पहला भजन
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनन के संकट, क्षण में दूर करे।।
जो ध्यावे फल पावे, दुख विनशे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन ओर न दूजा, आस करूं मैं जिसकी।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तरयामी।
पर-ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्त्ता।
दीन-दयालु कृपालु, कृपा करो भर्त्ता।।
तुम हो एक अगोचर, सब के प्राणपति।
किस विध मिलूँ दयामय तुमको, मैं कुमति।।
दीनबन्धु दुखहर्त्ता, तुम रक्षक मेरे।
करुणा हस्त बढ़ाओ, शरण पड़ा तेरे।।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा।।
दूसरा भजन
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूल कर भी कोई भूल हो ना।
दूर अज्ञान के हों अँधेरे, तू हमें ज्ञान की रौशनी दे।
हर बुराई से बचते रहें हम, जितनी भी दे भली जिन्दगी दे।
बैर हो ना किसी का किसी से, भावना मन में बदले की हो ना।
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूल कर भी कोई भूल हो ना।
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम ना सोचें हमें क्या मिला है, हम यह सोचे किया क्या है अर्पण।
फूल खुशियों के बांटे सभी को, सबका जीवन ही बन जाए मधुबन।
अपनी करुणा का जल तू बहा के, कर दे पावन हर इक मन का कोना।
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूल कर भी कोई भूल हो ना।
इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना।
तीसरा भजन
तेरे दर को छोड़ कर, किस दर जाऊँ मैं।
सुनता मेरी कौन है, किसे सुनाऊँ मैं।।
जबसे याद भुलाई तेरी, लाखों कष्ट उठाए हैं।
क्या जानूं इस जीवन अन्दर, कितने पाप कमाए हैं।।
हूँ शरमिन्दा आप से, क्या बतलाऊँ मैं।
मेरे पाप कर्म ही तुझसे प्रीत न करने देते हैं।
कभी जो चाहूँ मिलूँ आपसे, रोक मुझे ये लेते हैं।
कैसे स्वामी आपके दर्शन पाऊँ मैं।
है तू नाथ वरों का दाता, तुझसे सब वर पाते हैं।
ऋषि मुनि और योगी सारे, तेरे ही गुण गाते हैं।
छींटा दे ज्ञान का, होश में आ जाऊँ मैं।
जो बीती सो बीती, लेकिन बाकी उमर संभालूं मैं।
प्रेमपाश में बंधा, आपके गीत प्रेम से गालूं मैं।
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