संध्या के मंत्रों के अर्थ

-हे सर्वरक्षक परमेश्वर! आप प्राणों के प्राण, अर्थात सबको जीवन देने वाले, सब दुखों से छुड़ानेवाले, स्वयं सुखस्वरूप और अपने उपासकों को सुखों की प्राप्ति कराने वाले हैं। आप सकल जगत के उत्पादक, सूर्यादि प्रकाशकों के भी प्रकाशक, वरण अथवा कामना करने-योग्य, निरुपद्रवी अर्थात अविचल, निष्पापी, पवित्र, सब दोषों से रहित व पूर्ण अर्थात परिपक्व हैं। हम आपका ध्यान करते हैं। आप हमारी बुद्धियों को उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव में प्रेरित कीजिए, अर्थात आप हमें सद्बुद्धि दीजिए।

-हे सर्वरक्षक, सर्वव्यापक परमेश्वर! आप मनोवाञ्छित सुख की प्राप्ति के लिए और पूर्णानन्द (मोक्ष-सुख) की प्राप्ति के लिए तथा पूर्ण रक्षा के लिए हमारे लिए कल्याणकारी होवें, अर्थात आप हमारा कल्याण कीजिए और हम पर सुख की वर्षा कीजिए, अर्थात हम आपके कल्याण को व आप द्वारा निरन्तर की जाने वाली सुख की वर्षा को अनुभव कर पाएं।

-हे सर्वरक्षक, परमेश्वर! आपकी कृपा से मेरा सारा शरीर स्वस्थ, यशवान और बलवान रहे।  

-हे सत्यस्वरूप, अविनाशी भगवन, आकाश के समान सर्वव्यापक परमात्मा! मेरे सभी अङ्गों को पवित्र कर दो, ताकि वे सभी अच्छी तरह से आपकी आज्ञाओं का पालन कर सकें।

-हे परमेश्वर! आप प्राणों के प्राण हैं, आप सब प्रकार के दुखों को दूर करने वाले हैं, आप सुखस्वरूप हैं और सभी को सुख देने वाले हैं, आप सबसे महान, सबके पूज्य तथा एकमात्र उपासनीय हैं, आप समस्त संसार को उत्पन्न करने वाले हैं, आप दुष्टों को दण्ड देने वाले तथा ज्ञानस्वरूप हैं, आप सत्यस्वरूप और अविनाशी हैं। इस प्रकार ईश्वर के नामों के अर्थों का स्मरण करते हुए, इन गुणों को अपने अन्दर धारण करने का संकल्प लें।

-हे परमेश्वर! आपके ज्ञानमय अनन्त सामर्थ्य से सत्य-ज्ञान के भण्डार वेद और सत्व-रज-तम-युक्त कार्यरूप प्रकृति पहले की भांति उत्पन्न हुए। ईश्वर सब को उत्पन्न करके, सब में व्यापक होके, अन्तर्यामी रूप से सब के पाप-पुण्यों को देखता हुआ, पक्षपात छोड़ के सत्य न्याय से सब को यथावत फल दे रहा है।

ऐसा निश्चित जान के, हम पापकर्मों का आचरण सर्वथा छोड़ दें।

-हे ज्ञानस्वरूप ईश्वर! आप सब प्रकार से हमारी रक्षा करनेवाले हैं। हमारे सामने की दिशा में, हमारे दक्षिण दिशा में, हमारे पीछे की दिशा में, हमारे बाईं ओर, हमारे नीचे की दिशा में व हमारे ऊपर की दिशा में अर्थात हमारे सभी ओर के आप ही स्वामी हैं।

आप अपने बन्धनरहित होने के गुण, अजन्मा व रक्षा करने के गुण व ज्ञानमय होने के गुणों के माध्यम से सतत हमारे जीवन की रक्षा करते हैं। आप अपने द्वारा रचे कीट-पतङ्ग आदि की योनियों, बड़े-बड़े अजगर सर्पादि प्राणियों, वनों आदि के माध्यम से भी हमारी रक्षा करने वाले हैं।

