साथ क्लेश भी ईश्वर द्वारा ही प्रदत्त हैं। जैसे हम यह नहीं कह सकते कि ईश्वर द्वारा आत्माओं को शरीर प्रदान करना उनके अहित के लिए है, ऐसे ही क्लेशों का होना भी कोई पाप नहीं है। ये पाप तब बन जाते हैं, जब हम इन्हें दूर करने का प्रयास नहीं करते। पाप की परिभाषा है- जो काम किसी के अहित के लिए किया जाए। जब हम इन क्लेशों को दूर करने का प्रयास नहीं करते, तो हम अपनी आत्मा का अहित कर रहे होते हैं।
यह ठीक है कि पांच क्लेश- अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश हमारे दुखों के कारण हैं, परन्तु ये क्लेश ही परोक्ष रूप से हमें अपने अंतिम उद्देश्य, मोक्ष तक पहुंचने में सहायता करते हैं।
अविद्या से अन्य चारों क्लेशों का मूल अविद्या ही है, अर्थात ये चारों अविद्या के कारण ही उत्पन्न होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो ये अविद्या के ही भिन्न-भिन्न खंड हैं, जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के द्योतक हैं। जैसे हमारे मन की वृत्तियाँ क्लिष्ट भी होती हैं और अक्लिष्ट भी, ठीक वैसे ही ये पांचों क्लेश हमारे मोक्ष को प्राप्त करने में सहायक भी होते हैं और बाधक भी। इस निबंध का उद्देश्य यह बताना है कि कैसे ये क्लेश हमारे लिए लाभकारी होते हैं।
अस्मिता क्लेश का लाभ- इस संसार को बनाने का उद्देश्य हम प्राणियों को संसार का भोग कराना व अंतिम लक्ष्य, मोक्ष तक पहुंचाना है। संसार का भोग भी मोक्ष तक पहुँचने के लिए आवश्यक है। अब प्रश्न उठता है कि कैसे संसार का भोग मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक है?
यह ठीक है कि मनुष्य से इतर योनियाँ मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती और केवल मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है, परन्तु मनुष्य से इतर योनियाँ का मनुष्य योनि तक पहुँचने के लिए संसार का भोग करना आवश्यक है। भोग करके बुरे कर्मों के समाप्त हो जाने पर ईश्वर की व्यवस्था से मनुष्य से इतर योनियाँ मनुष्य शरीर प्राप्त करती हैं, जिसमें उनको मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने का अवसर मिलता है। इसी तरह, जो मनुष्य अभी मोक्ष के योग्य नहीं हैं, उनके स्तर को ऊँचा उठाने के लिए अथवा उनको मोक्ष के योग्य बनाने के लिए, उनका संसार का भोग करना आवश्यक है। भोग से ही उनको संसार के बारे में विभिन्न जानकारियाँ मिलती हैं, जिससे उनकी प्रज्ञा बुद्धि जागृत हो पाती है। प्रज्ञा बुद्धि से संसार की असारता जानने के बाद ही व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होने का व्रत ले पाता है।
अब हम इन सब सत्यों के साथ अस्मिता क्लेश का सम्बन्ध जानने का प्रयत्न करते हैं। जब तक किसी प्राणी में अस्मिता क्लेश न हो, वह संसार का भोग कर ही नहीं सकता। भोग करने वाला चेतन है, जबकि संसार के भोग्य पदार्थ अचेतन हैं। चेतन आत्माओं को अचेतन वस्तुओं का भोग कराने के लिए ईश्वरीय व्यवस्था यह है कि जिस वस्तु का आत्मा भोग करना चाहता है, उस जैसा स्वरूप हमारी बुद्धि का हो जाता है, जिससे आत्मा को उस वस्तु की कुछ जानकारियाँ मिलती हैं, जो आत्मा को सुख-दुख की अनुभूति कराती हैं। अपनी आत्मा और अपनी बुद्धि को एक मानना ही अस्मिता क्लेश है।
राग क्लेश व द्वेष क्लेश का लाभ- जिस वस्तु से हमें सुख मिलता है, राग के वशीभूत होकर हमारा मन उसी वस्तु को बार-बार पाना चाहता है। इस क्लेश के बिना हम मोक्ष सुख की ओर बार-बार प्रयत्नशील नहीं हो सकते। इसी भांति, जिस वस्तु से हमें दुख मिलता है, हम उस वस्तु को छोड़ना व हटाना चाहते हैं। इस क्लेश के बिना हम मोक्ष सुख के मार्ग की बाधाओं को छोड़ना अथवा हटाना नहीं चाहेंगे। राग व क्लेश के कारण ही हम उत्तम गुणों को अपना पाते हैं और बुराइयों को छोड़ पाते हैं।
अभिनिवेश क्लेश का लाभ- मौत के डर को अभिनिवेश क्लेश कहा जाता है। हर प्राणी अपने जीवन की सुरक्षा के लिए तत्पर रहता है। मृत्यु आ जाने से मनुष्य से इतर योनियाँ भोग करके बुरे कर्मों के समाप्त न कर पाने से मोक्ष से दूर हो जाती हैं और मनुष्य मोक्ष के लिए आवश्यक उत्तम गुणों को धारण नहीं कर पाता।
क्लेशों के लाभ तो हैं, पर फिर भी ये क्लेश मोक्ष के रास्ते की बहुत बड़ी बाधा हैं। संसार के सुख को छोड़ कर ही हम मोक्ष-सुख के अधिकारी बन सकते हैं। ये क्लेश हमें संसार के सुख भोगने और मोक्ष-पथ पर अग्रसर होने में सहायक तो हैं, परन्तु मोक्ष-सुख के लिए हमें इन्हें भी छोड़ना होता है। मोक्ष-सुख के सामने यह संसार का सुख बहुत नीचे स्तर का है, इसलिए सांसारिक सुख को छोड़ना कोई घाटे का सौदा नहीं।
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