ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग क्या हैं?
-ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग में, इनमें से किसी का भी अभाव नहीं होता। ज्ञान मार्ग में ज्ञान को प्राथमिकता दी जाती है। ज्ञान मार्ग में कर्म और भक्ति भी मौजूद तो होते हैं, परन्तु केवल परोक्ष रूप से। कर्म मार्ग में भी ज्ञान और भक्ति का अभाव नहीं होता, लेकिन कर्म को प्रमुखता दी जाती है। इसी तरह, जब हम भक्ति मार्ग की बात करते हैं, तो ज्ञान और कर्म भी मौजूद होते हैं, लेकिन भक्ति को प्रमुखता दी जाती है। जीवन के तीनों पहलू अर्थात् ज्ञान, कर्म और भक्ति एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। यदि, इनमें से एक भी अभाव हो, तो हम पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकते। बिना कर्म के ज्ञान व्यर्थ है और ज्ञान के बिना कर्म व्यर्थ है। ज्ञान और कर्म दोनों तभी सार्थक होते हैं, जब उनका उद्देश्य भक्ति हो। सच्ची आध्यात्मिकता के लिए ज्ञान, कर्म और भक्ति के सही संयोजन की आवश्यकता होती है। भक्ति मार्ग, वास्तव में, आज्ञाओं का पालन करना है। इस दिशा में, हिंदी के शब्दों ‘देशभक्त’ और ‘स्वामीभक्त’ के अर्थों पर विचार करें। ‘देशभक्त’ से हमारा तात्पर्य एक ऐसे व्यक्ति से होता है, जो राष्ट्र की आवश्यकता के अनुरूप अपने कर्म को करता है। दूसरे शब्दों में ‘देशभक्त’ उसी व्यक्ति कहा जाता है जो राष्ट्र के आदेशों का पालन करता है और ‘स्वामीभक्त’ से हमारा तात्पर्य एक ऐसे प्राणी से होता है, जो अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करता है। इन उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि भक्ति का अर्थ ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना होता है। ‘समर्पण’ का भी यही अर्थ है। समाज में प्रचलित इन शब्दों के अन्य अर्थ भ्रामक हैं और उन्हें छोड़ देना चाहिए।
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