पौराणिक भाइयों से प्रार्थना
ब्रह्मकुमारी, राधास्वामी, गायत्री परिवार, स्वामी नारायण, इस्कॉन, आर्ट ऑफ़ लिविंग आदि के नाम से प्रसिद्धि पा रहे सम्प्रदाय इस देश की पुरानी ज्ञान-राशि की चर्चा न करके अपनी स्वतंत्र सत्ता सिद्ध करने में लगे हुए हैं।
हमारे पौराणिक भाइयों ने वेद विरुद्ध मान्यताओं को अपना लिया हुआ है। वे वेद विरुद्ध रीति-रिवाजों को केवल इसलिए भी मानते हैं, क्योंकि ऐसा करना उनकी दृष्टि में उनके पूर्वजों की मान्यताओं के अनुरूप है, जबकि ऐसा बिलकुल गलत है। हम अपना आचरण लाखों करोड़ों वर्ष पूर्व हुए अपने पूर्वजों की मान्यताओं के अनुरूप न कर, 2-3 हजार पहले के पूर्वजों की मान्यताओं के अनुरूप करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति में बिगाड़ लगभग छह हजार वर्ष पूर्व आरम्भ हो चुका था। पुराणों का काल आज से लगभग 2-3 हजार वर्ष पूर्व ही है। हम सब हिन्दू भाई श्री रामचन्द्र जी को अपना नायक मानते हैं। श्री रामचन्द्र जी त्रेता युग में हुए थे और उनका समय आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व का था। हमें उस समय की मान्यताओं के अनुरूप ही आचरण करना है। आज हमारे पौराणिक भाइयों ने वेद की आज्ञाओं को छोड़कर तर्कहीन बातों को स्वीकार कर लिया है। कोई भी बात तब तक स्थायी रूप से हमारे द्वारा आत्मसात नहीं की जा सकती, जब तक कि वह हमारी बुद्धि द्वारा स्वीकार्य न हो। आज हिन्दू-धर्म में प्रचलित लगभग सभी विधि-विधान व रीति-रिवाज सनातन अथवा सभी कालों व सभी परिस्थितियों में सत्य, नहीं हैं। मेरी प्रार्थना है कि वे निम्नलिखित प्रश्नों पर चिन्तन करें, ताकि उनकी अपनी बुद्धि उनको सही मार्ग जना सके।
– जब हम मानते हैं कि ईश्वर एक है व उसने ही इस सृष्टि को रचा है, तो साथ ही साथ हम यह क्यों मान लेते हैं कि यह सृष्टि शिव, विष्णु, राम, कृष्ण, दुर्गा आदि अनेकों भगवानों द्वारा रची गई है? क्या हमें ईश्वर और भगवान के भेद को नहीं समझना चाहिए?
-यदि सब कुछ करने वाला ईश्वर ही है, तो क्या हमसे बुरे काम करवाने वाला भी ईश्वर ही है? यदि सब कुछ करने वाला ईश्वर ही है, तो पुण्य के माने क्या हैं?
-जब हम मानते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापक है, तो ईश्वर की पूजा करने के लिए किसी स्थान विशेष पर जाने की क्या आवश्यकता है?
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