प्रश्न – मनुष्य शरीर से भिन्न पशु-पक्षी, कीट, पतंग आदि योनियों में भी जीव कर्म करता है या वे केवल भोग योनियां हैं?
उत्तर- इस पृथ्वी पर जीवात्माओं के तीन प्रकार के शरीर होते हैं। कर्मदेह, उपभोगदेह, उभयदेह।
मनुष्य से भिन्न जितने भी पशु, पक्षी, कीट, पतंगादि हैं, उन्हें केवल भोग योनि माना गया है। मनुष्य शरीर में जीव फल भी भोगता है और कर्म भी करता है, किन्तु पशु शरीर में केवल फल ही भोगता है। क्योंकि, उनके शरीरों में जो बुद्धि, मन आदि उपकरण लगे होते हैं, उनका इतना सामर्थ्य नहीं होता कि वे अच्छे-बुरे की पहचान कर सकें। इसलिए, कर्मफल व्यवस्था मनुष्य के लिए लागू है, पशु-पक्षियों के लिए नहीं। आहार, निद्रा, भय, मैथुन, रक्षा आदि पशुओं व मनुष्यों में समान है, किन्तु कर्तव्य-अकर्तव्य, विधि-निषेध का नियम केवल मनुष्यों पर ही लागू होता है, पशुओं पर नहीं। पशु जगत् में बड़ा प्राणी छोटे प्रणी को दबाता है, डराता है, मारता है, खा भी जाता है, तो कोई पाप नहीं लगता, किन्तु मनुष्य समाज में ऐसा कोई करे, तो पाप माना जाता है।
मनुष्यों में विवाह आदि का नियम है, परन्तु पशुओं में ऐसा कोई नियम नहीं होता। मनुष्यों में धर्म, नीति, सभ्यता, आचार, व्यवहार आदि से सम्बन्धित अनेक शास्त्रीय विधि-विधान नियम बने हैं, किन्तु पशुओं के लिए ये नियम नहीं हैं। यद्यपि पशुओं को भोग-योनि कहा गया है, किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं लेना चाहिये कि इनमें किञ्चित् मात्र भी कर्म नहीं होता या किञ्चित् मात्र भी ज्ञान नहीं होता। पशु-पक्षियों को भी ज्ञान होता है, किन्तु वह केवल शरीर की रक्षा, भोग आदि करने के लिए सीमित मात्रा में होता है और एक जाति के सभी पशुओं का प्रायः समान स्थिति वाला होता है। यथा बया को घोंसला बनाने का, मधुमक्खी को छत्ता बनाने का, मछलियों को तैरने का, पक्षियों को उड़ने का, कुत्ते-भेड़ियों को माँद बनाने का होता है।
कुछ विशेष जाति के पशु- कुत्ते, भेड़िया, बन्दर, भालू, तोता, घोड़ा, सिंह, हाथी, आदि को विशेष प्रशिक्षण देकर उनको नये कर्म करने के योग्य भी बनाया जाता है, जैसे कि पुलिस के कुत्ते जो अपराधियों को सूंघकर पकड़ते हैं, सर्कस में हाथी, भालू, सिंह आदि या मदारी के पास बन्दर आदि। इन पशुओं पर यद्यपि शास्त्रीय नियम लागू नहीं होता, किन्तु इसका तात्पर्य यह भी नहीं है कि उनका हर कार्य क्षम्य या अदण्डनीय होता है। कुत्ता, बिल्ली, गाय, भेड़, बकरी, हिरण, सूअर, सिंह आदि अपनी मर्यादाओं को तोड़कर मनुष्य को हानि पहुँचाते हैं, तो इनको भी दण्ड मिलता है। इसलिए, पशुओं के विषय में यह सिद्धान्त है कि मुख्यरूप से इनकी भोग योनि है, किन्तु गौणरूप से कर्मों को भी करते हैं और उन कर्मों के अनुरूप वे फल भी प्राप्त करते हैं।
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