कुछ पाश्चात्य विचारकों के वेद सम्बन्धित उद्धरण

लॉर्ड मोर्ले घोषणा करते हैं-‘वेदों में जो पाया जाता है, वह और कहीं नहीं है।’

वेदों को सच्चा विज्ञान मानते हुए अमेरिकन लेडी व्हीलर विलोक्स लिखती हैं-

‘हम सभी ने भारत के प्राचीन धर्म के बारे में सुना और पढ़ा है। यह महान वेदों की भूमि है। इन वेदों के द्रष्टाओं ने अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए धार्मिक विचार ही नहीं दिए हैं, बल्कि ऐसे तथ्य भी घोषित किए हैं, जो विज्ञान की सभी शाखाओं के द्वारा सत्य साबित हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि बिजली, रेडियम, इलेक्टोरन, हवाई जहाज आदि सभी चीजों के बारे में वेदों के द्रष्टाओं को जानकारी थी।’     

डब्ल्यू डी ब्राउन ने वैदिक धर्म पर अपनी निम्नलिखित टिप्पणी व्यक्त की-

 ‘यह, अर्थात्, वैदिक धर्म केवल एक ईश्वर को बताता है। यह पूरी तरह से वैज्ञानिक धर्म है। यहां, धर्म और विज्ञान साथ-साथ चलते हैं। यहाँ धर्मशास्त्र का आधार विज्ञान और दर्शन हैं।’

अमेरिकी विद्वान थ्योरो ने वेदों के महत्व को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है-

‘वेदों को पढ़ने पर मैंने इसे अर्थात वेदों के ज्ञान को एक शुद्ध माध्यम से आने वाले प्रकाश की भांति अनुभव किया है, जिसमें बड़े उच्च स्तर की बातों का वर्णन अत्यन्त सरल और सार्वभौमिक तरीके से है। वेदों में वर्णित ईश्वर का स्वरूप अत्यन्त तर्कसंगत है।’  

विख्यात दार्शनिक डॉ. जेम्स क्यूजोन ने अपनी पुस्तक- पाथ टू पीस- में लिखा है।

 ‘केवल वैदिक आदर्शों के आधार पर ही, जो विरोध के कारणों को और सहानुभूति से घृणा को नष्ट करने वाले हैं, इस पृथ्वी पर शाश्वत स्वर्ग की कल्पना संभव है।’        

उबनिगन विश्वविद्यालय के प्रो. पॉल थीमा ने 26वीं इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ ओरिएंटलिस्ट्स में अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा –

 ‘वेद केवल भारत को ही गौरवान्वित करने वाले नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए यह अमूल्यवान दस्तावेज हैं, क्योंकि इनमें हमें मानव को सांसारिकता से ऊपर उठाने का प्रयास दिखता है।’

प्रसिद्ध पारसी विद्वान फरदून दादा चांजी वेदों की महानता के बारे में लिखते हैं-

‘वेद ज्ञान की एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें प्रकृति का ज्ञान, धर्म का ज्ञान, प्रार्थना का ज्ञान, नैतिकता का ज्ञान आदि सभी शामिल हैं। ‘वेद’ शब्द का अर्थ है, बुद्धि अथवा ज्ञान और अपने अर्थ के अनुरूप ही इसमें सब तरह का ज्ञान विद्यमान है।’

फ्रांसीसी विद्वान जैकलियाट ने अपनी पुस्तक- द बाइबल इन इंडिया में लिखा है –

 ‘आश्चर्यजनक तथ्य! सारी दुनिया में केवल वेद ही ऐसे ज्ञान के स्रोत हैं, जिसमें विद्यमान सभी विचार आधुनिक विज्ञान के साथ पूर्ण सामंजस्य रखते हैं। केवल वेद में ही विज्ञान के अनुरूप सृष्टि-रचना की प्रक्रिया को धीमी व क्रमिक माना गया है।’ 

ईसाई धर्माचारी मोरिस फिलिप वेदों को ईश्वर का ज्ञान मानते हैं और लिखते हैं-

‘यह निष्कर्ष अपरिहार्य है कि भारत में धार्मिक विचारों का विकास समान रूप से नीचे की ओर हुआ है, न कि ऊपर की ओर। धार्मिक विचारों का विकासवाद के सिद्धान्त के विरुद्ध ह्रास हुआ है। इसलिए, हमारा इस निष्कर्ष पर पहुंचना तर्कसंगत है कि वैदिक आर्यों की उच्च और शुद्ध अवधारणाएँ एक दैवीय रहस्योद्घाटन के परिणाम थे।’

जे. मस्कारो ने अपने विचारों को शब्द इस प्रकार दिए-

‘अगर भारत की बाइबल संकलित की जाती तो, वेद, उपनिषद और भगवद गीता हिमालय की तरह अन्य सभी पुस्तकों से ऊपर उठी मिलती।’