आध्यात्मिकता और आध्यात्मिक नियम
– नीचे कुछ आध्यात्मिक नियमों का उल्लेख किया जा रहा है:
- ईश्वर हर जगह मौजूद है। हम जो कुछ भी मानसिक या शारीरिक रूप से करते हैं, ईश्वर उसे देखता है और उसी के अनुसार हमें फल देता है।
- अब, ईश्वर का ज्ञान ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद नामक पुस्तकों में संजो लिया गया है। वेदों के ज्ञान को आत्मसात किए बिना, हम अपने अंतिम लक्ष्य, मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकते।
- ईश्वर इस ब्रह्मांड का निर्माता और संहारक है। उसे ठीक से जाने बिना हम उन्नति नहीं कर सकते।
- सत्य को अपने व्यवहार में लाए बिना हम अपना, परिवार, समाज, राष्ट्र और दुनिया का भला नहीं कर सकते।
- जीवित और निर्जीव वस्तुओं से व्यवहार करने के निश्चित तरीके हैं। उदाहरण के लिए, भाई, माता, पिता, शिक्षक, किसान, छात्र, डॉक्टर, इंजीनियर, सरकारी नौकर, निजी नौकर, राजा आदि के व्यवहार के तरीके निश्चित होते हैं। । धन कमाने के तरीके और उसका उपयोग भी हमारे अंतिम लक्ष्य, मुक्ति को प्राप्त करने की दिशा में ही होना चाहिए। अपने दायित्वों के सही निर्वहन से ही हम ईश्वर की ओर बढ़ सकते हैं।
- आत्मा, ईश्वर की तरह, नित्य है। दूसरे शब्दों में, वह कभी नहीं मरती, लेकिन, इसकी विशेषताएं ईश्वर से सदा भिन्न रहती हैं। ईश्वर आत्माओं को शरीर प्रदान करता है। आत्मा द्वारा शरीर धारण करना जन्म कहलाता है और जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है। यह बात उलटे ढंग से भी सत्य है अर्थात जिसकी मृत्यु होती है, वह अवश्य दोबारा जन्म लेता है। ईश्वर को अपने कार्यों को करने के लिए शरीर धारण करने की आवश्यकता नहीं है।
- ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के पीछे एक सिद्धान्त काम करता है और वह सिद्धान्त है- हम जितना-जितना संसार का उपकार करते हैं, उतनी-उतनी हम पर ईश्वर की कृपा बरस जाती है।
– भौतिक नियम और आध्यात्मिक नियम एक दूसरे के पूरक हैं। जिस प्रकार प्राण या श्वास शरीर को जीवन देते हैं, उसी प्रकार आध्यात्मिक नियम भौतिक नियमों को अर्थपूर्ण बनाते हैं। दोनों एक दूसरे के बिना अर्थहीन हैं। संसार की जड़ और चेतन वस्तुओं के साथ जिस तरह का व्यवहार हमारे अस्तित्व को अर्थपूर्ण बनाता है, उसी व्यवहार को धर्म के नाम से कह दिया जाता है। इसलिए, व्यवहार और धर्म में अंतर नहीं किया जा सकता।
-आत्मा की कार्य करने की स्वतंत्रता को छोड़कर इस दुनिया की हर चीज पूर्व-निर्धारित है और इसे बदला नहीं जा सकता। कोई भी ईश्वर द्वारा बनाई गई व्यवस्था को बदल नहीं सकता। उदाहरण के लिए, ईश्वर ने कानों को बाहरी ध्वनियों को सुनने के लिए बनाया है। कोई भी कितना भी बड़ा योगी क्यों न हो, ईश्वर द्वारा बनाई इस व्यवस्था को बदल नहीं सकता। प्राकृतिक तत्वों के व्यवहार के विशिष्ट पैटर्न होते हैं, जिन्हें प्राकृतिक नियम कह दिया जाता है। इसी तरह, ऐसी विशिष्ट विधि है जिसके द्वारा मनुष्य अपने परिवार, समाज, राष्ट्र आदि के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकता है। ऐसी पूर्व-निर्धारित विधि को आध्यात्मिक नियम कह दिया जाता है। उदाहरण के लिए, पाप आदि का फल हमेशा दुख ही होता है। स्तुति, प्रार्थना और उपासना ईश्वर की पूजा करने के तीन तरीके हैं। उसकी पूजा हमें सभी सांसारिक परिस्थितियों में उसके निर्देशों पर टिके रहने की क्षमता प्रदान करती है।
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