प्रश्न ९– यदि ईश्वर जीव को न बनाता और न सामर्थ्य देता, तो जीव कुछ भी न कर सकता था। अतः ईश्वर की प्रेरणा से ही जीव कर्म करता है। यही मानना उपयुक्त है।
उत्तर– जीवात्मा अनादि, अनुत्पन्न और अविनाशी है। श्रीमद्-भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय में भी कहा है-
यह आत्मा न उत्पन्न होता है और न मरता है। यह अजन्मा, नित्य, अविनाशी और अनादि है। शरीर के हनन होने पर भी इसका हनन नहीं होता। इसे न शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है, न जल गीला कर सकता है और न वायु सुखा सकती है।
इसलिए जीवात्मा ईश्वर का बनाया हुआ नहीं है और जीव का शरीर तथा इन्द्रियों के गोलक ईश्वर ने जीव के कर्म अनुसार प्रदान किये हैं। जीव का कर्तृत्व अर्थात् कर्म करना स्वाभाविक है। वह अपनी इच्छा से ही शुभाशुभ कर्म करता है। यदि परमेश्वर कर्म कराता, तो कोई भी जीव पाप नहीं करता। क्योंकि परमेश्वर पवित्र और धार्मिक होने से किसी जीव को पाप करने में प्रेरणा नहीं करता। इसलिए, जीव अपने काम करने में स्वतन्त्र है।
-डाक्टर धीरज कुमार आर्य
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