About raman-admin

This author has not yet filled in any details.
So far raman-admin has created 235 blog entries.

ईश्वर के लाभ

ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को जानने के लाभ हमारा शरीर, बुद्धि, इन्द्रियाँ, नदियाँ, पहाड़, सूर्य, अन्न, वनस्पतियां आदि, जिनसे हम सब तरह के सुख उठाते हैं और भिन्न भिन्न वैज्ञानिक खोजें आदि करते हैं, ईश्वर की ही देन हैं। ईश्वर के इस योगदान को स्वीकार करना ईश्वर नाम की सत्ता [...]

ईश्वर के लाभ2024-12-14T15:29:20+00:00

कारण-कार्य सिद्धान्त

कारण-कार्य सिद्धान्त विज्ञान का मौलिक आधारभूत सिद्धान्त है कि कोई भी कार्य कारण के बगैर नहीं होता अर्थात यदि, कोई कार्य हुआ है, तो उसके पीछे उसका कोई कारण भी अवश्य होगा व यदि कोई कारण विद्यमान है, तो उसका कार्य भी अवश्य होगा। आज के विज्ञान ने [...]

कारण-कार्य सिद्धान्त2024-12-23T04:49:32+00:00

क्लेशों का होना कोई पाप नहीं

क्लेशों का होना कोई पाप नहीं है। इस बात को समझने से पहले यह सत्य हमारे अंदर घर कर जाना चाहिए कि ईश्वर का सभी तरह का निर्माण हम आत्माओं के लाभ के लिए ही होता है। ईश्वर मनुष्य से इतर योनियों के शरीर मुख्यतः बुरे कर्मों को [...]

क्लेशों का होना कोई पाप नहीं2024-12-13T12:33:44+00:00

सत्व, रजस और तमस का प्रभाव

सत्व, रजस और तमस का प्रभाव हमारे स्थूल शरीर, मन आदि प्राकृतिक तत्वों- सत्व, रजस और तमस से बने हैं। इन तत्वों के स्वभाव का पता होने पर हम अच्छी तरह से अपने व दूसरों के बारे में जान सकते हैं। प्रत्येक सांसारिक वस्तु में प्रकृति के तीनों [...]

सत्व, रजस और तमस का प्रभाव2024-12-13T12:21:41+00:00

वेद में धर्म का स्वरूप

  वेद में धर्म का स्वरूप     मन्त्र     ओम् सं गच्छध्वं -से- उपासते। -ऋग्वेद 10//191//2 अर्थ-  हे मनुष्य लोगो! जो पक्षपातरहित न्याय सत्याचरण से युक्त धर्म है, तुम लोग उसी को ग्रहण करो, उससे विपरीत कभी मत चलो, किन्तु उसी की प्राप्ति के लिए विरोध को छोड़ [...]

वेद में धर्म का स्वरूप2024-11-10T11:50:26+00:00

ईश्वर को प्राप्त करने के मायने

ईश्वर को प्राप्त करने के मायने क्या होते हैं? -आचार्य अंकित प्रभाकर इसी संदर्भ में एक और शब्द बहुत प्रयोग किया जाता है, वह है- ईश्वर-साक्षात्कार। किसी वस्तु को प्राप्त करने के अर्थ होता है, उस वस्तु से जितना लाभ लिया जाना सम्भव हो, उतना ले लेना। उदाहरणार्थ- [...]

ईश्वर को प्राप्त करने के मायने2024-09-16T15:00:44+00:00

दर्शनों को पढ़ने का क्रम

दर्शनों को पढ़ने का क्रम वेदों के उपांग कहे जाने वाले छः दर्शन वास्तव में एक ही वैदिक-दर्शन के विभिन्न भाग हैं, अर्थात ये छः दर्शन भारतीय दर्शन के विभिन्न भागों को विस्तार से समझाने वाले छः विभिन्न शास्त्र हैं। इनको एक ही दर्शन के अवयव मानने से [...]

दर्शनों को पढ़ने का क्रम2024-09-16T07:20:07+00:00

हमें दर्शन क्यों पढ़ने चाहिए?

  हमें दर्शन क्यों पढ़ने चाहिएं? दर्शनों को पढ़ने का क्रम वेदों के उपांग कहे जाने वाले छः दर्शन वास्तव एक ही वैदिक-दर्शन के विभिन्न भाग हैं, अर्थात ये छः दर्शन भारतीय दर्शन के विभिन्न भागों को विस्तार से समझाने वाले छः विभिन्न शास्त्र हैं। इनको एक ही दर्शन [...]

हमें दर्शन क्यों पढ़ने चाहिए?2025-04-19T11:50:23+00:00

दर्शन के मायने क्या होते हैं?

दर्शन के मायने क्या होते हैं? ‘जीवन जीते हुए बहुत से विषयों पर हमारा चिन्तन करना आवश्यक हो जाता है। चिन्तन की परम्परा को ही दर्शन कहते हैं। विभिन्न विषयों में हमारी क्या दृष्टि हो, उसी को छः दर्शन शास्त्रों में बताया गया है।’ -आचार्य सत्यजित आर्य  ‘वैसे [...]

दर्शन के मायने क्या होते हैं?2024-07-14T15:28:18+00:00

देवयज्ञः

  अथ द्वितीयोऽग्निहोत्रो देवयज्ञः प्रोच्यते उसका आचरण इस प्रकार से करना चाहिए कि सन्ध्योपासन करने के पश्चात् अग्निहोत्र का समय है। उसके लिए सोना, चांदी, तांबा, लोहा वा मिट्टी का कुण्ड बनवा लेना चाहिए। जिसका परिमाण सोलह अंगुल गहरा और तला चार अंगुल का लम्बा चौड़ा रहे। एक [...]

देवयज्ञः2024-06-12T10:11:57+00:00
Go to Top