हे ईश्वर! हम आपके इन गुणों को नमस्कार करते हैं। जो ईश्वर के गुण और ईश्वर के रचे पदार्थ जगत की रक्षा करने वाले हैं और जो पापियों अर्थात अधार्मिकों को बाणों के समान पीड़ा देने वाले हैं, उनको हमारा नमस्कार हो।   

जो कोई अज्ञान से हमसे द्वेष करता है व जिस किसी से अज्ञानवश हम द्वेष करते हैं, उस द्वेषभाव को हम सूर्य की किरणों, प्राण, माता-पिता और ज्ञानी लोगों, विद्युत आदि दिव्य शक्तियों के वश में रखते हैं, ताकि न हम किसी से वैर करें और न कोई अन्य प्राणी हम से वैर करे।

-हे परमेश्वर! आप सब अविद्या-अन्धकार से अलग प्रकाशस्वरूप, प्रलय के अनन्तर भी सदैव वर्त्तमान, देवों के भी देव, सम्पूर्ण चेतन व जड़ वस्तुओं के आत्मा और सबसे उत्तम हैं। हम इस सत्य को समझने वाले हों।

हमारी रक्षा करनी आपके हाथ है, क्योंकि हम लोग आपकी शरण में हैं।

-हे परमेश्वर! आप सब जगत के उत्पादक व पालनकर्त्ता, सब देवों के देव, सबके आधार हैं। हम विश्व के पदार्थों को जानने व समझने के लिए आपकी उपासना करते हैं। आप द्वारा रचित संसार की सभी वस्तुएं व उनके नियम और वेद के मंत्र आप की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करने वाली झंडियां हैं।
ऐसे ईश्वर की ही उपासना हम सदा किया करें, अन्य किसी की नहीं।

-हे परमात्मा! आप जो सभी लोक-लोकान्तरों को बनाकर उनमें व्याप्त होकर धारण और रक्षण करनेवाले हैं। आप जो चेतन और स्थावर जगत के आत्मा हैं, आप जो रागद्वेषरहित मनुष्यों के, सब उत्तम कामों में वर्त्तमान मनुष्यों के, अग्नि के समान मार्गदर्शक मनुष्यों के प्रकाशक हैं, आप जो सूर्यलोक और प्राणों को बनाने वाले हैं, आप जो अद्भुतस्वरूप हैं, आप जो सकल मनुष्यों के सब दुख नाश करने के लिए परम उत्तम बल हैं, वह आप हमारे हृदयों में यथावत प्रकाशित रहें।

-हे परमेश्वर! आपकी कृपा से हम सौ वर्षों तक आपको व जगत को देखें अर्थात आपकी व जगत की वास्तविकता को समझें, सौ वर्षों तक प्राणों को धारण कर जीवित रहें अर्थात जीवन के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यथाशक्ति प्रयत्न करें, सौ वर्षों तक शास्त्रों और मङ्गल-वचनों को सुनें व उनके अनुरूप आचरण करें, सौ वर्षों तक स्वयं द्वारा समझी वास्तविकताओं का उपदेश करें, सौ वर्षों तक अदीन अर्थात स्वतंत्र, स्वस्थ, समृद्ध और सम्मानित रहें और आपकी कृपा से ही सौ वर्षों के उपरान्त भी हम लोग देखें, जीवें, सुने, वेद-उपदेश करें और स्वाधीन रहें।

-हे ईश्वर दयानिधे! आपकी कृपा से हम जो-जो उत्तम काम करते हैं, उनके बदले में कोई सांसारिक कामना न करते हुए हम आपकी प्राप्ति की ही चाहना करें, जिससे हम सदा सत्य, न्याय और परोपकार का आचरण करें, धर्मयुक्त कर्मों से ही सांसारिक सुख-प्राप्ति के पदार्थों को प्राप्त करें, धर्म और अर्थ से इष्ट भोगों का सेवन करें और सब दुखों, से मुक्त होकर सर्वदा आनन्द में रहें। इन सभी बातों को सिद्धि हमें अतिशीघ्र प्राप्त होवे।

-हे सुखस्वरूप, कल्याणकारी और मङ्गलस्वरूप परमेश्वर! हम आपके इन गुणों को अनुभव करने वाले हों। इस कारण आपको हमारा बारम्बार नमस्कार हो।