क्या सभी के पास एक जैसी बुद्धि होती है?

विद्वानों का मानना है कि सभी के पास एक जैसी बुद्धि होती है। परन्तु, हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि कुछ लोग किसी बात को समझ ही नहीं पाते, जबकि अन्य लोग उसी बात को शीघ्रता से समझ जाते हैं। इसी तरह, हम देखते हैं कि कुछ लोग किसी बात को जल्दी समझ जाते हैं और कुछ उसी बात को देर से समझते हैं। ऐसे में, सभी के पास एक जैसी बुद्धि के होने का क्या तात्पर्य है?

वास्तव में, सभी के पास बुद्धि तो एक जैसी ही होती है, परन्तु पिछले संस्कारों के कारण हमारी कुछ विषयों में रुचि नहीं होती या कम होती है, और उन विषयों को समझने में हमें शुरु शुरु में कठिनाई होती है।

वेद में एक स्थल पर मेधा प्रदान करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की गई है। मेधा का अर्थ होता है- अति उत्तम बुद्धि, जो व्यक्ति के स्वभाव में आ जाए। अब यदि, सभी के पास एक जैसी बुद्धि होती है, तो इस प्रार्थना के क्या मायने हैं? यहाँ, मेधा यानि व्यक्ति के स्वभाव में आ जाने वाली अति उत्तम बुद्धि से तात्पर्य है बुद्धि की दिशा से। हमारे कर्मों का अच्छा व बुरा होना भी हमारी बुद्धि की दिशा से ही निर्धारित होता है। 

अनेक विद्वानों का मत है कि ईश्वर हमारे कर्मों के फल के रूप में सुख, दुख प्रदान करने के लिए हमारी बुद्धि के स्तर को ऊपर नीचे कर देता है। हमारी बुद्धि का स्तर अच्छा होने पर हम अच्छे कर्म कर पाते हैं, जिनका फल सुख होता है और हमारी बुद्धि का स्तर गिरने पर हम असावधानी, प्रमाद आदि त्रुटियाँ कर देते हैं, जिनका फल दुख ही होता है। यहाँ, बुद्धि के स्तर को ऊपर नीचे करने का तात्पर्य बुद्धि की सही व गलत दिशा ही है। हम अपनी बुद्धि को सही दिशा में चलाने के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।