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वेद में धर्म का स्वरूप

  वेद में धर्म का स्वरूप     मन्त्र     ओम् सं गच्छध्वं -से- उपासते। -ऋग्वेद 10//191//2 अर्थ-  हे मनुष्य लोगो! जो पक्षपातरहित न्याय सत्याचरण से युक्त धर्म है, तुम लोग उसी को ग्रहण करो, उससे विपरीत कभी मत चलो, किन्तु उसी की प्राप्ति के लिए विरोध को छोड़ [...]

वेद में धर्म का स्वरूप2024-11-10T11:50:26+00:00

ईश्वर को प्राप्त करने के मायने

ईश्वर को प्राप्त करने के मायने क्या होते हैं? -आचार्य अंकित प्रभाकर इसी संदर्भ में एक और शब्द बहुत प्रयोग किया जाता है, वह है- ईश्वर-साक्षात्कार। किसी वस्तु को प्राप्त करने के अर्थ होता है, उस वस्तु से जितना लाभ लिया जाना सम्भव हो, उतना ले लेना। उदाहरणार्थ- [...]

ईश्वर को प्राप्त करने के मायने2024-09-16T15:00:44+00:00

दर्शनों को पढ़ने का क्रम

दर्शनों को पढ़ने का क्रम वेदों के उपांग कहे जाने वाले छः दर्शन वास्तव में एक ही वैदिक-दर्शन के विभिन्न भाग हैं, अर्थात ये छः दर्शन भारतीय दर्शन के विभिन्न भागों को विस्तार से समझाने वाले छः विभिन्न शास्त्र हैं। इनको एक ही दर्शन के अवयव मानने से [...]

दर्शनों को पढ़ने का क्रम2024-09-16T07:20:07+00:00

हमें दर्शन क्यों पढ़ने चाहिए?

  हमें दर्शन क्यों पढ़ने चाहिए? दर्शनों को पढ़ने का क्रम वेदों के उपांग कहे जाने वाले छः दर्शन वास्तव एक ही वैदिक-दर्शन के विभिन्न भाग हैं, अर्थात ये छः दर्शन भारतीय दर्शन के विभिन्न भागों को विस्तार से समझाने वाले छः विभिन्न शास्त्र हैं। इनको एक ही दर्शन [...]

हमें दर्शन क्यों पढ़ने चाहिए?2024-07-14T23:55:46+00:00

दर्शन के मायने क्या होते हैं?

दर्शन के मायने क्या होते हैं? ‘जीवन जीते हुए बहुत से विषयों पर हमारा चिन्तन करना आवश्यक हो जाता है। चिन्तन की परम्परा को ही दर्शन कहते हैं। विभिन्न विषयों में हमारी क्या दृष्टि हो, उसी को छः दर्शन शास्त्रों में बताया गया है।’ -आचार्य सत्यजित आर्य  ‘वैसे [...]

दर्शन के मायने क्या होते हैं?2024-07-14T15:28:18+00:00

देवयज्ञः

  अथ द्वितीयोऽग्निहोत्रो देवयज्ञः प्रोच्यते उसका आचरण इस प्रकार से करना चाहिए कि सन्ध्योपासन करने के पश्चात् अग्निहोत्र का समय है। उसके लिए सोना, चांदी, तांबा, लोहा वा मिट्टी का कुण्ड बनवा लेना चाहिए। जिसका परिमाण सोलह अंगुल गहरा और तला चार अंगुल का लम्बा चौड़ा रहे। एक [...]

देवयज्ञः2024-06-12T10:11:57+00:00

ब्रह्मयज्ञः

  ओ३म अथ ब्रह्मयज्ञः यह पुस्तक नित्यकर्म विधि का है। इसमें पन्न्चमहायज्ञ का विधान है, जिनके ये नाम हैं कि-ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतयज्ञ और नृयज्ञ। उनके मन्त्र, मन्त्रों के अर्थ और जो-जो करने का विधान लिखा है, सो-सो यथावत् करना चाहिए। एकान्त देश में आत्मा, मन और शरीर को [...]

ब्रह्मयज्ञः2024-06-12T10:12:43+00:00

वास्तव में कर्मकाण्ड के मायने क्या होते हैं?

वास्तव में कर्मकाण्ड के मायने क्या होते हैं? भारतीय लोग कर्मकाण्ड शब्द से बहुत परिचित हैं। अभी, धार्मिक क्रियाओं को निश्चित रीति से करने को ही कर्मकाण्ड कहा जाता है। परन्तु, ऐसा नहीं है। आइए, इसके वास्तविक अर्थ को समझते हैं - किसी भी काम को करने की [...]

वास्तव में कर्मकाण्ड के मायने क्या होते हैं?2024-04-20T10:24:33+00:00

ईश्वर सृष्टि का शासक कैसे है?

ईश्वर सृष्टि का शासक कैसे है? मानव समाज में शासक, राजा, न्यायाधीश आदि चुने जाते हैं। लेकिन, ईश्वर के विषय में ऐसा नहीं है। ईश्वर अपने कार्यों के कारण, अपने गुणों के कारण व अपने सामर्थ्य के कारण सृष्टि का एकमात्र शासक है। यह ठीक वैसे ही है, [...]

ईश्वर सृष्टि का शासक कैसे है?2024-04-20T10:29:19+00:00

प्रार्थना के मायने

प्रार्थना के मायने -'प्रार्थना' हमारे जीवन में महत्त्वपूर्णभूमिका निभाती है। समाज में, इसके बारे में बहुत सी गलत धारणाएं घर कर गई हुई हैं। इसलिए, यह अति-आवश्यक हो जाता है कि इसके सही प्रारूप को प्रकाशित किया जाए। इसके सही प्रारूप को समझने के लिए कृपया निम्नलिखित बातों [...]

प्रार्थना के मायने2023-10-12T15:10:37+00:00
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