प्रश्न – क्या मुक्ति में जीव कर्मों को करता है और क्या उनका फल मिलता है?
उत्तर- मुक्ति में जीव कर्म नहीं करता है। क्योंकि कर्म की परिभाषा मुक्ति में लागू नहीं होती है। शरीर-इन्द्रिय-मन से की जाने वाली चेष्टा विशेष को कर्म के अन्तर्गत माना जाता है। ऐसे कर्मों से कर्माशय बनता है और उस कर्माशय से सुख-दुख फल मिलता है। इस परिभाषा के अनुसार देखा जाये तो यही निर्णय निकलता है कि मोक्ष में जीव कर्म नहीं करता है, क्योंकि मोक्ष में जीव के साथ शरीर-मन-इन्द्रिय नहीं होते हैं। जब ऐसे कर्म नहीं होते, तो कर्माशय भी नहीं बनता और फल भी नहीं मिलता।
पुनरपि मोक्ष अवस्था में जीव इधर-उधर जाता आता है, विभिन्न वस्तुओं को देखता है, उनका ज्ञान-विज्ञान भी प्राप्त करता है। इससे लगता है कि मोक्ष में भी क्रियाएँ होती हैं। यह सब क्रियाएँ जीव बिना शरीर-मन-इन्द्रिय के ईश्वर की सहायता से करता है। इन क्रियाओं से ज्ञान की वृद्धि होती है, परिणाम स्वरूप ज्ञान के बढ़ने से आनन्द भी बढ़ता है। इस दृष्टिकोण से कह सकते हैं कि मोक्ष में भी जीव क्रिया करता है तथा उनका फल भी मिलता है। किन्तु ये सब क्रियाएँ सशरीर सृष्टि में किये जाने वाले कर्मों की श्रेणी में नहीं आती।
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