शंका ६  – परमेश्वर त्रिकालदर्शी है, इससे भविष्यत् की बातें जानता है। वह जैसा निश्चय करेगा, जीव वैसा ही करेगा। इससे जीव स्वतन्त्र नहीं। और जीव को ईश्वर दण्ड भी नहीं दे सकता। क्योंकि जैसा ईश्वर ने अपने ज्ञान से निश्चित किया है, वैसा ही जीव करता है।

समाधान –  ईश्वर को त्रिकालदर्शी कहना मूर्खता का नाम है। क्योंकि जो होकर न रहे वह ‘भूतकाल’ और जो न होके होवे वह ‘भविष्यत्काल’ कहाता है; क्या ईश्वर को कोई ज्ञान होके नहीं रहता तथा न होके होता है? इसलिये परमेश्वर का ज्ञान सदा एकरस अखण्डित वर्त्तमान रहता है। भूत भविष्यत् जीवों के लिये है। हाँ, जीवों के कर्म की अपेक्षा से त्रिकालज्ञता ईश्वर में है, स्वतः नहीं।

जैसा स्वतन्त्रता से कर्म जीव करता है, वैसा ही सर्वज्ञता से ईश्वर जानता है। और जैसा ईश्वर जानता है, वैसा जीव करता है। अर्थात् भूत भविष्यत् वर्त्तमान के ज्ञान और फल देने में ईश्वर स्वतन्त्र और जीव किञ्चित् वर्त्तमान और कर्म करने में स्वतन्त्र है। ईश्वर का अनादि ज्ञान होने से जैसा कर्म का ज्ञान है, वैसा ही दण्ड देने का भी ज्ञान अनादि है। दोनों ज्ञान उसके सत्य हैं। क्या कर्म ज्ञान सच्चा और दण्ड ज्ञान मिथ्या कभी हो सकता है? इसलिए इसमें कोई भी दोष नहीं आता। (सत्यार्थ प्रकाश  सम्मुलास ७)

                                                                                                                                                  -डाक्टर धीरज कुमार आर्य